कई बार ऐसा होता है कि हम कहानियां सुनते-सुनते उसमें खो जाते हैं और उसे ही सच मान लेते हैं. सपनों और कहानियों की वो दुनिया हमारी हक़ीक़त की दुनिया पर हावी हो जाती है. ये फ़र्क़ करना भी मुश्किल हो जाता है कि ये सच है या झूठ. मेरे साथ तो कई बार ऐसा होता था. मेरे घर में मेरे चाचा अकसर भूत की कहानियां सुनाया करते थे और अकेले होने पर वही चीज़ें मेरे दिमाग़ में चलती थी, जिसकी वजह से मैं सोते-सोते डर जाती थी. मुझे लगता था कि ऐसा सिर्फ़ मेरे साथ होता था. मगर ऐसा नहीं है इस बात का एहसास आज हुआ.
दरअसल, आज ही मेरी सीनियर मथुरा और आगरा की ट्रिप से वापस आई हैं. उन्होंने बताया कि वो जब जेवर (जो एक जगह का नाम है) से ग्रेटर नोएडा के हाईवे पर थीं. ठंड का मौसम है तो कोहरा भी जमकर हो रहा है, और उस रात को भी था. कोहरा इतना घना था कि उन्हें अपनी गाड़ी के बाहर भी कुछ नज़र नहीं आ रहा था. उस कोहरे से घिरी हुई गाड़ी को देखकर उनके दिमाग़ में अजीब-अजीब से ख़्यालों ने घर कर लिया. तभी उन्हें लगा कि कोहरा छटेगा और एक दम से कोई उनकी गाड़ी के शीशे पर हाथों से निशान बनाता हुआ उनकी गाड़ी पर गिरेगा. जैसे ही उनका ख़्याल आखिरी पड़ाव पर आया वो सहम गईं और डर गईं.
उनका ये डर उन्हें बचपन में ले गया, जब वो अपनी बुआ जी के घर जाती थीं. वहां पर उन्होंने घर के बड़ों से सुना था कि बुआ जी के घर वाले रास्ते पर यानि अर्मापुर, जो कानपुर में है. उस रास्ते में कुछ दूरी पर कुछ अजीब शक्तियों का डेरा है. अपनी इस ट्रिप में उन्हें वो भी याद आ गया शायद वो इसीलिए ज़्यादा डर गईं. मगर जब अपने सपने से वापस हक़ीक़त में आईं तो उन्हें लगा कि अकसर हम डर का एक जाल अपने इर्द-गिर्द बना लेते हैं और उसे ही सच मान लेते हैं.
ऐसा नहीं है कि आत्माएं होती नहीं हैं, आत्माएं होती हैं. मगर ज़्यादातर हमारी सोच ही होती है जो हमें डरा देती है, जो इन शक्तियों के वजूद को हम पर हावी कर देती है और हम डर जाते हैं.
एक बात का ध्यान रखें कि क़िस्से-कहानियों की दुनिया और असल ज़िंदगी में ज़मीन आसामान का अंतर होता है. बस ध्यान हमें देना है कि वो हम पर हावी न हों.
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