कल ट्विटर पर एक तस्वीर देखी, जिसको देखकर लगा कि Nannies और Maids की हालत इस देश में ग़ुलामों जैसी ही है. अकसर रेस्त्रां में भी देखती हूं, Nanny/Maid को बाहर या फिर एक कोने में बैठाकर पूरा परिवार Enjoy कर रहा है. क्या उन लोगों के मन में एक बार ये नहीं आता कि वो जो कोने में खड़ी है अपना घर-परिवार, बच्चे छोड़कर तुम्हारा घर संभालने आई है?

ये ख़त है देश के लगभग हर दूसरे घर में काम करने वाले भैया/दीदी/अंकल/आंटी के नाम.

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प्रिय संध्या दीदी,

आज 1 महीना हो गया मुझे शहर बदले हुए. कल मेस में खाना खाते-खाते अचानक तुम्हारी याद आ गई. कढ़ी-चावल खा रही थी. नौकरी अच्छी चल रही है, पगार भी वक़्त पर मिल जाती है.

जाने से पहले तुमसे मिल नहीं पाई, इसलिये ये ख़त लिख रही हूं. उम्मीद करती हूं कि ये ख़त तुम गीले हाथों से नहीं पढ़ोगी. तुम्हारे हाथ मैंने देखे थे उस दिन. उसकी लकीरों में ना जाने कितनी ही कहानियां क़ैद थी. मैंने उन ख़ुरदुरे हाथों पर Vaseline लगाया था, तब तुम्हारे झुर्रियों वाले गालों पर ज़ार नमी-सी आ गई थी.

तुमसे न मिल पाने का ग़म है, पर मैं क्या करती? तुम्हारे घर का पता मेरे पास नहीं था और तुम्हारा फ़ोन भी तो तुम्हारे पति के पास रहता था.

हर सुबह 6 बजते ही तुम मेरे दरवाज़े पर दस्तक देती. अंदर हम सब बेसुध सोए रहते, अगली बार दस्तक ज़रा ज़ोर से होती. आंख मलते-मलते अकसर मैं ही उठती थी. बाकी तो कुंभकरण के रिश्तेदार थे घर पर.

1 घंटे में तुम खाना बनाकर, बरतन धोकर, घर की सफ़ाई करके फ़्री हो जाती. कैसे कर लेती थी तुम सिर्फ़ 1 घंटे में इतना काम?

फिर तुम चाय बनाकर मुझे उठाती, तुम्हारी हाथ की चाय का स्वाद कहीं और नहीं मिला. 10-15 मिनट बैठकर तुम निकल जाती.

इसके बाद तुम पड़ोस के चार और घरों में जाकर बरतन धोती, घर की सफ़ाई करती. इतना सब करके 10-11 बजे तक तुम घर जाती, अपने बच्चों के लिए खाना बनाने. आराम कहां था तुम्हें? बच्चों की परवरिश के लिए अपने स्वास्थ्य की भी चिंता नहीं करती थी तुम. शाम के 4 बजते-बजते तुम फिर कॉलोनी के घरों में खाना बनाने पहुंच जाती. ये तो याद नहीं कितने घरों में. 7 बजते ही तुम दोबारा मेरे घर पर होती, खाना बनाने.

तुम रविवार की भी छुट्टी नहीं लेती थी. मैंने कारण भी पूछा था, तुमने कभी बताया नहीं.

तुम्हारी पिछली ज़िन्दगी के बारे में सोचकर आज भी पलकों पर आंसू ठहर जाते हैं. Nanny थी ना तुम? तुम जिसके बच्चे के लिए अपने बच्चों को भूल गई उसने इसके बदले जो तुम्हारे साथ किया इसकी सज़ा उसे इस दुनिया में नहीं मिली. उस औरत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, पर उसके निशान अब भी तुम्हारे माथे पर दिखते थे. रौंगटे खड़े हो गये ये लिखते-लिखते, क्योंकि वो वाकये याद आ गया.

पगार के बिना कैसे रह गई तुम उस घर में वो भी 7 महीने तक? क्या मोह हो गया था उस औरत के बच्चे से? क्या सिला मिला उस प्यार का स्नेह का? चोरी का इल्ज़ाम लगा, बुरी तरह प्रताड़ित की गई? ये सब मैं तुम्हें सामने से कभी नहीं कह पाई, डरती थी अगर तुम्हारे ज़ख़्मों को हरा कर दिया तो. तुम्हारी वो नारंगी साड़ी पर लगे 1-2 पैबंद में ही कई कहानियां सिमटी हुई थी. उसमें से झांकते थे तुम्हारे संघर्ष के धागे.

