Lance Naik Albert Ekka: आज़ादी के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच छिड़ी लड़ाई ने दोनों ही देशों से बहुत कुछ छीना है. कितने ही घर इस लड़ाई की बलि चढ़ गए, कितने आंगन सूने हो गए, कितनी ही गोद और कोख उजड़ गईं, लेकिन ये लड़ाई आज़ादी के इतने सालों बाद भी निरंतर जारी है. आज से कई सालों पहले सन् 1971 में 3 और 4 दिसंबर को भारत-पाकिस्तान के बीच एक लड़ाई हुई थी, जो पाकिस्तानियों के अगरतला में घुसपैठ करने के वजह से छिड़ी थी. इस घुसपैठ को भारतीय सेना के कई वीर जवानों ने अपनी बहादुर और सूझ-बूझ से नाकाम कर दिया था. इन्हीं बाहदुर और निडर जवानों में लांस नायक अल्बर्ट एक्का (Lance Naik Albert Ekka) भी थे, जिन्हें उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सम्मान वीरता पुरस्कार, परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

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Lance Naik Albert Ekka

एक्का का जन्म झारखंड के आदिवासी क्षेत्र में हुआ था

एक्का (Lance Naik Albert Ekka) का जन्म झारखंड के गुमला ज़िले के डुमरी ब्लॉक में स्थित जरी गांव में 27 दिसंबर, 1942 को हुआ था. इनके पिता जूलियस एक्का और माता मरियम लांस नायक की पढ़ाई को लेकर बहुत गंभीर थे, जिसके चलते उन्हें शुरुआती पढ़ाई के लिए अपने ही ज़िले के सी. सी. स्कूल पटराटोली भेजा गया. इसके बाद माध्यमिक परीक्षा के लिए भिखमपुर मिडल स्कूल गए. आदिवासी क्षेत्र से होने के चलते एक्का बचपन से ही तीर-कमान चलाने में रुचि रखते थे. इसी के चलते साल 1962 में एक्का को भारतीय सेना का हिस्सा बनने में सफ़लता हासिल हुई.

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1971 के भारत-पाक युद्ध से पहले ही मिल गई थी लांस नायक की उपाधि 

अपनी शुरुआती नौकरी के दौरान लांस नायक अल्बर्ट एक्का (Lance Naik Albert Ekka) बिहास रेजीमेंट में शामिल थे. इन्हें खेलों में भी ख़ासा रुचि थे. एक्का के फ़ेवरेट खेल हॉकी था, वो हॉकी घंटों खेला करते थे. इसके बाद, जब 14 गार्ड्स का गठन हुआ तो एक्का को वहां पर भेज दिया गया. अपनी बहादुरी के चलते एक्का का प्रमोशन हुआ और वो सन् 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध से पहले लांस नायक के पद पर नियुक्त हो गए. तभी 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया और एक्का की बटालियन को 3 दिसंबर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान में गंगासागर के पाकिस्तानी गढ़ पर कब्ज़ा करने का आदेश दिया गया. इस जंग को जीतना भारत के लिए बहुत ज़रूरी था क्योंकि यहां से अगरतला की दूरी सिर्फ़ 7 किलोमीटर के आसपास थी और पाकिस्तानी सेना अगरतला घुसपैठ करना चाहती थी. तो वहीं, भारतीय सेना को अखौरा के रुख़ करना था और इसी रास्ते से ठाका जाना संभव था.

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विरोधियों पर अकेले ही बम लेकर कूद गए

योजना के अनुसार, भारतीय सेना की दो टुकड़ियां तैयार की गईं, जिनमें से एक की कमान एक्का के हाथ में थी. विरोधियों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी, भारतीय सेना को परास्त करने के लिए. पाक सेना ने गंगानगर रेलवे स्टेशन के चारों-तरफ़ माइंस बिछा दिए थे, ताकि भारतीय सेना को रोक सकें. इतना ही नहीं, बड़ी तादाद में सैनिकों को मशीन गन के साथ भी तैनात किया गया, लेकिन पाकिस्तान ये नहीं जानता था कि उसका सामना एक्का से था और उन्हें रोकना मुश्क़िल था क्योंकि वो पाकिस्तान को हराकर मिशन को पूरा करने की ठान चुके थे. और अपनी सूझ-बूझ का परिचय देते हुए एक्का ने सबसे पहले पाकिस्तान के उन बंकरों को उड़ाया, जो लगातार मशीनगन से गोली बारी कर रहे थे. एक बंकर पर तो एक्का अकेले ही बम लेकर कूद गए, जिसमें वो गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन तब भी रुके नहीं.

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एक्का को बांग्लादेश ने ‘फ़्रेंड्स ऑफ़ लिबरेशन वॉर ऑनर’ से नवाज़ा

एक्का ने अकेले ही बम से उस बंकर को ख़त्म कर दिया, जिससे दुश्मन मशीनगन से भारतीय सेना पर लगातार गोलीबारी कर रहा था. मगर विरोधियों से जल्द ही एक्का पर निशाना साध लिया और वो अपने देश के लिए शहीद हो गए, लेकिन आंखें बंद होने से पहले उन्होंने फ़तेह हासिल करते हुए देख लिया था.

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एक्का की वीरता और सूझ-बूझ ही थी, जिसने पाकिस्तानी सेना को अगरतला में घुसने रोक दिया था. इस युद्ध को जीतने के बाद देश के मैप पर बांग्लादेश एक नया देश बना और एक्का को मरणोपरांत सेना के सर्वोच्च सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया. वहीं बांग्लादेश ने भी एक्का को ‘फ्रेंड्स ऑफ़ लिबरेशन वॉर ऑनर’ (Friends of Liberation War Honour) से नवाज़ा. रांची में लांस नायक अल्बर्ट एक्का के नाम पर एक राजमार्ग भी बना है.