मोहम्मद अली जिन्ना ने विभाजन का जो जख़्म भारत को दिया, देश उसे कभी भुला नहीं पाया है. जिन्ना की अलग मुल़्क की मांग ने न सिर्फ़ राजनीतिक अस्थिरता पैदा की, बल्कि इसकी वजह से बड़ी संख्या में लोगों को अपना असल घर छोड़ना पड़ा. एक तरफ़ भारत अंग्रेज़ों की चंगुल से आज़ाद हुआ और दूसरी तरफ़ अपने ही एक भौगोलिक हिस्से को अलग करना पड़ा. कहते हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने आज़ाद भारत का पहला भाषण बड़ी गंभीरता के साथ दिया था. वहीं, ये भी कहा जाता है कि अपने पहले भाषण से पहले नेहरू रोये भी थे. आइये, इस ख़ास लेख में जानते हैं इसके पीछे का कारण.
क्या हुआ था उस रात?
देश के पहले प्रधानमंत्री बने जवाहर लाल नेहरू ने अपना पहला भाषण 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि में दिया. लेकिन उससे पहले उनके पास एक दिल दहला देने वाली ख़बर पहुंची. कहते हैं उस रात खाने की मेज सजी थी. नेहरू के साथ इंदिरा गांधी, फ़िरोज़ गांधी और पद्मजा नायडू खाने की मेज पर बैठी थीं. तभी फ़ोन की घंटी बजी. फ़ोने लाहौर से आया था. नेहरू ने बात की और फ़ोन रख दिया. नेहरू गंभीर दिख रहे थे. उनकी आंखों में आंसू थे.
मची थी मार-काट
नए मुल़्क में नए प्रशासन के आते ही लाहौर में मार-काट शुरू हो गई. सिख और हिंदू इलाक़ों में पानी बंद कर दिया गया था. लाहौर की गलियां हिंसा की आग में झुलस रही थीं. रेलवे स्टेशन पर नंगी तलवारें लिए लोग घूम रहे थे कि वहां से भागने वाले हिंदू और सिखों को मारा जा सके. ये सब बातें जब पंडित जवाहर लाल नेहरू को पता चली, तो वो अंदर से बहुत टूट गए थे.
नेहरू का दुख भरा वाक्य
इंदिरा गांधी के सामने आंसुओं से भरी आंखें और दुखी मन से नेहरू बोले कि मेरा लाहौर जल रहा है, मैं इस हालत में कैसे राष्ट्र को संबोधित कर पाऊंगा. इंदिरा ने अपने पिता को संभाला और कहा कि आप भाषण के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार कीजिए.
गूंजी नेहरू की आवाज़
संसद के सेंट्रल हॉल में ठीक 11 बजकर 55 मिनट पर नेहरू की आवाज़ गूंजी. कहते हैं कि पंडित जवाहर लाल नेहरू के इस भाषण को 20वीं सदी का सबसे ज़ोरदार भाषण कहा गया. मध्यरात्रि में राष्ट्र को संबोधित करते हुए नेहरू ने कहा कि जब पूरी दुनिया सो रही है, भारत स्वतंत्रता की सुबह के साथ उठेगा. नेहरू के इस ख़ास भाषण को ‘A Tryst with Destiny’ के नाम से जाना जाता है.
महात्मा गांधी नहीं थे मौजूद
पंडित जवाहर लाल नेहरू के इस ऐतिहासिक भाषण को महात्मा गांधी सुन नहीं पाए. दरअसल, जिस वक़्त नेहरू राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे, महात्मा गांधी बंगाल के नोआखली में अनशन पर बैठे थे.
भारत का पहला गर्वनर
अपने ऐतिहासिक भाषण के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद के साथ माउंटबेटन से मिलने पहुंचे थे. दोनों ने माउंटबेटन को देश का पहला गर्वनर बनने का औपचारिक न्यौता दिया. माउंटबेटन ने ये औपचारिक न्यौता स्वीकार कर लिया. इसके बाद तीनों ने भारत की आज़ादी के नाम पोर्ट वाइन के घूंट भरे.