RAW Agent Mohanlal Bhaskar: ऐसे बहुत से विषय हैं जिनके बारे में पढ़ने या सुनने में रोमांच का एहसास होता है. इसमें एक जासूस का विषय भी शामिल है. जासूसों पर कई उपन्यास लिखे जा चुके हैं और साथ ही कई फ़िल्में भी बन चुकी हैं. जासूसों की ज़िंदगी हमेशा से ही जिज्ञासा उत्पन्न करने का काम करती रही है कि कैसे एक जासूस अपनी असल पहचान छुपाए सालों तक किसी अंजान जगह पर रह लेते हैं और वहां ख़तरों का सामना करते हुए ज़रूरी जानकारी जुटाते हैं.
आइये, अब विस्तार से पढ़ते (RAW Agent Mohanlal Bhaskar) हैं आर्टिकल
जासूस मोहनलाल भास्कर

हम जिस भारतीय जासूस के बारे में आपको बताने जा रहे हैं उनका नाम है मोहनलाल भास्कर. उनके द्वारा लिखी किताब ‘An Indian Spy in Pakistan’ के अनुसार, उनका जन्म साल 1942 में पंजाब के अबोहर शहर में हुआ था.
देश भक्ति की भावना

RAW Agent Mohanlal Bhaskar : मोहनलाल भास्कर (Famous RAW Agents of India) के अंदर देश भक्ति की भावना शुरू से ही थी. वहीं, 1965 की भारत-पाक की लड़ाई के बाद देश के लिए कुछ कर गुज़रने का विचार उनके अंदर उबाल मारने लगा. एक बार उन्होंने शहीद भगत सिंह के समाधि स्थल पर उनके लिए समर्पित कुछ पंक्तियां पढ़ीं. लोगों ने ख़ूब तारीफ़ की.
अंडरकवर एजेंट

RAW Agent Mohanlal Bhaskar : देश भक्ति की भावना और देश के लिए कुछ ग़ुजरने का विचार उन्हें (पाकिस्तान में भारत के जासूस) RAW तक ले आया. एक ख़ास मिशन के लिए उन्हें 1967 में पाकिस्तान भेजा गया था. उनकी किताब में ज़िक्र मिलता है कि वो वहां मोहम्मद असलम नाम से रह रहे थे. साथ ही पाकिस्तानी जैसा दिखने के लिए उन्होंने सब कुछ उनकी तरह की कर लिया था. उन्हें वहां पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी जानकारी इकट्ठा करनी थी.
जब एक गद्दार की वजह से उन्हें पकड़ लिया गया

मोहनलाल भास्कर अपने जासूसी के काम को अंजाम दे ही रहे थे कि उन्हें एक दूसरे एजेंट की गद्दारी की वजह से पाक सेना द्वारा पकड़ लिया गया. मोहनलाल उस दौरान एक काउंटर-इंटेलीजेंस ऑपरेशन का हिस्सा थे. लेकिन, एक डबल एजेंट यानी भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए जासूसी करने वाले एक एजेंट ने उनके साथ गद्दारी कर दी और भास्कर को पकड़ लिया गया. उस गद्दार एजेंट का नाम था अमरीक सिंह. इन सब बातों का ज़िक्र उन्होंने अपनी किताब में बेबाकी से किया है.
झेलनी पड़ी यातनाएं

RAW Agent Mohanlal Bhaskar: जासूस मोहनलाल (Famous RAW Agents of India) को 1968 में गिरफ़्तार कर लाहौर की कोट लखपत जेल में बंद कर दिया गया था. वहां वो 1971 तक रहे थे. वहीं, जेल में उनकी मुलाक़ात पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो से भी हुई थी. वहीं, जब उन्हें जब 1971 में मियांवाली जेल में भेजा गया, तो वहां वो बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीब उर रहमान से भी मिले थे. उन्हें भी इसी जेल में रखा गया था.