सफ़ेद जिल्द में लिपटी हुई कुछ कतरनें, जिन्हें होठों से खींचकर, दुनिया के तमाम ग़मों को भुला दिया जाता है. दिमाग़ की बग़ावत करती नसें, चानक से ठंडी पड़ जाती हैं और दिल,हल्के दर्द के बावजूद कहता है :

बस एक कश और…

ऐसे ही गिरफ़्तार करती है न सिगरेट?

एक ज़माना था, जब हॉलीवुड फ़िल्में देखने की वजह से, सिगरेट लोगों के बीच पॉपुलर हुई और फ़ैशन बन गयी. धीरे धीरे ये पीने वालों की ज़रूरत बन गयी, बिल्कुल वैसे, जैसे चाय. चूंकि चाय ‘Socially Accepted’ है, इसलिए इसे नशा नहीं समझा जाता. मगर चाय पीने वाले जानते होंगे कि चाय भी उन्हें अपना आदी बना देती है.

evoke

सिगरेट शायद दुनिया भर के सबसे ज़्यादा बदनाम उत्पादों में से एक है. मगर क्या आप जानते हैं, पहले सिगरेट को स्वास्थ्य के लिए लाभदायक बताकर बेचा गया था? 1906 तक सिगरेट दवाइयों की इनसाइक्लोपीडिया में शामिल थी. वो तो ब्रिटिश साइंटिस्ट ‘सर रिचर्ड डॉल’ थे, जिन्होंने 1950 में पहली बार बताया कि कैंसर से सिगरेट का गहरा संबंध है. इसके बाद लोगों को चेतावनी दी गयी, जिन्हें ज़िन्दगी से प्यार था, उन्होंने समझा भी और सिगरेट छोड़ दी. मगर जांबाज़ों से तो दुनिया कभी भी ख़ाली नहीं थी. किसी शायर ने कहा है:

आग को खेल पतंगों ने समझ रखा हैसबको अंजाम का डर हो ये ज़रूरी तो नहीं

सिगरेट के प्रचार के नायाब तरीक़े

oobject

जिस सिगरेट की वजह से आज दुनियाभर में लाखों लोग मौत के मुंह में जा रहे हैं, उसको प्रचारित- प्रसारित करने के लिए तमाम हथकंडे अपनाये गए. सिगरेट जब हाथ से बनायी जाती थी, तब इसे कम ही लोग इस्तेमाल करते थे. मगर 1881 में अमेरिका के जेम्स बोन्सैक ने सिगरेट बनाने की ऐसी मशीन बनाई, जो एक दिन में 120,000 सिगरेट बनाती थी.

अब जब उत्पादन ज़्यादा था, तो खपत बढ़ाने के तरीके निकाले गए. सिगरेट को घुड़दौड़, संगीत और Fashion Shows में मुफ़्त बांटा गया और उन्हें Sponsor किया गया. इसके अलावा सिगरेट कंपनियों ने कई तरह की Scholarship भी शुरू की, जिससे युवा वर्ग का सिगरेट पर ध्यान गया. अख़बारों में ऐसे झूठे विज्ञापन छापे गए, जिनमें दिखाया गया कि शोध में सिगरेट को सेहत के लिए अच्छा पाया गया है. Virginia नाम की सिगरेट कंपनी ने तो यहां तक दावा किया कि उसकी सिगरेट पीकर आप Slim हो सकते हैं.

सिगरेट को सबसे ज़्यादा फ़ायदा विश्वयुद्ध से हुआ

medium

सिगरेट का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल विश्वयुद्ध के दौरान थके-हारे सैनिकों को राहत देने के लिए हुआ. पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान सैनिकों को रोज़ खाने के बाद सिगरेट बांटी जाती थी. अख़बारों में ये प्रचारित किया जाता था कि सिगरेट पीने से Digestion अच्छा रहता है.

