Trial By Fire Story : आजकल ज़्यादातर लोग मूवीज़ से हटके वेब सीरीज़ ज्यादा प्रेफ़र करते हैं. कुछ वेब सीरीज़ फ़िक्शनल कहानियों पर आधारित होती हैं, तो कुछ रियल लाइफ़ के ऊपर फ़िल्माई जाती हैं. हाल ही में नेटफ्लिक्स पर ‘ट्रायल बाय फ़ायर’ नाम की सीरीज़ रिलीज़ हुई है. ये वेब शो रिलीज़ होने के बाद से ही सुर्ख़ियों में छा गया है. अपने दमदार कंटेंट के साथ ही ये शो 1997 में उपहार सिनेमा में लगी भयंकर आग दुर्घटना पर आधारित है. इस मिनी सीरीज़ के साथ ही उपहार आग दुर्घटना फिर से देश में चर्चा का विषय बन गई है.
इसके साथ ही ये शो एक पेरेंट की क़ानूनी लड़ाई को दर्शाता है, जिन्होंने उस भीषण हादसे में अपने बच्चों को खो दिया था. इसमें उस कपल की भूमिका अभय देओल और राजश्री देशपांडे ने निभाई है. आइए हम आपको सीरीज़ से हटके क़ानूनी लड़ाई लड़ने वाले उस रियल कपल के बारे में बता देते हैं, जिनके ऊपर ये सीरीज़ फ़िल्माई गई है.
ये भी पढ़ें: 90s के ये 6 चाइल्ड एक्टर्स अब नहीं रहे बच्चे, किसी ने की शादी तो किसी ने सगाई
कब हुआ था ये हादसा?
दरअसल, ये हादसा दिल्ली में क़रीब 26 साल पहले 13 जून 1997 को हुआ था. जब ये हादसा हुआ, तब उस दौरान दिल्ली के ग्रीन पार्क में स्थित उपहार सिनेमा में जेपी दत्ता की वॉर फ़िक्शन मूवी ‘बॉर्डर’ की स्क्रीनिंग चल रही थी. तभी अचानक से देखते ही देखते पल भर में पूरे सिनेमा हॉल में आग़ फैल गई. इस हादसे में क़रीब 59 लोगों की ऑक्सीजन की कमी से मौत हो गई थी. जबकि 103 लोग वहां हुई भगदड़ के चलते गंभीर रूप से घायल हो गए थे.
क्या है इस सीरीज़ में दिखाए गए कपल की कहानी?
इस सीरीज़ में दिखाए गए कपल का रियल नाम नीलम कृष्णमूर्ती और शेखर कृष्णमूर्ति है. उन्होंने उपहार सिनेमा में हुई आग दुर्घटना में अपने बच्चों उन्नति और उज्जवल को खो दिया था, जो क्रमशः 17 और 13 साल के थे. इसके अलावा एक और कहानी है, जिसे हमें जानने की ज़रूरत है और वो है नीलम और शेखर की देश की ख़राब क़ानून व्यवस्था के साथ न्याय की ख़ोज की कहानी. अगर आप एक बार भारतीय क़ानून व्यवस्था की भूल भुलैया में फंस गए, तो उससे सफलतापूर्वक बाहर निकल आना मुश्किल है. धन का प्रभाव अक्सर क़ानून की फ़ेयर प्रैक्टिस को बाधित करता है और अक्सर समृद्ध लोगों को ऊपरी हाथ मिल जाता है. इस कपल को न्याय पाने के लिए बड़ी ताक़तों के ख़िलाफ़ जाना पड़ा था.
कैसे लगी थी उपहार सिनेमा में आग़?
एक रिपोर्ट के मुताबिक़, उपहार सिनेमा में आग़ का कारण एक ख़राब ट्रांसफॉर्मर में हुआ बेकार रिपेयर वर्क था. सिनेमा की आग़ से निपटने की कोई तैयारी नहीं थी, जिस वजह से ऐसी दुर्घटना घटी. खोई हुई शक्ति और अराजकता के साथ पूरा सिनेमा हॉल धुएं में डूबा हुआ था. बालकनी एरिया में लोग बुरी तरह से फंस गए थे, क्योंकि वहां से बाहर निकलना मुश्किल था. मामले को बदतर बनाते हुए, दमकल कर्मियों को भी साइट में पहुंचने में एक घंटे से भी ज़्यादा का समय लगा.
सीबीआई की ओर से उपस्थित एक सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने साल 2007 में दिल्ली हाई कोर्ट को बताया था, “बदक़िस्मत थिएटर में घबराहट की स्थितियों के लिए सुरक्षा के कोई उपाय नहीं थे. जिन लोगों को सिनेमा के संचालन से लाभ मिल रहा था, वे चूक के लिए आपराधिक रूप से उत्तरदायी थे.”
ये भी पढ़ें : इन 9 Sports Movies के लिए ये खिलाड़ी ट्रेनिंग ना दिए होते तो ये Actors कमाल नहीं दिखा पाते
कौन थे उपहार सिनेमा के मालिक?
