यूं तो हम 21वीं सदी में आ गए हैं. हमारे ऊपर कई तरह के टैग्स लग चुके हैं. जैसे- बीमारू, अल्पसंख्यक, अति पिछड़ा और अविकसित समाज. 1947 में आज़ादी के बाद हमने तय किया कि हम अपने दाग-धब्बे ख़ुद अपने हाथों से धोएंगे और पूरे विश्व में अपनी नई पहचान कायम करेंगे. सबसे सुखद बात ये है कि हम पूरी शिद्दत के साथ अपने सपने पूरे कर रहे हैं. हम अपने अतीत को भुला कर एक नई दुनिया बनाना चाहते हैं और हम इस दिशा में काम कर रहे हैं. आज हम इंटरनेट की सुविधा से लैस हैं, बुलेट ट्रेन और हवाई जहाज में स्पीड का कॉम्पटिशन हो रहा है. लेकिन…शायद आपको यह अहसास नहीं कि इन सबके बीच हम अपनी इस हसीन दुनिया को खोने वाले हैं और हम सोचते हैं कि हमारा विकास हो रहा है.

भौतिक सुख-सुविधा पाने में हम जाने-अनजाने ऐसी गलतियां कर रहे हैं, जो इस पृथ्वी के विनाश का कारण बन सकती हैं. अपने ऐशो-आराम के लिए हम टीवी, फ्रिज और कई ऐसी चीज़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो प्रकृति के लिए काफ़ी हानिकारक हैं. पहले के समय में हम कई ऐसी चीज़ों का इस्तेमाल करते थे, जिससे न सिर्फ़ पर्यावरण की रक्षा होती थी, बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी वो काफ़ी उपयोगी और महत्वपूर्ण थीं.

आज सभी चीज़ों का विकल्प आ चुका है, लेकिन इनसे उत्पन्न होने वाली समस्याओं का कोई विकल्प नहीं है. हम कुछ उदाहरणों द्वारा आपको बताने की कोशिश करेंगे कि पहले की चीज़ें हम सब के लिए अच्छी थीं.

दोना पत्तल आसानी से मिट्टी में मिल सकती है. यह खाद का काम भी करती है, वहीं प्लास्टिक प्लेट मिट्टी को भी ख़राब कर देती है.

कुल्हड़ में चाय पीना अच्छा होता है. इससे प्रकृति को कोई नुकसान नहीं होता है, वहीं प्लास्टिक की ग्लास कभी नहीं सड़ती है. यह सेहत के लिए भी हानिकारक है.

प्लास्टिक की थैली का इस्तेमाल करना, अपनी जान से हाथ धोना है. इसके बदले कागज़ के बैग का प्रयोग करना चाहिए.

स्वास्थ्य और प्रकृति के हिसाब से सींक की डलिया बहुत अच्छी होती है. आजकल लोग प्लास्टिक की डलिया का इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे कैंसर की संभावना बढ़ती है.

ठंडे पानी के लिए फ्रिज से बेहतर मटका है. इससे कई लाभ मिलते हैं.

बच्चों का शरीर बहुत ही नाजुक होता है, इसलिए हमें सूती कपड़ों का इस्तेमाल करना चाहिए.

पर्यावरण हो या फ़िर सफाई, हर जगह फूल झाड़ू काम आता है. प्लास्टिक की झाड़ू से प्रकृति को काफ़ी नुकसान पहुंचता है.

पानी को स्टोर करने के लिए हौद से बेहतर कुछ नहीं हो सकता है. इसमें रखे पानी में प्राकृतिक गुणवत्ता बनी रहती है.

गांव में आज भी अनाजों के भंडारण के लिए मिट्टी की कोठी का इस्तेमाल किया जाता है. यहां प्राकृतिक तरीके से भंडारण किया जाता है. वहीं कोल्ड स्टोरेज में कई केमिकल्स मिलाए जाते हैं.

यूं तो बालों को स्वस्थ रखने के लिए शैंपू लगाया जाता है, लेकिन पुराने समय में लोग काली मिट्टी का इस्तेमाल करते थे. आपको शायद पता नहीं, लेकिन शैंपू बनाने के लिए गंधक और मीथेन गैसों का इस्तेमाल किया जाता है.

आज भी गांवों में खाट और अन्य कामों के लिए नारियल की रस्सी का इस्तेमाल किया जाता है. कई लोग प्लास्टिक की रस्सी का इस्तेमाल करते हैं.

मुंह धोने के लिए दातून काफ़ी उपयोगी होती है. ब्रश से न सिर्फ़ दांत ख़राब होते हैं, बल्कि ये प्लास्टिक ब्रश प्रकृति को भी ठेस पहुंचाते हैं.

घरों की सफ़ाई के लिए गोबर का लेप काफ़ी उपयोगी है, वहीं पेंट से प्रकृति को काफ़ी नुकसान पहुंचता है.

खेतों की उर्वरता बरकरार रखने के लिए गोबर की खाद काफ़ी उपयोगी होती है. आजकल लोग रासायनिक खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे सेहत और प्रकृति, दोनों को नुकसान है.

मसाले पीसने के लिए आज भले ही मिक्सर का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन एक समय था, जब लोग ओखली का इस्तेमाल करते थे. इससे एक्सरसाइज भी हो जाती थी.

मनुष्य, एक ऐसी प्रजाति है, जो असंतोषी, स्वार्थी और लोभी है. मानव हमेशा अपना हित सर्वप्रथम देखता है. हम अपनी सुविधा के लिए पूरी धरती को बर्बाद कर रहे हैं. सबसे दिक्कत वाली बात ये है कि जब भी समाधान की बात आती है, तो हमारी नज़र दूसरों पर रहती हैं. लेकिन आपको बता देना चाहता हूं कि इस पृथ्वी पर जीने का हक़ जितना आपका है, उतना ही अन्य प्राणियों का है. अपने साथ-साथ उनका जीवन भी ख़तरे में मत डालिए. 

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