हम लॉकडाउन को लेकर कितना ही बुरा-भला क्यों न कह लें. पर ये सच है कि इस दौरान बहुत सी अच्छी चीज़ें भी हुई हैं. जो हमें नहीं भूलनी चाहिये. एक अच्छी ख़बर बेंगलुरु से भी आई है. जहां एक बुज़ुर्ग को उसका खोया हुआ परिवार मिल गया. 

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70 साल के करम सिंह की कहानी बड़े पर्दे की कहानी से कम नहीं है. लॉकडाउन से पहले वो मैसूर की सड़कों बेसहारा घूम रहे थे. वहीं लॉकडाउन के दौरान स्थानीय पुलिस की नज़र करम सिंह पर पड़ी. करम सिंह की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी. इसलिये कोई उनके बारे में कुछ नहीं जानता था. पुलिस के अधिकारी देखभाल के लिये करम सिंह को बेसराहा लोगों के लिये बना Nanjaraja Bahadur वृद्धाश्रम ले गये. 

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वहां मनोचिकित्सकों द्वारा करम सिंह का इलाज शुरू किया गया. कुछ ही दिनों में करम सिंह की स्थित बेहतर होने लगी और उनकी खोई याददाश्त वापस आने लगी. ठीक होने पर करम सिंह ने बताया कि वो पहले बेसहारा नहीं थे और उत्तर प्रदेश में उनका एक परिवार है. आज से करीब 3 साल पहले वो बेटे की शादी के लिये पैसे का इंतज़ाम करने गांव से बाहर निकले थे. इस दौरान वो अंजाने में बेंगलुरु की ट्रेन में बैठ मैसूर तक पहुंच गये. लंबी यात्रा और चिंता की वजह से उन्हें Schizophrenic हो गया. इसके बाद उन्हें अपने बीते हुए कल के बारे में कुछ याद नहीं था. इस दौरान करम सिंह सड़कों पर लोगों द्वारा दिया गया खाना खा कर जीवन गुज़ार रहे थे. 

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घटना की जानकारी मिलने के बाद Mysore City Corporation ने पुलिस के ज़रिये करम सिंह के घरवालों से संपर्क किया. करम सिंह के बच्चों को ये जानकर कर खु़शी हुई कि उनके पिता ज़िंदा हैं और ठीक हो रहे हैं. बच्चों को ऐसा लगता था कि उनके पिता अब जीवित नहीं हैं. स्वैच्छिक संगठन क्रेडिट-आई अब करम सिंह मैसूर से यूपी भेजने की तैयारी कर रहा है. परिवार ने बच्चों को उनके पिता से मिलाने के लिये अधिकारियों का शुक्रिया भी अदा किया है. 

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