एक बार तुम्हें पिज़्ज़ा खाने को बोला था मैंने, अपने बच्चों का सोचकर तुमने एक स्लाइस भी नहीं लिया था. पर मुझसे कहा कि तुम्हें ये सब हजम नहीं होता.

पता नहीं तुम कहां हो, किस हाल में हो, ये ख़त तुम तक पहुंचेगा या नहीं, पर मेरे सिर पर तुमने जो मालिश की थी, वो मैं कभी नहीं भूल सकती. ममता से भरे उस स्पर्श से मां की याद आ गई थी.

इतना सब किया तुमने दीदी और बदले में मैंने तुम्हें महीने के पगार के अलावा कुछ नहीं दे पाई.

सिर्फ़ तुम ही नहीं दीदी, देश के हर घर में जहां दीदी/भैया/अंकल/आंटी काम करते हैं, वो बहुत कुछ पाने के हक़दार हैं. दूसरों के बच्चों को अपने बच्चे की तरह स्नेह देना. दूसरों के घरों की देखभाल. दूसरों के लिए प्यार से खाना बनाना. ये सब भी तब जब अपना परिवार हो, करना आसान नहीं.

ऑफ़िस में लोग अकसर Maids/Nannies/बाई की बुराई करते हैं. एक बार एक Colleague के घर गई थी, वो लोग अपने घर पर काम करने वाले को चाय पूछना तो दूर, ढंग से बात तक नहीं कर रहे थे. बहुत बूढ़ी थी वो औरत. बुरा लगा मुझे, बीच पार्टी से सिरदर्द का बहाना बना घर वापस आ गई थी. कोई तुम सब के बारे में क्यों नहीं सोचता, आज तक इसका जवाब नहीं मिला. अख़बारों में ही बंधक बनाकर रखे जाने वाले Maids की ख़बरें पढ़ती हूं. दिल सहम जाता है तुम्हारे बारे में सोचकर ही. पता नहीं कहां काम कर रही हो तुम?

मैं तुम्हें याद तो हूं ना दीदी? भूली तो नहीं हो मुझे? अपना नंबर लिख रही हूं, ख़त मिलते ही एकबार फ़ोन कर लेना.

संचिता

India Today

इस लेख के साथ मैंने कुछ उम्मीदें भी जोड़ी हैं, कि वो जो रोज़ आपका घर संभालती है, आपके बच्चे संभालती है, आप उसके साथ बुरा व्यवहार नहीं करेंगे. माना कुछ Maids में बुरी आदतें होती हैं, पर ये बात हर इंसान पर लागू होती हैं. बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम करने वाले भी चोरी करते हैं. वो आपके घर में Maid ज़रूर है, पर उसने आप पर एहसान किया है, आपने उस पर कोई एहसान नहीं किया. प्यार से दो बातें करने से उसे भी एहसास होगा कि उसका कोई वजूद है. 

आपके सुझावों का कमेंट बॉक्स में स्वागत है.

नोट- इस तस्वीर में जिस महिला पर सवाल उठाये जा रहे हैं, उसने इस घटना का दूसरा पहलू हमारे सामने रखा है. महिला ने बताया कि जब उसने, Nanny के साथ मेट्रो ली तब मेट्रो में बहुत भीड़ थी. उनके पास 2 Bags थे और एक बच्चा भी था. बच्चा इधर-उधर भाग रहा था और महिला उसे ही संभालने में लगी थी. जगह पाकर, Nanny Bags लेकर बैठ गई. कुछ देर बाद महिला भी सीट पाकर अपने बच्चे के साथ बैठी, ताकी उसको खिला सके. तस्वीर उसी समय खींची गई. महिला का कहना है कि जिसने फ़ोटो ली, उसने Nanny को ऊपर बैठने कहा था लेकिन Nanny ने मना कर दिया, क्योंकि उसे कोई असुविधा नहीं हो रही थी. महिला सोशल मीडिया पर इतना Active नहीं रहती इसलिये इस तस्वीरे के बारे में उन्हें पता नहीं चला. महिला ने ये भी बताया कि Nanny के साथ कोई बुरा व्यवहार नहीं किया जाता और वो वहीं खाती हैं जो पूरा परिवार खाता है, Nanny को एक कमरा भी दिया गया है. ये महिला पेशे से एक डॉक्टर है.

Feature Image Source- Youth Ki Awaaz (Only For Representative Purpose)