Dear 2017,
बहुत समय से तुम्हारा इंतज़ार हो रहा था, सब कह रहे थे कि इस बार तुम कई खुशियां लेकर आओगे. 2016 से भी सभी को कुछ ऐसी ही आशाएं थीं, लेकिन उसने उस दोस्त की तरह धोखा दे दिया, जो उधार देने के बाद सीना चौड़ा कर के आपके सामने से ऐसे गुज़रता है, जैसे आपने उसका उधार देना हो. लेकिन अब तुम आ गए हो, तो तुम से सभी ने फिर से आशाएं पाल ली हैं.
लेकिन इस बार मैं तुम से कोई आशा नहीं रखूंगी. मैं न तो तुमसे से ये उम्मीद लगाउंगी कि तुम मेरे लिए कुछ नया लेकर आओ और न ही साल के अंत तक मैं तुमसे ये सवाल पूछूंगी कि तुम भी सोनम गुप्ता की तरह बेवफ़ा निकले?
पिछले साल मैंने ख़ुद से वादा किया था कि इस बार अपनी ज़िन्दगी को और बेहतर करूंगी… एक अलार्म पर उठने का जो प्रण मैंने लिया था, वो पहले ही दिन टूट गया और मैंने अपने आलस को तुम्हारी मनहूसियत की आड़ में छुपा लिया.
जब भी किसी एक्टर का Body Transformation देखती थी, तो लगता था कि मैं भी ये कर सकती हूं, इसलिए अगले ही दिन से कोशिश करने की कसम खा लेती, लेकिन गिनती के 4 दिन भी ये कसम पूरी न हो पाती. कुछ दिनों के बाद तो घरवाले भी लताड़ने लगे थे कि जब हो नहीं पाता, तो कोशिश क्यों करती हो. और मैं भी कभी टाइम को, तो कभी ऑफिस की मसरूफ़ियत पर नेता की तरह आरोप लगा देती.
कभी-कभी लगता था कि Friendzone की हुई वो अलार्म घड़ी भी हर साल मुझ से यही उम्मीद लगाती होगी कि कभी न कभी तो इसे मेरी Importance का पता चलेगा. पिछले 4 सालों में वो दिन अभी तक नहीं आया.
इस साल मैं अपनी नाकामयाबी के लिए न तो किसी घड़ी पर इल्ज़ाम लगाउंगी, न ही किसी इंसान के भरोसे नए साल के प्लान बनाऊंगी. क्योंकि अगर मेरे कुछ काम अधूरे रह गए, तो ये मेरी ग़लती है. क्योंकि मैं कभी जोश में लिए इन फ़ैसलों के लिए Mentally तैयार ही नहीं थी. और जब तक मैं ख़ुद तैयार नहीं हूं, मुझसे कोई काम नहीं करवा सकता.
लेकिन मैं इस साल को दूसरों के भरोसे नहीं जीना चाहती. मुझे मलाल है कि मैंने वो कुछ भी नहीं किया, जो मैं कर सकती थी. उसमें फ़ेल और पास होने की बात तो दूर, मैंने कोशिश भी नहीं की, लेकिन इस बार न मैं कोई New Year Resolution लूंगी, न ही साल के अंत में उसे पूरा न कर पाने का अफ़सोस मनाऊंगी.
नई किताबें पढ़ने, फ़ोन कम इस्तेमाल करने, फ़ास्ट फ़ूड नहीं खाने, टाइम से उठने, न की जगह हां न कहने, अपनी हॉबी को टाइम देने की लम्बी लिस्ट बना ली थी मैंने. लिस्ट कम बोझ ज़्यादा थी, जो एक मीडिया हाउस में काम करने वाले के लिए नाइंसाफी है. साल आगे बढ़ता रहा और मेरे Resolution की Deadline (समयसीमा) भी खिसकती रही. और 31 दिसंबर को जब नए साल के लिए घड़ी की सुई रेस लगा रही थी, मुझे अपने उन सभी सपनों की इमारत टूटती हुई दिख रही थी, जो मैंने कच्ची मिट्टी से बनाई थी.
इसलिए 2017, मैं तुमसे कोई उम्मीद नहीं लगाने वाली, क्योंकि सच्चाई ये है कि इंसान उम्मीद तुम से नहीं, अपने आप से लगाता है. और जब वो उन्हें पूरा नहीं पाता, तो उसका इल्ज़ाम लगता है, बेचारे बीते साल पर. इसलिए 2016, 2015, 2014, 2013 को Sorry, जितनी भी बार मैंने अपनी गलतियों के लिए तुम्हें लताड़ा या यू कहूं, जब ख़ुद को गुनहगार मानने की हिम्मत नहीं थी, तो सारा ठीकरा तुम्हारे सिर फोड़ दिया.
इस साल बस ख़ुद से एक Promise है, इस साल के हर दिन को पूरी तरह जियूंगी. हर दिन को ख़ुद को बेहतर बनाने की जद्दोजेहद में नहीं, हर दिन को जीने की कोशिश करूंगी. अब हारने का भी डर नहीं, क्योंकि इस बार जीत-हार किसी साल की नहीं, मेरी होगी.
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