बचपन की दोस्ती और दोस्त दोनों ही ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा होते हैं. उन जैसे दोस्त चाहकर भी कभी नहीं मिल पाते हैं. जबकि बड़े-बड़े होते-होते हम कितने लोगों से मिलते हैं दोस्ती भी करते हैं, लेकिन जो बात बचपन वाली दोस्ती में होती है वो उसमें नहीं होती. बचपन की वो प्यारी यादें, वो शरारतें जब हम एक-दूसरे से शेयर करते हैं, तो बचपना फिर से खेलने लगता है. उन यादों के साथ दोस्त ही नहीं, बल्कि बचपन भी वापस आ जाता है. इसीलिए बचपन के दोस्त दूर भले ही हो जाएं, लेकिन अलग नहीं हो पाते.
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बचपन वाली दोस्ती और बड़े होने के बाद की दोस्ती में क्या फ़र्क़ होता है, वो जान लो:
1. बड़े होने पर दोस्त ज़रूर बनते हैं, लेकिन बचपन के दोस्तों से अगल ही जुड़ाव होता है.
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2. Adult Friendship में बहुत सारी सीमाएं होती हैं, लेकिन बचपन की दोस्ती में कोई भी सीमा नहीं होती है.
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3. बचपन के दोस्त को आपकी सारी अच्छी-बुरी बातें पता होती हैं, लेकिन बड़े होने पर बनने वाले दोस्तों से कुछ बातें छुपानी पड़ती हैं.
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4. बचपन के दोस्तों को आपकी ज़िंदगी से जुड़े हर एक प्रयासों के बारे में पता होता है. आपकी सफ़लताओं और असफ़लताओं के बारे में पता होता है. बड़े पर होने वाली फ़्रेंडशिप में ऐसा बहुत कम होता है.
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5. क्लास में हर पेपर में रोने वाले दोस्त बचपन में ही मिलते हैं. बड़े पर तो सब पढ़े लिखे ही मिलते हैं.
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6. बचपन की दोस्ती में दिल टूटे हुए दोस्त, प्यार ढूंढने वाले दोस्त और बिना सोचे समझे कुछ भी करने वाले दोस्त मिलते हैं. मगर अडल्ट होने पर हम ऐसे दोस्त ही बनाते हैं जो सुलझे हुए हों.
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7. बचपन वाली दोस्ती में बोलने से पहले सोचना नहीं पड़ता है, लेकिन बड़े होने पर मिले दोस्तों से थोड़ा सा सोच समझकर बोलना पड़ता है.
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8. हम बचपन के दोस्तों के सामने टशन नहीं मार सकते, वो एक मिनट में सारा टशन उतार देते हैं. मगर अडल्ट फ़्रेंडशिप में टशन ही सबसे ज़्यादा चलता है.
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9. बचपन के दोस्त कितने भी सालों के बाद मिलें, लेकिन उनके सामने वो सब बताने का मन करता है, जो किसी को न बताया हो.
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बड़े चेत्ते औंदे ने यार अनुमल्ले..हवा दे बुल्ले…सच में बहुत याद आते हैं वो दोस्त.
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