रानी मल्लम्मा… ये नाम शायद कम ही लोगों ने सुना होगा, लेकिन भारतीय इतिहास में आज भी उन्हें ‘योद्धा रानी’ के तौर पर याद किया जाता है. रानी मल्लम्मा अपने शौर्य और वीरता के लिए जानी जाती हैं. वो एक निडर योद्धा थीं जिनके साहस के आगे बड़े से बड़े योद्धा भी हार मान लेते थे.
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कौन थीं रानी मल्लम्मा?
रानी मल्लम्मा का पूरा नाम बेलावड़ी मल्लम्मा था. वो कर्नाटक के बेलगावी ज़िले के बैलहोंगल की महारानी थीं. रानी मल्लम्मा राजा मधुलिंगा नायक की बेटी थीं. उनके पति का नाम राजा ईशाप्रभु था. रानी मल्लम्मा को ‘सावित्रीबाई’ के नाम से भी जाना जाता है, जो छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ लड़ी थीं.
रानी मलम्मा भारतीय इतिहास की पहली शासक थी जिसने महिलाओं की अलग ‘युद्ध बटालियन’ तैयार की थी. उनकी ये बटालियन ‘युद्ध कौशल’ में निपुण थी. इस बटालियन की महिला लड़ाका साड़ी पहने और हाथ में तलवार लिए अपने घोड़े के साथ युद्ध किया करती थीं और रानी मलम्मा इनका नेतृत्व करती थीं.
रानी बेलावड़ी मलम्मा में इतना साहस था कि वो बड़े से बड़े योद्धा से भीड़ जाती थीं. फिर चाहे वो अंग्रेज़ हो या फिर मुग़ल या कोई हिंदू शासक. 17वीं शताब्दी में रानी मलम्मा की निर्भीकता और निडरता का हर कोई कायल था. उनके राज्य पर आक्रमण करने वालों को वो अपनी ‘महिला बटालियन’ के सहारे परास्त करने का साहस रखती थीं.
रानी मल्लम्मा एक ऐसी राजपूत योद्धा थीं जिनसे ब्रिटिश शासक ही नहीं, बल्कि छत्रपति शिवाजी महाराज व मुगल साम्राज्य भी ख़ौफ़ खाते थे. भारतीय इतिहास में चंद ही योद्धा थे जिन्होंने रानी मल्लम्मा से भिड़ने का साहस दिखाया. छत्रपति शिवाजी महाराज इनमें से एक थे.
जब रानी मलम्म्मा व शिवाजी महाराज के बीच 27 दिनों तक चला युद्ध
इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी में रानी मलम्म्मा और शिवाजी महाराज के बीच 27 दिनों तक चले युद्ध का ज़िक्र किया है. इस दौरान रानी मलम्मा के पति ईशाप्रभु लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन रानी अपनी ‘महिला बटालियन’ के साथ लड़ती रही. इस युद्ध में रानी मल्लम्मा ने छत्रपति शिवाजी महाराज को हरा दिया था.
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छत्रपति शिवाजी महाराज युद्ध में हार मिलने के बावजूद रानी मल्लम्मा की वीरता और साहस से अचंभित थे. इस दौरान रानी मल्लम्मा ने अपनी ‘महिला योद्धाओं’ के साथ युद्ध में मराठा सैनिकों द्वारा की गयी बदसलूकी की शिकायत शिवाजी महाराज से की थी. इस पर महाराज ने अपने सैनिक को दंडित भी किया था. शिवाजी महाराज के इस व्यवहार से ख़ुश होकर रानी मलम्म्मा ने कर्नाटक के याडवाड़ हनुमान मंदिर में उनकी एक मूर्ति स्थापित की जो आज भी देखी जा सकती है.
इतिहास की कई किताबों में रानी मलम्म्मा और शिवजी महाराज के बीच युद्ध का ज़िक्र है जिसमें रानी ने महाराज को हराया था. लेखक शिवा बसावा शास्त्री ने भी अपनी किताब ‘Tharaturi Panchamara Itihasa‘ में रानी मलम्म्मा और छत्रपति शिवाजी महाराज के बीच हुए युद्ध का ज़िक्र किया है. इसके अलावा रानी मल्लम्मा के शिक्षक शंकर भट्टरू द्वारा लिखित संस्कृत की किताब ‘शिव वंश सुधारनव’ में भी इसका ज़िक्र किया गया है.