Vijay Barse: 4 मार्च को अमिताभ बच्चन की फ़िल्म झुंड रिलीज़ हुई है, जिसे लोगों की अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है. बिग बी ने इस फ़िल्म में पहली बार फ़ुटबॉल कोच की भूमिका निभाई है, जिनका नाम विजय बोर्डे है. इसमें वो स्लम के बच्चों को फ़ुटबॉल प्लेयर बनाने की जद्दोजहद करते हैं और वो इसमें कामयाब भी होते हैं. असल ज़िंदगी के फ़ुटबॉल कोच विजय बर्से से प्रभावित ये कहानी ख़ूब सराही जा रही है.
Even in my dreams I could not have imagined the day that my story would reach millions, but this is more than my story it’s the story of every player who touched my life and what they overcame. #jhund will capture your hearts. @Nagrajmanjule @SrBachchan @slumsoccer pic.twitter.com/tgWatTb7Dc
— Vijay Barse (@VijaySBarse) March 3, 2022
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Vijay Barse
चलिए जानते हैं आख़िर ये विजय बर्से कौन हैं? जिनका किरदार अमिताभ बच्चन ने निभाया है. और कैसे इन्होंने स्लम में रहने वाले बच्चों को फ़ुटबॉल प्लेयर बनाया?
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साल 2014 में आमिर ख़ान के शो सत्यमेव जयते के तीसरे सीज़न के पहले एपिसोड में विजय बर्से (Vijay Barse) आए थे. इस शो के माध्यम से उन्होंने अपनी कहानी बताई थी और कहा था कि साल 2001 में जब वो नागपुर के हिसलोप कॉलेज में एक स्पोर्ट्स टीचर के तौर पर कार्यरत थे, उस दौरान एक दिन वो कहीं जा रहे थे, तभी बारिश हुई तो वो पेड़ के नीचे रुक गए तभी उन्हें कुछ आवाज़ आई तो उन्होंने स्लम में रहने वाले कुछ बच्चों को देखा, जो टूटी बाल्टी और टूटे डिब्बे को लात मार रहे थे, उनका एक-एक मूव किसी ट्रेंड फ़ुटबॉल प्लेर जैसा था. तब उन्होंने उन बच्चों के पास जाकर उन्हें फ़ुटबॉल दी और उन्होंने वो फ़ुटबॉल ले ली.
फिर 2002 में, विजय बरसे ने स्लम के बच्चों को एक खेल के मैदान में बुलाया और उन्हें झोपड़पट्टी फ़ुटबॉल नाम दिया, जो आगे चलकर स्मल सॉकर के रूप में लोकप्रिय हुआ. Tedx talk में बर्से से पूछा गया कि उन्होंने अपनी टीम का नाम झोपड़पट्टी क्यों रखा तो उन्होंने कहा, कि
मुझे पता था कि सभी खिलाड़ी झोपड़पट्टी और झुग्गी से आए हैं और मुझे इन्हीं के लिए काम करना है. इसलिए मैंने इस नाम को ही चुना. इन्होंने बच्चों को फ़ुटबॉल की ट्रेनिंग दी.
-विजय बर्से
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इसके बाद इन बच्चों ने अपने ग्रुप के साथ प्रैक्टिस शुरू की. हालांकि, स्लम में रहने वाले ये बच्चे पढ़-लिखे नहीं थे और कई ग़लत चीज़ों में पड़े ते, जैसे कोई कच्चा शराब बेचता था, कई बच्चे ग्रुप में लूट करते थे, लेकिन जैसे ही इन्हें विजय बर्से (Vijay Barse) ने मैदान में खेलने के लिए खड़ा किया. ये सभी सारी बुराइयों को भूल कर सिर्फ़ खेल में लग गए. उन्होंने सोचा, कि इन बच्चों के ज़रिए वो राष्ट्र के सुनहरे भविष्य के लिए कुछ बेहतर कर सकते हैं.
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उन्होंने आमिर ख़ान के शो सत्यमेव जयते में कहा कि,
मैंने महसूस किया कि ये बच्चे तभी तक बुरी आदतों की तरफ़ बागते हैं जब तक ये मैदान में नहीं होते हैं, जैसे ही ये मैदान में ये सब पीछे छोड़ देते हैं और एक शिक्षक होने के नाते मेरा ये फ़र्ज़ है कि मैं बच्चों को सही रास्ता दिखाऊं और एक टीचर इससे ज़्यादा क्या दे सकता है? इस प्रकार 2002 में झोपड़पट्टी फ़ुटबॉल टीम बनी जो आख़िर में स्लम सॉकर के रूप में लोकप्रिय हुई.
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फिर मैंने अपने दोस्तों से कहा कि क्यों न हम इसे टूर्नामेंट का रूप देंगे. तब नागपुर के पहले टूर्नामेंट में क़रीब 32 टीम को लेकर जाएंगे लेकिन हमें 128 टीम को ले जाना पड़ा. अब पूरे महाराष्ट्र राज्य में कम से कम 2 से ढाई हज़ार झोपड़पट्टी टीम हैं. इस टूर्नामेंट के बाद विजय बर्से से 15 स्टेट डायरेक्ट जुड़े हुए हैं, जिनका प्रदर्शन नेशनल लेवल पर होता है.
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स्लम सॉकर दिन पर दिन बढ़ा जा रहा था और इसके मैच स्टेट और जिला स्तर पर आयोजित किए जा रहे थे मीडिया भी सारे मैच कवर रहा था. इस स्लम लीग से बहुत देशों के खिलाड़ी और कोच जुड़ना चाह रहे थे, लेकिन इसे कोई फ़ाइनेंस नहीं करना चाहता था. एक दिन विजय बर्से के बेटे जो अमेरिका में रहता है उसने अपने पापा की तस्वीर अमेरिकन न्यूज़पेपर में देखी तो वो उनकी मदद करने के लिए अमेरिका से वापस आया. इस तरह से विजय बर्से ने उन स्लम्स में रहने वालों बच्चों को शानदार खिलाड़ी में बदल दिया था. आज विजय बर्से एक शानदार टीचर के तौर पर जाने जाते हैं.
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आपको बता दें, रिटायरमेंट के बाद, विजय बरसे ने 18 लाख रुपये खर्च करके एक Krida Vikas Sanstha Nagpur (KSVN) की स्थापना की, जो स्लम सॉकर के मूल संगठन के रूप में काम करती है और फ़ुटबॉल टूर्नामेंट आयोजित करने और वंचितों को कई अवसर प्रदान करने पर ज़ोर देती है. इस संस्था की स्थापना विजय बर्से ने अपनी पत्नी रंजना बर्से और बेटे अभिजीत बर्से की मदद से की थी.