स्थान: कठुआ, जम्मू-कश्मीर
Case 01
क्या हुआ: जनवरी में एक 8 साल की बच्ची को कुछ लोगों ने पूरी प्लैनिंग के साथ अगवा किया, नशीली दवाईयां दीं और मंदिर के देवस्थान में रेप किया. 1 हफ़्ते तक टॉर्चर करने के बाद बच्ची को उसी की शॉल से गला घोंट कर मार दिया गया. रिपोर्ट्स के अनुसार, इस पूरी वारदात में पुलिसवाले भी शामिल थे और उन पर जांच से पहले सुबूत मिटाने के आरोप भी लगे हैं. आरोपियों को हिरासत में लिए जाने का पुरज़ोर विरोध किया गया. रेप के जघन्य अपराध में आरोपियों की रिहाई की मांग करते हुए 4 महिलाएं भूख हड़ताल पर बैठ गईं. एक आपराधिक मामले को सांप्रदायिक और राजनैतिक शक्ल दे दी गई.
Case 02
स्थान: उन्नाव, उत्तर प्रदेश
क्या हुआ: एक 17 साल की लड़की ने विधायक पर पिछले साल बलात्कार करने का आरोप लगाया. जब कहीं कोई कार्रवाई नहीं हुई, तब उसने मुख्यमंत्री आवास के सामने ख़ुद को जलाने की कोशिश की. पुलिस ने ‘अवैध हथियार’ रखने के जुर्म में पिता को गिरफ़्तार कर लिया. ‘संदिग्ध हालत’ में लड़की के पिता की मौत हो गई. आरोप है कि पुलिसवालों ने ही लड़की के पिता को पीट कर मार डाला. ज़ख़्मी पिता के कई वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किए गए. कुछ लोग बीजेपी के खिलाफ़ साज़िश बताते हैं, तो कुछ लोग मुख्यमंत्री पर लांछन लगाने की कोशिश. कोई सांप्रदायिक हिंसा नहीं, लेकिन कहीं भी लोग एकजुट होकर आवाज़ उठाते नहीं दिखे.
Case 03
स्थान: कासूर, पंजाब क्षेत्र, पाकिस्तान
क्या हुआ: क़ुरान की तालीम लेने के लिए 6 साल की एक बच्ची घर से निकलती है. रास्ते में ही उसे अगवा कर लिया जाता है. रेप करने के बाद गला घोंटकर फेंक दिया जाता है. पूरा देश एकजुट होकर सरकार को जल्द से जल्द इंसाफ़ करने पर मजबूर करता है. देश-भर में विरोध प्रदर्शन होते हैं. एक न्यूज़ एंकर अपनी बच्ची को गोद में बैठा कर बुलेटिन पढ़ती है. पुलिस और सरकार को लोगों की सुननी पड़ती है और आरोपी को हिरासत में लेकर, मुक़दमा चलाकर सज़ा दी जाती है
मेरा भारत महान, नहीं है!
मेरा भारत महान नहीं रहा. दुनियाभर में इतिहास का हवाले देकर भारत का गुणगान करना, आज से ही बंद कर दो, क्योंकि हम महान नहीं हैं. देश में हुई ये दो रेप की घटनायें हमारी महानता को नंगा कर चुकी हैं. ये साबित कर चुकी हैं कि हम, हमारा समाज, फ़ेल हो गए हैं.
एक पवित्र स्थान में एक बच्ची का कई दिनों तक रेप किया जाता है, सुबूत मिटा दिए जाते हैं और पूरी घटना को सांप्रदायिक लबादा ओढ़ा दिया जाता है. वकील चार्जशीट दायर करने का विरोध करते हैं, वो भी तिरंगे के साथ. अपराधी के हक़ में तिरंगा लहराया जाता है. हम चुप हैं.
एक दूसरे राज्य में, महीनों तक एक लड़की ख़ुद के साथ हुए रेप की रिपोर्ट दर्ज करवाने के लिए दर-दर भटकती है, मुख्यमंत्री आवास के सामने ख़ुद को जलाने की कोशिश करती है, उसके पिता को मार दिया जाता है. हम फिर भी चुप हैं.
हम बुरे से बेहतर हैं, ये रोना बंद कर दो
हां इस देश में महिलाओं की हालत बाकी कई पिछड़े देशों से बेहतर है, हां इस देश में महिलाओं को अधिकार मिले हुए हैं. लेकिन ये वही देश है, जहां एक रेप केस सिर्फ़ इसलिये रजिस्टर नहीं होता क्योंकि आरोपी विधायक है. ये वही देश है, जो रेप विक्टिम के प्रति इस लिए संवेदना नहीं दिखाता, क्योंकि वो एक अलग धर्म से है.
सरकार को कड़े फै़सले न लेने के लिए गालियां देने वाले भी होंगे, लेकिन पहले ख़ुद से ये सवाल पूछिए कि, आपने इस समाज को बेहतर बनाने के लिए क्या किया? क्या अापने सरकार को मजबूर किया कि वो ऐसे संगीन मामलों को आपके ज़हन से न निकलने दे? इंसानों से सरकार बनती है या सरकार से इंसान?
जिस पाकिस्तान से ख़ुद को बेहतर समझने का ग़ुमान आप आज तक रखते आये हैं, उसी देश में एक बच्ची के जघन्य रेप के बाद पूरा देश इंसाफ़ के लिए सड़कों पर उतर आया था. उसी देश में थोड़ी ही देर में सरकार को आरोपी को ढूंढ कर सज़ा देनी पड़ी. अब भी कहेंगे, आप बेहतर हैं? अब भी एक बेहतर समाज होने का मुखौटा पहनेंगे?
अनेकता में एकता, सांप्रदायिक सौहार्द के जो लंबे-लंबे आलेख लिखते हैं न, उनमें आग लगा दो. क्योंकि ये सब व्यर्थ है. रेपिस्ट का समर्थन करने वाले इस समाज के लोग कहीं से भी महान नहीं हो सकते. इंसान के तौर पर हम इतना गिर चुके हैं कि एक बलात्कार के आरोपी की रिहाई की मांग कर रहे हैं. उस 8 साल की बच्ची का कसूर क्या था? या फिर जो लड़की इंसाफ़ की गुहार लेकर दर-दर भटक रही है, उसका या उसके पिता का क्या कसूर था. क्यों हम अन्याय और जुर्म के खिलाफ़ एकजुट नहीं हो सकते?
दूसरों के दुख में दुखी होना मानवता है, यही पढ़ाया जाता था बचपन में. यहां हिन्दू-मुस्लिम, ऊंच-नीच, जात-पात कहां से आ गया? क्या धर्म और जाति के हिसाब से बलात्कार की परिभाषा भी बदल जाती है? देश को एक अलग सरकार से ज़्यादा, एक नए समाज की ज़रूरत है.