कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,

आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे.

हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से,

तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे.

बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का, 

चरखे से ज़मीं को हम, ता चर्ख गुंजा देंगे.

परवा नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की, 

है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे.

उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे, 

तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे.

सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका, 

चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे.

दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं, 

ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे.

मुसाफ़िर जो अंडमान के, तूने बनाए, ज़ालिम, 

आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे.

ये कविता उस क्रांतिकारी ने लिखी है, जिसने देश की ख़ातिर हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. इनका नाम है अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान. आज उनकी जयंती है. महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान को काकोरी कांड के लिए जाना जाता है. वही काकोरी जहां से क्रांतिकारियों ने अंग्रज़ों की नाक के नीचे से उनका ख़जाना लूट लिया था.

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अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान काकोरी को लूटने वाले क्रांतिकारियों में शामिल थे. अशफाक का जन्म 22 अक्टूबर 1900, को यूपी के शाहजहांपुर ज़िले में हुआ था. उनके पिता का नाम शफ़ीक उर रहमान था, जो एक पठान थे. बचपन से ही उन्हें देश के लिए कुछ कर गुज़रने की चाह थी. अशफ़ाक़ को कविताएं और नज़्म लिखने का भी शौक़ था. देशभक्ति का ज़ज़्बा उनकी कविताओं में भी साफ़ झलकता था. अशफ़ाक़ ‘हज़रत’ उपनाम से कविताएं लिखते थे.

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

-अशफ़ाक़ गांधी जी से काफ़ी प्रभावित थे, लेकिन असहयोग आंदोलन को वापस लेने के बाद वो बहुत निराश हो गए थे. 

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– 9 अगस्त 1925, को उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर काकोरी में अंग्रेज़ों के ख़ज़ाने को लूटा था. उस वक़्त वो हिंदुस्तान रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य थे. 

– खज़ाना लूट कर वो स्वतंत्रता संग्राम के लिए हथियार ख़रीदने की तैयारी कर रहे थे.

-काकोरी कांड के बाद अंग्रेज़ बौखला गए थे और उन्होंने तेज़ी से हिंदुस्तान रिपब्लिकन पार्टी के सभी लोगों की गिरफ़्तार करना शुरू कर दिया. 

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-इस तरह रामप्रसाद बिस्मिल जो अशफ़ाक़ के बेस्ट फ़्रेंड थे उनके साथ कुल 40 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया. लेकिन अशफ़ाक़ अंग्रेज़ों से बच निकले. 

-एक साल बाद अंग्रेज़ी सरकार उन्हें पकड़ने में कामयाब हुई. अशफ़ाक़ को काकोरी कांड का मुख्य साजिश कर्ता बनाया गया और उन्हें फ़ांसी की सज़ा दी गई. 19 दिसंबर 1927 को उन्हें फ़ांसी दी गई थी. उस वक़्त वो 27 साल के थे. 

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-फ़िल्म रंग दे बसंती में उनके अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान को ट्रिब्यूट दिया गया था. इसमें उनका किरदार कुणाल कपूर ने निभाया था. 

देश की आज़ादी के लिए शहीद होने वाले महान क्रांतिकारी को हमारा शत-शत नमन. 

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