इस सिनेमा के मालिकों का नाम सुशील और गोपाल अंसल था. उन्होंने बिल्डिंग के कंस्ट्रक्शन के दौरान कई ग़लतियां की थीं. उपकरणों की बहुत बेकार तरीक़े से मेंटेन किया जाता था और उसका प्लेसमेंट भी ग़लत था. साथ ही सिनेमा हॉल में ज़्यादा सुरक्षा उपाय भी नहीं थे.
एक नामी अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक सिनेमा में कोई एग्ज़िट लाइट्स, इमरजेंसी लाइट्स या फ़ुट लाइट्स नहीं थीं. जब बिल्डिंग की बिजली गई, तो हॉल में पूरा अंधेरा छा गया था. मूवी देखने वालों को अलर्ट करने के लिए कोई पब्लिक अनाउंसमेंट नहीं की गई थी. सिनेमा हॉल के अंधेरे में व्यूअर्स को काफ़ी देर बाद पता चला था कि उनकी बिल्डिंग भीषण आग़ की चपेट में आ गई है.
इसके साथ ही एग्ज़िट गेट लॉक हो गए थे और सीट की पंक्तियों के बीच के मार्ग को भी ब्लॉक कर दिया था. सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए मालिकों ने अनाधिकृत विस्तार किया था, जिसकी वजह से लोगों के रास्ते ब्लॉक हो गए थे. यहां तक वो जगहें जो खाली होनी चाहिए थीं, वो भी अवैध व्यवसायों के संचालन के चलते फ़ुल थीं.
जब नीलम और शेखर ने अपने बच्चों को न्याय दिलाने का लिया प्रण
जब ये हादसा हुआ था, तब काफ़ी लोगों को आग़ लगने की असल वजह नहीं पता थी और उन्होंने इसे एक दुर्घटना मान लिया था. लेकिन जब इसकी जांच हुई और इसकी वजह अखबारों में छापी गई, तक नीलम और शेखर का ध्यान इसकी ओर पड़ा. हादसे के 13 दिन बाद नीलम और शेखर को एहसास हुआ कि उनके बच्चों की जान बचाई जा सकती थी. कपल ने बाकी लोगों से भी बात की, जो इस हादसे से बच गए थे. तब उन्हें पता चला कि जो लोग वहां फ़िल्म देख रहे थे, उनके लिए बालकनी के एग्ज़िट बंद कर दिए गए थे.
उनके आंसू जल्द ही गुस्से में तब्दील हो गए, जिसने उन्हें उपहार सिनेमा के मालिकों के ख़िलाफ़ क़ानूनी एक्शन लेने के लिए प्रेरित किया. वो सीनियर वकील KTS तुलसी के पास लीगल सलाह के लिए गए. उन्होंने कहा वो इसे फ्री में करेंगे. तुलसी ने कपल से एक उन लोगों की एसोसिएशन बनाने के लिए कहा, जो इस केस को लड़ना चाहते हैं.
कपल को कोर्ट के बारे में कुछ भी नहीं था मालूम
जब नीलम और शेखर ने अपनी इस लड़ाई को कोर्ट तक ले जाने का फ़ैसला किया, तब उन्हें कोर्ट और कचहरी की फंक्शनिंग के बारे में कुछ भी नहीं पता था. शुरुआत में कपल को तो सिविल और क्रिमिनल केस के बीच में फ़र्क भी नहीं पता था. वो अखबारों में मृत्युलेख के कॉलम देखते थे और उन लोगों के नाम और नंबर लिखते थे, जिन्होंने अपने प्रियजनों को इस हादसे में खो दिया था.
जहां कुछ परिवारों ने इस एसोसिएशन को ज्वाइन करने में सहमति दिखाई, वहीं कुछ ने उनके कॉल को इग्नोर कर दिया. शोक या निहित स्वार्थो द्वारा जारी की गई धमकियां जैसे विभिन्न कारण थे, जिसकी वजह से कुछ परिवारों को इस एसोसिएशन से बाहर निकलने के लिए मजबूर होना पड़ा.
चार साल तक चली क़ानूनी लड़ाई
नीलम और शेखर ने 30 जून को AVUT यानि एसोसिएशन ऑफ़ विक्टिम्स ऑफ़ उपहार ट्रेजेडी का सफ़लतापूर्वक गठन किया. इसके बाद सिनेमा के मालिकों गोपाल और सुशील अंसल के ख़िलाफ़ चार सालों तक क़ानूनी लड़ाई चली. उस दौरान सिनेमा के मालिक काफ़ी प्रभावशाली थे और उनके पास अपार संसाधन थे. वहीं, सिर्फ़ अपने बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि उन सभी फ़ैमिलीज़, जिन्होंने अपने प्रियजनों को उस हादसे में खोया था, उनको न्याय दिलाने के लिए कपल ने इस दौरान रिसर्चर, एक्टिविस्ट के साथ ही पैरालीगल का भी रोल निभाया.