पहले की अपेक्षा दूसरा विश्वयुद्ध महिलाओं के लिए ज़्यादा आज़ादी लेकर आया. औरतें काम पर जाने लगीं, जहां उन्होंने फैक्ट्री और परिवार के काम की ऊब और थकान उतारने के लिए पहली बार सिगरेट पीना शुरू किया.

Wikipedia

सिगरेट के विज्ञापन पर खर्च जानकर हैरान रह जायेंगे

marketingportal

एक समय सिगरेट U.S. का सबसे ज़्यादा बिकने वाला Product बन गया. 1944 में सिगरेट का व्यापार एक साल में 300 Billion डॉलर का था. ऐसे में सिगरेट कंपनियों ने इसके प्रचार पर भी खूब पैसा ख़र्च किया. उस समय इसके प्रचार के लिए 4 Billion डॉलर सालाना या 11 Million डॉलर एक दिन का ख़र्च किया गया. मतलब आज के हिसाब से 70 करोड़ रुपये से ज़्यादा का विज्ञापन एक दिन में.

बहुत से बुद्धिजीवी किसी न किसी नशे के आदी रहे हैं

koolnews

दुनियाभर के बहुत से कलाकार, कलमकार, अभिनेता, शायर, वैज्ञानिक और बुद्धिजीवी किसी न किसी नशे के आदी रहे हैं. ऐसा क्यों? Research कहती है कि नशीली चीज़ों में कुछ ऐसे तत्व होते हैं, जो दिमाग़ की उलझन को कुछ पल के लिए शांत कर देते हैं या भुला देते हैं. ज़ाहिर है कि दिमाग़ का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल यही बुद्धिजीवी वर्ग करता है.

इन तथ्यों का मतलब ये बिलकुल नहीं है कि सिगरेट पीने से आप बुद्धिजीवी बन जाते हैं. Psychology Today में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक रिसर्च, में ये पाया गया कि Tobacco Products का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल एवरेज IQ से नीचे के लोग करते हैं. जबकि इन Products का इस्तेमाल करने वाले एवरेज IQ और सबसे ज़्यादा IQ वाले लोगों की संख्या लगभग बराबर है.

इन दोनों में Common ये है कि ये सभी लोग इसका इस्तेमाल हल्की-फुल्की टेंशन कम करने या अपनी आदत के कारण करते हैं. पीने वाले कहते हैं कि सिगरेट पीने के अंजाम से कहीं ज़्यादा दर्द दुनिया में रोज़ ही मौजूद है. इसकी वजह आज की जीवनशैली भी है. इसलिए रोज़ की उलझनों से निजात पाने का सिगरेट एक आसान रास्ता है.

लेकिन एक आख़िरी बात, दुनिया की तमाम महान हस्तियां, जिन्होंने इंसानी सभ्यताओं को बहुत कुछ दिया, जिनके दुनिया में आने से ही दुनिया इतनी ख़ूबसूरत और रहने लायक बन सकी. उनमें से बहुतों की मौत का कारण नशे का हद से ज़्यादा आदी होना था.

Countercurrents

मंटो ने कहा था, ‘ज़िन्दगी अगर परहेज़ से गुज़ारी जाये तो एक क़ैद है, और अगर बदपरहेज़ी से गुज़ारी जाये तो भी क़ैद है. यानि दोनों में कोई अंतर नहीं है. किसी न किसी तरह हमें जुराब के धागे (ज़िन्दगी ) का एक सिरा पकड़कर उधेड़ते जाना है और बस…’

मंटो ने जिस क़ैद की बात की, उसी से रिहाई का रास्ता कुछ लोग अलग अलग चीज़ों में ढूंढ लेते हैं.

यहां यह याद दिलाना ज़रूरी है कि परेशानी से मुंह मोड़ना उसका हल नहीं है. इससे उसे कुछ देर टाला जा सकता है मगर ख़त्म नहीं किया जा सकता.