तेरे तो जलवे हैं
ये सब बातें हर उस बच्चे को सुनने को मिलती हैं जिसके पेरेंट्स उसके स्कूल टीचर भी होते हैं. आप में से कितने बच्चे ऐसे होंगे. मेरे ग्रुप में तो हैं, मेरी सीनियर हैं उनकी मम्मी स्कूल टीचर थीं और उन्हें इस बात की बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ती थी. कोई ग़लती हो जाए, तो पहले स्कूल में डांट खानी पड़ती थी फिर घर में भी. दूसरी मेरी साथी उसके पापा उसके स्कूल टीचर थे और उसके पास कोई ऑप्शन नहीं होता था लेट जाने का या मस्ती करते हुए जाने का.
जिन्हें लगता है कि स्कूल टीचर के बच्चे होना बड़ी टशन वाली बात होती है. वो ज़रा ये Illustrations देख लें.
1. किसी को भी टैलेंट नहीं दिखता है बस सबको यही ग़लतफ़हमी रहती है कि मैम या सर के बच्चे हैं इसलिए महत्व दिया जा रहा है.
2. बाकी बच्चों की तरह स्कूल बस में बच्चों के साथ मस्ती करने का मन होता है, लेकिन जिन बच्चों के पेरेंट्स ही टीचर भी होते हैं वो ऐसा नहीं कर पाते हैं.
3. अगर ग़लती से किसी काम के लिए मम्मी या पापा के पास स्टाफ़रूम में चले गए, तो बस बाकी बच्चों को लगता है कि हमें जन्नत मिल गई. ऐसा नहीं है भाइयों.
4. आप लोगों क्या जानों, अपने ही मम्मी-पापा को मैम और सर बुलाना कितना अजीब लगता है.
5. आप लोग खुलकर मस्ती तो कर लेते हो, हमें तो सौ बार सोचना पड़ता है क्योंकि हमारी शिकायत आपसे पहले हमारे पेरेंट्स तक पहुंच जाती है.
6. वो पल तो ज़मीन में गड़ जाने वाला होता है जब मम्मी-पापा निक नेम लेकर बुला लेते हैं और निक नेम कहीं अजीब सा हुआ तो फिर दोस्त जो मज़े लेते हैं वो भी झेलना पड़ता है.
7. सबसे ज़्यादा बुरा तब लगता है जब अपने ही दोस्तों को हमारे नम्बरों पर शक़ होता है उन्हें लगता है कि हमारे ग़लत जवाबों को हमारे पेरेंट्स कॉपी चेक करते समय सही कर देते हैं.
8. अपने रफ़ एंड टफ़ पापा को जब क्लास रूम का माहौल ख़ुशनुमा करने के लिए हंसी-मज़ाक करते देखते हैं तब बहुत ही आश्चर्य लगता है.
9. किसी भी ग़लती में दो लोगों की हिस्सेदारी होती ही है, लेकिन ग़लती किसी की भी हो सज़ा हमें ही मिलती है और कोई भी ग़लती जाने नहीं दी जाती है.
10. जैसे तुम लोग थोड़ा लेट आ सकते हो, घूमते फिरते आ सकते हो. हम ऐसा कुछ नहीं कर पाते क्योंकि हमें मम्मी या पापा के साथ आना होता है और उन्हीं के साथ जाना होता है.
11. तुम लोगों के पास कम मार्क्स लाने का ऑप्शन भी होता है, हमारे पास वो भी नहीं होता है. अगर कम मार्क्स आ गए तो स्कूल में तो डांट पड़ती ही है घर में भी डांट पड़ती है.
12. हां, एक छोटा सा फ़ायदा होता है कि कभी-कभी टीचर और स्टूडेंट होने के बावजूद भी उनके बेटे या बेटी होने का एहसास जाग जाता है और उनके किसी कठिन सवाल पर थोड़ा सा गुस्सा कर देते हैं.
13. जब हमें डांट पड़ती है, तो बाकि बच्चे मज़े ले रहे होते हैं.
14. हमसे पूछो जब कोई क्लासमेट चापलूसी करके हमारे मम्मी-पापा का फ़ेवरेट बन जाता है और वो बस उसके ही गुणगान करते रहते हैं.
इन प्यारे-प्यारे Illustraions को बनाने का काम Muskan Baldodia ने किया है.
Life से जुड़े आर्टिकल ScoopwhoopHindi पर पढ़ें.