कभी भारत के सेनाध्यक्ष रहे सैम मानेकशॉ ने कहा था, “यदि कोई व्यक्ति कहता है कि उसे मरने से डर नहीं लगता तो वह या तो झूठा है या गोरखा है.” हिमालय की गोद पर, मौत का बिस्तर ले कर, ‘जय मां काली, आयो गोरखाली ‘ कहते हुए जब गोरखा चलते हैं तो दुश्मन बिना युद्ध किए हुए इनके सामने नतमस्तक हो जाते हैं. इनकी बहादुरी के किस्से दुनिया सुनती और सुनाती आई है. सैनिकों की एक ऐसी रेजीमेंट जिसकी बदौलत अंग्रेज़ो ने हिटलर से टक्कर ली और हिटलर इस रेजीमेंट इतना प्रभावित हुआ कि वो भी इस रेजीमेंट की बदौलत पूरी दुनिया जीतना चाहता था.

अपनी मिट्टी के लिए पलक झपकते ही जान कुर्बान करने को तैयार, हाथ में खुखरी हो तो ये मौत को भी सबक सिखाने का माद्दा रखते हैं. खुखरी इनकी शान है, जान है और पहचान है. अंतिम सांसों तक ये खुखरी हमेशा अपने पास रखते हैं. देश में जब भी मुसीबत आती है, इसी रेजिमेंट को सबसे पहले याद किया जाता है. ईमानदारी की मिसाल है गोरखा रेजीमेंट. आइए हम आपको इस रेजीमेंट के बारे में बताते हैं.

नेपाल की शान हैं गोरखा

नेपाल में गोरखा नाम का एक जिला है. जो हिमालय की तलहटी में बसा हुआ है. यह जगह अपने मशहूर योद्धाओं के लिए विख्यात है. कहा जाता है कि यहां की मांए शेर पैदा करती हैं.

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गोरखा कोई जाति नहीं बल्कि शान है

गोरखा किसी एक जाति के योद्धा नहीं, बल्कि उन्हें पहाड़ों में रहने वाले सुनवार, गुरुंग, राय, मागर और लिंबु जातियों से भर्ती किया जाता है.

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“कायरता से मरना अच्छा”

जब यहां कोई बच्चा पैदा होता है तो गांव में शोर मचता है “आयो गुरखाली”. जन्म के साथ ही बच्चों को “कायरता से मरना अच्छा” का नारा सिखाया जाता है.

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खुखरी ख़ून मांगती है

कहते हैं कि जब गोरखा अपनी खुखरी निकाल लेता है तो वह खून बहाए बिना म्यान में नहीं जाता.

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विश्व की सबसे बहादुर पलटन

गोरखा पलटन विश्व की सबसे बहादुर पलटनों में से एक है. गोरखा पलटन भारतीय सेना से 1815 में जुड़ी थी.

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इतिहास एवं महत्वपूर्ण तथ्य

गोरखा या गोरखाली नेपाल के लोग हैं , जिन्होंने ये नाम 8 वीं शताब्दी के हिन्दू योद्धा संत श्री गुरु गोरखनाथ से प्राप्त किया था.

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1814-16 के आंग्लो-नेपाल युद्ध में गोरखा सेना की लड़ाई की तरकीब और उनकी बहादुरी से ब्रिटिश इतने खुश हुए की गोरखा को ब्रिटिश भारतीय सेना से जोड़ लिया.

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तीन देशों को सेवा दे रही है ये पलटन

गोरखाली लोग अपने साहस और हिम्मत के लिए विख्यात हैं और वे नेपाली आर्मी और भारतीय आर्मी के गोरखा रेजिमेन्ट और ब्रिटिश आर्मी के गोरखा ब्रिगेड के लिए भी खूब जाने जाते हैं.

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गौरवशाली इतिहास

अपनी बहादुरी से गोरखा पलटन ने कई युद्ध जीते हैं. जैसे- 1947-48 में उरी सेक्टर, 1962 मे लद्दाख, 1965 और 1971 मे जम्मू और कश्मीर. श्रीलंका भेजी गयी शांति फोर्स में गोरखा पलटन भी थी.

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गोरखा भाषा ज़रूरी है

गोरखा पलटन के लिए ऑफ़िसर्स को गोरखा भाषा सीखनी पड़ती है. ब्रिटिश या भारतीय ऑफ़िसर्स के लिए जरूरी है. ताकि वह अपनी सेना की सैनिकों से उनकी ही भाषा में बात कर सकें.

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गोरखा पलटन के नियमों के अनुसार, दशहरा पर भैंसे की बलि देने का रिवाज़ है. और यूनिट के सबसे जवान सैनिक को यह अवसर मिलता है.

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आर्मी चीफ- जनरल दलबीर सिंह सुहाग भी गोरखा राइफल्स से ही हैं.

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महाराजा रणजीत सिंह ने भी इन्हें अपनी सेना में स्थान दिया था.

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हिन्दुस्तान और गोरखा

इंडियन आर्मी गोरखा रेजीमेंट को लड़ाकू नस्ल मानती है. इस वजह से गोरखा रेजीमेंट को कई सुविधाएं भी दी जाती हैं. भारत के लिए भी गोरखा जवानों ने पाकिस्तान और चीन के खिलाफ हुई सभी लड़ाइयों में शत्रु के सामने अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया था. गोरखा रेजीमेंट को इन युद्धों में अनेक पदको़ं व सम्मानों से अलंकृत किया गया, जिनमें महावीर चक्र और परमवीर चक्र भी शामिल हैं.

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बलिदान ही इस रेजीमेंट की पहचान है. यहां होने का मतलब चुनौतियों से दो-चार होना है. मातृभूमि पर मिटना इस रेजीमेंट की पहचान है. धन्य है यह रेजीमेंट जो हमारे देश की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहती है.

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