प्रतिवर्ष हम 15 अगस्त को देश की आज़ादी का जश्न मनाते हैं. सभी जानते हैं कि 15 अगस्त 1947 वो ऐतिहासिक दिन था जब भारत अंग्रेज़ी हुकूमत के चंगुल से आज़ाद हुआ था. लॉर्ड माउंटबेटन ने ही 15 अगस्त को आज़ादी का दिन तय किया था. लेकिन, बहुत लोगों को शायद मालूम नहीं होगा कि लॉर्ड माउंटबेटन ने पहले आज़ादी का दिन फ़रवरी 1948 को रखा था. लेकिन, ऐसा क्या हुआ था कि ख़ुद लॉर्ड माउंटबेटन को आज़ादी की तारीख़ 6 महीने आगे यानी अगस्त 1947 को करनी पड़ी? इस लेख में जानिए इस सवाल का जवाब और साथ में जानिए इससे जुड़ी और भी कई ज़रूरी बातें.  

जानलेवा बीमारी

britannica

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस बात की जानकारी शायद बहुत कम लोगों को होगी कि द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने से पहले मोहम्मद अली जिन्ना एक घातक बीमारी की चपेट में आ गए थे. उनका इलाज कर रहे डॉक्टर जाल पटेल ने जब उनके शरीर का एक्स-रे देखा, तो पता चला कि उनके लंग्स पर चकत्ते पड़ गए हैं. लेकिन, उन्होंने इस बात का गुप्त रखा.  

बीमारी में गए ज़ियारत

livemint

14 जुलाई 1948 को जिन्ना बीमार होने के बावज़ूद क्वेटा से ज़ियारत (पाकिस्तान का एक शहर) गए थे. उन्हें इस स्थिति में वहां जाने की सलाह किसने दी थी, अब तक ये बात रहस्य ही बनी हुई है. वहीं, उनकी बहन फ़ातिमा की किताब ‘My Brother’ के अनुसार, जिन्ना अपनी इच्छानुसार ज़ियारत गए थे, क्योंकि सरकारी व ग़ैर सरकारी कामों की वजह से उन्हें आराम का मौका नहीं मिल रहा था.

आज़ादी की तारीख़

scroll

तिलक देवेशर (भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी RAW में विशेष सचिव रहे चुके) ने इस बात को सामने रखा कि डॉक्टर पटेल ने जिन्ना की बीमारी की ख़बर किसी को नहीं होने दी. लेकिन, देवेशर का मानना है कि लॉर्ड माउंटबेंटन को जिन्ना की बीमारी का पता था, इसलिए उन्होंने आज़ादी की तारीख़ फ़रवरी 1948 से सीधा अगस्त 1947 कर दी थी. माउंटबेंटन को पता था कि जिन्ना अब कुछ ही दिनों के मेहमान हैं. वहीं, अगर गांधी, पटेल या नेहरू को जिन्ना की बीमारी का पता होता, तो वो विभाजन के लिए शायद और समय मांगते.  

एक दर्दनाक मौत  

dawn

कहते हैं कि ज़िन्ना का अंत बहुत ही दर्दनाक था. 1948 तक वो बुरी तरह से अस्वस्थ हो चुके थे. कहते हैं कि वो लंग्स कैंसर से जूझ रहे थे. वहीं, 11 सितंबर 1948 को विमान से जब उन्हें क्वेटा से कराची लाया गया, तो उनका वज़न मात्र 40 किलो था. कहते हैं कि कराची स्थित मौरीपुर एयरपोर्ट पर मिलिट्री सेकेट्री के अलावा, उन्हें रिसीव करने कोई नहीं आया था. 

वहीं, जब हवाई अड्डे से उन्हें एंबुलेंस से गवर्नर जनरल हाउस ले जाया जा रहा था, तो बीच रास्ते में उनकी एंबुलेंस का पेट्रोल ख़त्म हो गया था. वहीं, दूसरी एंबुलेंस करने में एक घंटे का वक़्त लग गया था, इस दौरान जिन्ना उसी एंबुलेंस में पड़े रहे थे. कहते हैं उनकी नाड़ी कमज़ोर होती जा रही थी और उसी रात उनकी मौत हो गई थी.  

क्या टल जाता विभाजन?

nytimes

 हिंदुस्तान की आज़ादी पर लिखी गई किताब “Freedom at Midnight” के लेखकों Dominique Lapierre and Larry Collins के अनुसार, अगर माउंटबेंटन, नेहरू या गांधी को जिन्ना की बीमारी का पता पहले ही चल जाता, तो हिंदुस्तान का शायद कभी बंटवारा न होता. लेकिन, जैसा कि हमने ऊपर बताया कि तिलक देवेशर का मानना था कि माउंटबेंटन को जिन्ना की बीमारी का पता चल गया था, इसलिए उन्होंने आज़ादी की तारिख आगे कर दी थी.