मधुर मनोहर अतीव सुंदर, ये सर्वविद्या की राजधानी,

यह तीनों लोकों से न्यारी काशी.

सुज्ञान धर्म और सत्याराशि.

बसी है गंगा के रम्य तट पर, यह सर्वविद्या की राजधानी….

ये है काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का कुल गीत. इस विश्वविद्यालय से पढ़ा हर विद्यार्थी इस गीत से भली-भांति परिचित होगा. आज भी याद है ये कुलगीत… इसे सब साथ मिलकर गाते थे और गीत ख़त्म होने पर कोई ताली नहीं बजाता था. ठीक वैसे ही जैसे राष्ट्रीय गीत या राष्ट्रीय गान के बाद हम ताली नहीं बजाते.

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सर्वविद्या की इस राजधानी की पूर्व छात्रा होने के नाते इस गीत से भी अपना एक अलग ही जुड़ाव है और इस विश्वविद्यालय से भी. कहीं भी बीएचयू का नाम पढ़ो या सुनो तो आंखों पर एक अलग चमक आ जाती है. पिछले साल सितंबर में आखिरी बार गई थी वहां, ग्रेजुएशन की डिग्री लेने. तब भी वहां कुछ लड़के आपस में भिड़ गये थे. मेरा स्वागत जलती बाइक्स के अवशेष और पुलिस ने किया था. ग्रेजुएशन के 3 साल में ऐसे नज़ारों की आदत हो गई थी.

जब मैं यूनिवर्सिटी में पढ़ती थी तब भी कई बवाल हुए. कभी छात्र संघ को दोबारा लागू करने को लेकर तो कभी मेस को लेकर. मेस के खाने को लेकर 3 दिन की हड़ताल में तो हमने भी हिस्सा लिया था. तीन दिन तक कुछ खाया ही नहीं था मेस से.

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विश्वविद्यालय प्रांगण में कुछ भी हो, पर सबसे पहले MMV यानि कि यूनिवर्सिटी के इकलौते Girl’s कॉलेज के मुख्यद्वार बंद हो जाते थे. शुरू-शुरू में समझ नहीं आता था कि बंधन में रख कर हमें सुरक्षित रखने का ये कौन सा तरीका है? हमारे लिए तो कॉलेज वैसे वैसे भी सुरक्षित जगह ही थी. ये बात काफ़ी देर में समझ आई कि ये नियम सुरक्षा के लिए कम और लड़कियों को ‘उन गतिविधियों’ में शामिल न होने देने का एक तरीका था. मतलब साफ़ है कॉलेज के गेट के बाहर लड़कियों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उनकी ख़ुद की है.

लकड़ियों के साथ छेड़खानी भारत के हर कॉलेज, बाज़ार, सड़क, मुहानों पर होती आई है, फिर ऐसा क्या हो गया इस बार BHU की लड़कियां सड़क पर उतर आयीं?

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विश्वविद्यालय की एक छात्रा को कुछ मनचलों ने छेड़ा और उसके कपड़ों के अंदर हाथ डालने की भी कोशिश की. मदद मांगने पर पीड़िता को ही दोषी ठहरा दिया गया. ये भी कोई नई बात नहीं. बेवक़्त(शाम के 6 बजे) बाहर न टहलने की हिदायत दी गई. कोई नई बात नहीं, हमारे समय में भी ऐसा ही होता था, हॉस्टल वापस आने का समय 6:30 बजे था, दबाव बनाने के बाद 8 बजे किया गया.

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उस वक़्त जो हम ना कर पाए आज हमारी जूनियर्स ने किया. लड़कियों की सुरक्षा को लेकर सड़क पर उतर गईं. सहपाठियों ने भी साथ दिया. मांग तो सिर्फ़ एक थी कि वीसी उनकी सुरक्षा की गारंटी दें. इस घटना के बारे में जब मैंने दोस्तों से सुना, तब लगा था कि ये काफ़ी आम बात है. क्योंकि आमतौर पर वीसी ऐसे मामलों में चुप्पी को तरजीह देते हैं.

शनिवार रात की घटना रविवार सुबह पता चली, तो अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. फ़ोन पर आते लगातार वीडियोज़ ने दिमाग़ सुन्न कर दिया. जिस कॉलेज के गेट के अंदर कभी शान से सिर उठाकर जाते थे, उस गेट के अंदर उन बच्चियों को जानवरों की तरह खदेड़ा गया. डंडे पुलिस के हाथों में थे, पत्थर उन्होंने फेंके थे. फिर अराजकता लड़कियों ने कैसे फैलाई?

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नियमों को ताक पर रखकर लात, लाठी और लांछन तीनों खाए. सड़क पर पड़े चप्पल और दुपट्टे अपनेआप ही काफ़ी कुछ कह रहे थे. वीडियो में सब कुछ साफ़ दिख रहा है कि वहां एक भी महिला पुलिस नहीं थी.

बाद में पता चला की पुलिस की इस बर्बरता में कुछ हॉस्टल के कुछ वार्डन भी घायल हुए.

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का वो सिंह द्वार, जिसके आगे सिर अपनेआप झुक जाता था, उस पर Unsafe BHU का इतना बड़ा पोस्टर देखकर जो महसूस हुआ, उसके लिये दुख काफ़ी छोटा शब्द है. जिस प्रांगण में घंटों टहल-टहलकर आने वाले भविष्य की प्लैनिंग की थी, वहां की ये दशा देखकर मैं स्तब्ध थी.

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रविवार देर रात विश्वविद्यालय के वीसी बीबीसी को सफ़ाई देते नज़र आये. वीसी ने दावा किया कि प्रांगण में फिर से राष्ट्रवाद स्थापित करेंगे. महोदय, लड़कियों के साथ हो रही छेड़छेड़ की घटनाओं को आप किस बुनियाद पर राष्ट्रवाद से जोड़ रहे हैं? छात्राओं को उनकी सुरक्षा का झूठा दिलासा ही दे देते, लेकिन आपके लिए प्रेस को Address करना ज़्यादा ज़रूरी था.

ना वीसी ने कुछ कहा, ना शिक्षकों ने, ना नेताओं ने. मतलब साफ़, छात्र बिल्कुल अकेले हैं और सामने सैंकड़ों की संख्या में हथियारबंद पुलिस. गनमित है गोलियां नहीं चली. चल भी जाती तो क्या था? ये छात्राएं तो राष्ट्र का अहित कर रही थी.

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ये पूरा घटनाक्रम कई सवाल खड़े करता है. ग़लती किसकी थी? उस छात्रा की, उस प्रोक्टर की, देश चलाने वालों की या इस पूरे समाज की?

हे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तुझे शत-शत प्रणाम कि तू आराम से अपनी ही दीवारों पर ख़ून के छींटे देख पा रहा है. हम में तो हिम्मत नहीं और न ही काशी को पवित्र करने वाली गंगा में… गंगा भी इस दाग़ को अपने पानी से नहीं धो सकती.