छोटे शहर से बड़े शहर आओ, वो भी दिल्ली जैसे शहर तो बहुत सारे नए अनुभवों से सामना होता है. मेरे दोस्त का भी हुआ. 2011 की बात है उसे दिल्ली आए कुछ महीने ही हुए थे. उस समय वो एक मॉल में जॉब करता था तो घर आने में रात में लेट हो जाता था. शुरुआती दिन थे तो पैसे भी बचाने की सोचना पड़ता था. 

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एक दिन की बात है वो मेट्रो से बाहर आया तो शेयरिंग ऑटो ढूंढ रहा था. पास ही खड़े एक शख़्स ने सुन लिया कि उसे कहां जाना है? और बोला चलो मैं ही छोड़े देता हूं. वो भी बेफ़िक्र बैठ गया. थोड़ा आगे ही बढ़े थे, सरदार जी ने हाथ पकड़ लिया और बोले चलोगे. पहले तो समझ नहीं आया फिर जब वो दोबारा बोले तो वो घबरा गया और बोला ऐसा कुछ नहीं है मेरा भाई आगे ही वेट कर रहा है. ये वाला झूठ हर घर में लड़कियों के सिखाया जाता है, लेकिन उस दिन उसके काम आया. थोड़ी देर बहस के बाद वो हाथ छुड़ाकर भाग लिया.

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जैसे ही घर पहुंचा उसने पूरी आपबीती बताई. उस दिन तो उसकी बैंड बज गई थी. घर पहुंचकर उसने चैन की सांस ली और उसके दोस्त उसके मज़े ले रहे थे.   

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वैसे दिल्ली में ऐसा कई बार हो जाता है और यहां पर लड़की या लड़के से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है. इसलिए ज़रा संभलकर रहिए, किसी से भी लिफ़्ट मत लीजिए. अगर लिफ़्ट लेनी पड़ जाए तो थोड़ा सतर्क ज़रूर रहिए.

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