Story behind the Maratha’s Victory Over Sinhagad Fort : हर किसी के जीवन में मां की भूमिका अहम होती है. वो मां ही होती है जो जीवन देने के साथ बच्चे को शुरुआती शिक्षा भी देती है. इसके अलावा, बच्चे को आगे बढ़ने की प्रेरणा और उसका ठीक से ख़्याल रखना एक मां ही करती है. इसलिए, कहा भी जाता है कि मां भगवान का रूप होती है और मां की जगह कोई नहीं ले सकता है. 

आइये, इसी क्रम में हम आपको बताने जा रहे हैं जीजाबाई के बारे में जिनके शब्दों का सम्मान रखने के लिए बेटे शिवाजी ने जीत लिया था मुगलों से सिंहगढ़ का किला. वो जीजाबाई ही थीं, जिन्होंने शिवाजी को शक्तिशाली बनाने का काम किया.  

आइये, अब विस्तार से पढ़ते हैं आर्टिकल (Story behind the Maratha’s Victory Over Sinhagad Fort).  

पहले जान लीजिए कि कौन-थीं जीजाबाई 

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जीजाबाई वीर छत्रपति शिवाजी महाराज की माता थीं. उनका जन्म 12 जनवरी 1598 को हुआ था. वहीं, बहुत ही छोटी उम्र में उनकी शादी शिवाजी भौसले के साथ करा दी गई थी. उनके बारे में कहा जाता है कि बचपन से ही ज़रूरतमंदों और ग़रीबों के लिए उनके मन में दया की भावन थी. वो अपना बचाव करने और आक्रमणकारियों को मुंहतोड़ जवाब देने के बारे में बहुत मुखर थीं. 

इसके अलावा, वो एक गुणी नेता थीं, जो आंतरिक मुद्दों को सुलझाने के दौरान हमलावरों पर हमला करने और शांत दिमाग़ रखने में विश्वास करती थीं.  

भोंसले और जाधवों की ऐतिहासिक एकता  

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कहते हैं कि एक बार जीजाबाई ने अपने पिता से कहा था कि मराठा केवल अहंकार और लालच के लिए एक-दूसरे से लड़ रहे हैं. अगर उनकी वीर तलवारें एकजुट हो जाती हैं, तो विदेशी आक्रमणकारियों को कुछ ही समय में परास्त किया जा सकता है. अपनी आजीविका के लिए आक्रमणकारियों के अधीन काम करना शर्म की बात है. उनके शब्दों ने भोंसले और जाधवों की ऐतिहासिक एकता को जन्म दिया था. 

एक राष्ट्रवादी महिला  

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शिवाजी महाराज के ‘स्वराज’ के प्रति अटूट स्नेह के पीछे उनकी मां जीजाबाई की परवरिश थी. वो एक उच्चतम स्तर की राष्ट्रवादी महिला थीं और मराठाओं द्वारा लिए गए कई अच्छे निर्णयों में उनकी सक्रीय भागीदारी थी.  

सिंहगढ़ क़िले को जीतने के लिए किया प्रेरित  

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Story behind the Maratha’s Victory Over Sinhagad Fort : ये माता जीजाबाई ही थीं जिसकी वजह से छत्रपति शिवाजी सिंहगढ़ का किला मुग़लों से जीत पाए थे. दरअसल, ‘भारत की गरिमामयी नारियां’ नाम पुस्तक में इससे जुड़ा एक क़िस्सा दर्ज है. किताब में जिक्र मिलता है कि जब भी जीजाबाई सिंहगढ़ क़िले पर मुग़लों का झंडा देखती थीं, तो उन्हें दुख होता था. एक दिन उन्होंने बेटे शिवाजी को अपने पास बुलाया और कहा कि, “तुम्हें सिंहगढ़ क़िले से विदेशी झंडे को उतारकर फेंकना होगा. मैं तुम्हें तब ही अपना पुत्र मानूंगी जब तुम सिंहगढ़ क़िले पर आक्रमण कर वहां से विदेशी झंडे को उतार फेंकोगे”.  

इस पर बेटे शिवाजी ने उत्तर दिया कि, “मां सिंहगढ़ का किला अभेद्य है और वहां मुग़लों की एक बड़ी सेना तैनात है. ऐसे में उस क़िले पर विजय प्राप्त करना बड़ा कठीन काम है”.  

क्रोध में आ गईं थीं माता जीजाबाई  

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बेटे शिवाजी के मुख से ये बात सुनकर माता जीजाबाई क्रोध में आ गई थीं, उनकी आंखें लाल हो गईं थीं. उन्होंने क्रोध अवस्था में बेटे शिवाजी से कहा कि, “धिक्कार है तुम्हें बेटा शिवा! तुम्हें ख़ुद को मां भवानी का पुत्र कहना छोड़ देना चाहिए. तुम चूड़ी पहनकर घर बैठ जाओ. मैं ख़ुद ही ये काम कर लूंगी”.  

लज्जित हो गए थे शिवाजी  

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Story behind the Maratha’s Victory Over Sinhagad Fort : मां के मुख से ये बातें सुनकर शिवाजी लज्जित हो गए थे. उन्होंने माता के पैरों में गिरकर कहा कि, “मैं तुम्हारी इच्छा ज़रूर पूरी करूंगा, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े. मैं आपके सामने प्रतिज्ञा लेता हूं”. इसके बाद उन्होंने तानाजी को बुलाया और कहा कि, “सिंहगढ़ पर चढ़ाई के लिए फ़ौज को तैयार कीजिए, किसी भी हालत में सिंहगढ़ पर मराठाओं का अधिकार होना चाहिए”. 

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Story behind the Maratha’s Victory Over Sinhagad Fort : तानाजी ने छत्रपति शिवाजी के आदेश का पालन किया और सिंहगढ़ पर आक्रमण कर दिया. उन्होंने अपनी मराठा फ़ौज के साथ सिंहगढ़ क़िले पर आक्रमण कर दिया और क़िले पर विजय पताका फहराया दिया, लेकिन इसके लिए उन्हें अपनी जान देनी पड़ी. जब ये ख़बर शिवाजी को पता चली, वो उनकी आंखों में आसूं आ गए और उन्होने कहा कि गढ़ तो आ गया, लेकिन सिंह चला गया”.