Vietnam War: अमेरिका और वियतनाम के बीच 1 नवंबर 1955 से 30 अप्रैल 1975 तक युद्ध चला था. इस युद्ध में वियतनाम सुपर पावर अमेरिका को करारी शिकस्त दी थी. वियतनाम, लाओस और कंबोडिया की धरती पर लड़े गए इस युद्ध में कुल 1,35,3000 लोगों की मौत हुई थी. इस दौरान अमेरिका के 2,82000 जवान, PAVN/VC के 4,44,000 जवान, जबकि नॉर्थ एंड साउथ वियतनाम के 627,000 नागरिक मारे गए थे. इस युद्ध में वियतनाम की जीत के असल हीरो ‘महाराणा प्रताप’ और ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ थे. अब आप कहेंगे भला ऐसा कैसे हो सकता है!
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चलिए इसके पीछे की असल वजह भी जान लेते हैं-
दरअसल, वियतनाम युद्ध (Vietnam War) के दौरान वियतनाम की सेना ने अमेरिका को मात देने के लिए जिस ‘युद्ध नीति’ का इस्तेमाल किया था,उसकी प्रेरणा उन्होंने ‘महाराणा प्रताप’ और ‘छत्रपति शिवाजी महाराज‘ की ‘युद्ध नीति’ से ली थी. सैन्य क्षमता में अमेरिका से कमज़ोर होने के बावजूद वियतनाम ने 20 साल तक चले इस युद्ध में अमेरिका को करारी शिकस्त दी थी.

‘महाराणा प्रताप’ और ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ की रणनीति अपनाई
सन 1969 में वियतनाम युद्ध अपने चरम पर था. अमेरिका ने 5 लाख सेना युद्ध में झोंक दी. इस दौरान अमेरिका का लग रहा था कि, वियतनाम जैसे छोटे देश को हराना कोई मुश्किल नहीं है. लेकिन जब वियतनाम के सैनिकों ने शिवाजी महाराज की ‘गनिमी कावा नीति’ अपनाई तो अमेरिका की सेना को दिन में तारे नज़र आने लगे. इसके चलते अमेरिकी सरकार अपनी ही जनता की आलोचना की शिकार होने लगी. बाद में दबाव में आकर अमेरिका युद्ध से पीछे हट गया. जनता और विपक्ष के दबाव में आकर 1973 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने सेना वापस बुला ली. सन 1975 में ‘कम्युनिस्ट फ़ोर्सेस’ ने वियतनाम के सबसे बड़े शहर साइगोन पर कब्ज़ा कर लिया. इसी के साथ ‘वियतनाम युद्ध’ ख़त्म हो गया.

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अमेरिका पर विजय के बाद जब वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष से एक पत्रकार ने सवाल पूछा कि इस जीत का श्रेय वो किसे देना चाहते हैं. तो इस पर उनका कहना था कि विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका को हराने के लिए मैंने भारत के कुछ महान राजाओं की कहानियां पढ़ी. उनकी साहसिक कहानियों से प्रेरणा लेकर हमने उन्हीं की ‘युद्ध नीति’ का प्रयोग करके ये विजय प्राप्त की है.

इस दौरान पत्रकार महोदय ने वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष पूछा, ‘आख़िर वो कौन भारतीय राजा थे’?
इस पर वियतनाम के राष्ट्राध्यक्ष ने खड़े होकर जवाब दिया. ‘वो भारत के राजस्थान में मेवाड़ के ‘महाराजा महाराणा प्रताप’ और वीर मराठा ‘छत्रपती शिवाजी महाराज’ थे. काश! अगर ऐसे महान राजाओं ने हमारे देश में जन्म लिया होता तो हमने पूरे विश्व पर राज किया होता. कुछ साल बाद जब राष्ट्राध्यक्ष की मृत्यु हुई तो उन्होंने अपनी समाधि पर लिखवाया ‘ये महाराणा प्रताप और छत्रपती शिवाजी महाराज के एक शिष्य की समाधि है’.

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इसके कई साल बाद वियतनाम के विदेश मंत्री भारत के दौरे पर आए. पूर्व नियोजित कार्यक्रमानुसार उन्हें पहले लाल क़िला उसके बाद गांधीजी की समाधि दिखलाई गई. ये सब दिखने के बाद उन्होंने पूछा ‘मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप और छत्रपती शिवाजी महाराज की समाधि कहां है? ये सुनकर भारत सरकार के अधिकारी चकित रह गए! हालांकि, इसके बाद अधिकारी उन्हें पहले राजस्थान फिर महाराष्ट्र लेकर गए.

इस दौरान विदेश मंत्री ने ‘महाराणा प्रताप’ और ‘छत्रपती शिवाजी महाराज’ की समाधि के दर्शन किये. दर्शन करने के बाद उन्होंने समाधि के पास की मिट्टी उठाई और उसे अपने बैग में भर लिया. इस पर जब एक भारतीय पत्रकार ने मिट्टी रखने का कारण पूछा तो विदेश मंत्री महोदय ने कहा ‘ये शूरवीरों की मिट्टी है, इस मिट्टी में एक महान राजा ने जन्म लिया, ये मिट्टी मैं अपने देश की मिट्टी में मिला दूंगा, ताकि मेरे देश में भी ऐसे ही शूरवीर पैदा हो’.

हम भारतीय अपने जिन महान नायकों को भूल चुके हैं दूसरे देश उनसे प्रेरणा लेकर जीत हासिल कर रहे हैं.
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