कपल ने हादसे की साइट का भी किया दौरा
कपल अपनी जानकारी इकठ्ठा करने के लिए अपने पर्सनल ट्रामा का सामना करते हुए ट्रेजेडी की साइट पर भी गए. कपल ने बालकनी की ओर भी जाने का फ़ैसला किया ताकि वो देख सकें मूवी के दौरान उनके बच्चे कहां बैठे थे. उनकी सीट A4 और A5 थीं, जिसके नीचे पेरेंट्स को खाली पड़ी सॉफ्ट ड्रिंक की बोतलें मिली थीं. नीलम ने बताया था, “मेरा बेटा चश्मा नहीं लगाए हुए था, जब मैंने उसे आखिरी बार देखा था. तो मुझे लगा शायद वो वहीं कहीं होंगे. या वो नीचे गिर गए होंगे. मुझे नहीं पता कितनी देर तक हम वहां रहे थे.”
न्याय पाने के इस सफ़र में आई काफ़ी मुश्किलें
उनकी ये क़ानूनी लड़ाई बिल्कुल भी आसान नहीं थी. इस दौरान उन्हें बार-बार अदालती स्थगन, प्रतिवादियों के पेचीदा कानूनी आवेदन, राज्य से अक्षमता, सबूतों में हुई छेड़छाड़ के कारण देरी, मौखिक और फिज़िकल रूप से धमकियों और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा. लेकिन इन सभी चीज़ों ने कपल का हौसला नहीं टूटने दिया.
जब कपल का क़ानून से उठ गया था भरोसा
साल 2021 में एक इंटरव्यू के दौरान नीलम ने साल 2015 में उस पल को याद किया, जब वो आखिरी बार रोई थीं. ये तब हुआ था, जब सुप्रीम कोर्ट ने अंसल भाइयों की जेल की अवधि को एक साल से दो साल तक बढ़ा दिया था. लेकिन ये भी कहा था कि अगर दोषी 30 करोड़ रुपए का जुर्माना तीन महीने में भर देते हैं, तो उनकी उम्र को देखते हुए उन्हें कारावास की सजा नहीं काटनी पड़ेगी. नीलम ने इस बात का ज़िक्र करते हुए कहा कि उनका इसके बाद क़ानून पर से भरोसा उठ गया था.
साल 2017 में फिर से सुप्रीम कोर्ट ने भाइयों से 30-30 करोड़ जुर्माना भरने की डिमांड की. कोर्ट ने कहा कि इन रुपयों का इस्तेमाल सफ़दरगंज अस्पताल में एक ट्रामा सेंटर बनवाने के लिए किया जाएगा. इसे मामले के कुछ सकारात्मक परिणामों में से एक माना गया. पीड़ितों के परिवारों को भी मुआवजा दिया गया.
जब कपल की डेडिकेशन रंग लाई
इस दौरान सुशील अंसल को अपनी उम्र (77) और बाकी हेल्थ प्रॉब्लम की वजह से जेल से पांच महीने के बाद छोड़ दिया गया. वहीं, उनके भाई गोपाल को एक साल की सज़ा सुनाई गई. इसके बाद नवंबर 2021 में आख़िरकार दिल्ली कोर्ट ने सबूत से छेड़छाड़ के आरोप में सात साल की सज़ा सुनाई गई. लेकिन ये सज़ा किसी दूसरे केस में सुनाई गई थी. इसके अलावा उन दोनों पर 2.5-2.5 करोड़ का जुर्माना भी लगाया गया.
अभी भी है न्याय की उम्मीद
इसके बाद दिल्ली की एक और ट्रायल कोर्ट ने जुलाई 2022 में उनकी जेल की सज़ा के ख़िलाफ़ उनकी रिहाई का आदेश दिया, जो नवंबर 2021 से उनके द्वारा पहले ही ली जा चुकी थी. पटियाला हाउस कोर्ट के प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश ने 18 जुलाई, 2022 को मामले अंसल ब्रदर्स की 7 साल की जेल की सज़ा को न्यायिक हिरासत में “पहले से ही बिताई गई अवधि” तक कम कर दिया था.
जज ने अपने स्टेटमेंट में कहा था, “हमें आपसे सहानुभूति है. कई लोगों की जानें चली गईं, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती. लेकिन आपको ये समझना चाहिए कि दंडनीति प्रतिशोध के बारे में नहीं है. हमें उनकी उम्र पर विचार करना होगा. आपने झेला है, लेकिन उन्होंने भी झेला है.” कोर्टरूम से जाने से पहले नीलम ने जज से कहा था, “ये पूरी तरह से अन्याय है. हम क़ानून पर भरोसा नहीं कर सकते, अगर दोषी अमीर और पॉवरफुल है. मैंने कोर्ट आकर ग़लती कर दी. ये सिस्टम भ्रष्ट है.”
AVUT ने अपनी क़ानूनी लड़ाई छोड़ने से इंकार कर दिया. उन्होंने निचली अदालत के आदेश के ख़िलाफ़ दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया है.