भारत विवधताओं का देश है, शायद ही किसी और देश में इतनी विविधता मिलती हो. अलग-अलग विश्वास, मत, संस्कारों को मानने वाले कई समुदाय यहां गुज़र-बसर करते हैं.
जब हम किसी को तोहफ़े में कैश देते हैं तो उसमें 1 रुपया जोड़कर देते हैं. चाहे वो कहीं दान हो, शादी में गिफ़्ट हो या छोटों को शगुन देना हो. मतलब चाहे कितना भी कैश हो, 10, 50, 100, 500, 1000 लेकिन साथ में 1 रुपये का सिक्का ज़रूर होता है.
एक लेख में 1 रुपये देना का एक और दिलचस्प कारण बताया गया है. तोहफ़े में दिया गया 11, 51, 501, 1001 में 1 रुपये का वैल्यू काउंट नहीं किया जाता. मतलब असली अमाउंट 10, 50, 500, 1000 ही माना जाता है और 1 रुपये उधार समझा जाता है. मान्यता है कि अगली बार जिस व्यक्ति को आपने पैसे दिये वो आपको 1 रुपये लौटाएगा यानि शगुन में एक रुपये जोड़कर देगा. और ये साइकिल चलता रहता है, रिश्ते बने रहें इसलिए ऐसा किया जाता है.
Quora के एक यूज़र ने इस सवाल का बेहद दिलचस्प जवाब दिया. प्रसन्न राव ने अपनी दादी से ये सवाल पूछा था. दादी ने जवाब में बताया कि पुराने ज़माने में गांव में करेंसी नहीं होती थी. वस्तु विनिमय प्रणाली (लेन-देन प्रक्रिया) होती थी और बाहर के गांव से लोग बैलगाड़ी, बग्घी से सामान लाते थे. शिक्षित और ज्ञानी लोग एक गांव से दूसरे गांव, शहर जाते थे और धार्मिक क्रिया-कर्म करते थे. जब भी ऐसे लोग किसी गांव जाते या गांव से निकलते तो उन्हें बॉर्डर टोल देना होता. ये वस्तुओं और लोगों के आने-जाने पर नज़र रखने, हिसाब रखने के लिए किया जाता. एक्स्ट्रा पैसे टॉल देने या बैलगाड़ी चालक, बग्घी चालक को टिप देने के लिए रखा जाता था.
अब ये तो विश्वास का खेल है, मानने को तो आप कुछ भी मान सकते हैं.