करंसी यानि मुद्रा किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती का आधार होता है. दरअसल, किसी देश की इकोनॉमी कैसी है, यह उस देश की करंसी के ज़रिए ही पता चलता है. भारतीय करंसी का भी इतिहास प्राचीन भारतीय सभ्यता की तरह काफ़ी पुराना है. आज लोग जिन रुपयों, सिक्कों या मुद्रा की बात करते हैं, उसे आप प्राचीन भारत की ही देन मान सकते हैं. कहा जाता है कि सबसे पहले भारत में सिक्कों का प्रचलन हुआ.
ऐसा माना जाता है कि 6ठी/7वीं शताब्दी ईसा पूर्व ही भारत दुनिया में सिक्कों को जारी करने वाला पहला देश था. इतिहास के परिणामों पर नज़र दौड़ाएं, तो भारत में मौद्रिक इकाइयों की एक विस्तृत श्रृंखला देखने को मिलती है. कुछ ऐतिहासिक तथ्यों से यह पता चलता है कि पहली बार सिक्के का चलन 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व हुआ था. हालांकि, पहले दस्तावेजी सिक्के की तिथि 6ठी/7वीं शताब्दी ईसा पूर्व और पहली शताब्दी के बीच मिलती है.
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नोटबंदी के बाद भारतीय रुपए का इतिहास एक बार फिर चर्चा में आ गया है. लोग यह जानने में दिलचस्पी ले रहे हैं कि आखिर रुपया भारत में कब से प्रचलन में है और प्राचीन काल में यह था तो किस शक्ल में.
दरअसल, हिंदी शब्द रुपया संस्कृत के शब्द ‘रुप्या’ या ‘रुपैयकम’ से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है, गढ़ा हुआ चांदी या चांदी के सिक्के.
प्राचीन काल में रुपया प्रचलन में था इस बात का सबूत महान नीतिकार, अर्थशास्त्री और सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री रहे चाणक्य के महान ग्रंथ अर्थशास्त्र में भी है. चाणक्य उर्फ़ कौटिल्य (340-290 ईसा पूर्व) ने अपने अर्थशास्त्र में चार प्रकार के सिक्कों का ज़िक्र किया है, जिसमें चांदी के सिक्के को रुपयेरुपा, सोने के सिक्के को सुवर्णरुपा, तांबे के सिक्के को ताम्ररुपा और पीतल के सिक्के को सिसारुपा कहा गया है . इससे साफ़ प्रतीत होता है कि उस वक़्त भी रुपये/सिक्के चलन में थे.
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अगली कुछ सदियों के दौरान जैसे-जैसे साम्राज्यों का उदय और पतन हुआ, देश की मुद्राओं में इसका प्रगति-क्रम दिखाई देने लगा. इन मुद्राओं से प्रायः तत्कालीन राजवंश, सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं, आराध्य देवों और प्रकृति का परिचय मिलता था. इनमें इंडो-ग्रीक काल के यूनानी देवताओं और उसके बाद के पश्चिमी क्षत्रप वाली तांबे की मुद्राएं शामिल हैं, जो पहली और चौथी शताब्दी (ईसवीं) के दौरान जारी की गई थीं.
अरबों ने 712 ईसवीं में भारत के सिंध प्रांत को जीत कर उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया. 12वीं शताब्दी तक दिल्ली के तुर्क सुल्तानों ने लंबे समय से चली आ रही अरबी डिज़ाइन को हटाकर उनके स्थान पर इस्लामी लिखावटों को मुद्रित कराया. लेकिन असल में रुपये को अपनी असली पहचान तब मिली, जब 1540 से 1545 के बीच पांच साल के शासन के दौरान अफ़ग़ानी शासक शेर शाह सूरी ने एक चांदी का सिक्का चलाया, जिसका वज़न 78 अनाज था और उसको रुपया नाम दिया.
चांदी का सिक्का मुगल काल, मराठा युग और यहां तक कि ब्रिटिश भारत में भी अच्छी तरह से प्रयोग में बना रहा.
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उपनिवेशकाल से पहले भारत के राजे-रजवाड़ों ने अपनी अलग मुद्राओं की ढलाई करवाई, जो मुख्यत: चांदी के रुपये जैसे ही दिखते थे. केवल उन पर उनके मूल स्थान (रियासतों) की क्षेत्रीय विशेषताएं भर अंकित होती थीं.
मगर जब 18वीं सदी में राजनैतिक अशांति का माहौल बना, तो एजेंसी घरानों ने बैंकों का विकास किया. इन बैंकों में Orient Bank Corporation, The Bank of Western India, Bank of Bengal and Bihar और The Bank of Hindustan प्रमुख थे. इन्हीं बैंकों ने साल 1861 में करंसी के रुप में अपनी अलग-अलग काग़ज़ी मुद्राएं उर्दू, बंगला और देवनागरी लिपियों में मुद्रित करवाई.
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लगभग सौ वर्षों तक निजी और प्रेसीडेंसी बैंकों द्वारा जारी नोटों का चलन बना रहा, लेकिन 1861 में पेपर करंसी क़ानून बनने के बाद इस पर केवल सरकार का एकाधिकार रह गया. ब्रिटिश सरकार ने बैंक नोटों के वितरण में मदद के लिए पहले तो प्रेसीडेंसी बैंकों को ही अपने एजेंट के रूप में नियुक्त किया, क्योंकि एक बड़े भू-भाग में सामान्य नोटों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना एक कठिन कार्य था.
भारतीय मुद्रा अधिनियम, 1935 के अनुसार, ब्रिटिश भारत में सिक्के का वज़न 11.66 ग्राम था और इसके भार का 91.7% तक शुद्ध चांदी थी. पहले रुपए (11.66 ग्राम) को 16 आने या 64 पैसे या 192 पाई में बांटा जाता था.
रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया की स्थापना औपचारिक रूप से 1935 में की गई. इसके बाद ही बैंक नोटों के मुद्रण और वितरण का दायित्व 1935 में भारतीय रिज़र्व बैंक के हाथ में आ गया. रिज़र्व बैंक ने पहली बार 5 रुपए का नोट जारी किया था, जो किंग जॉर्ज सीरीज़ वाला था. जॉर्ज पंचम के चित्र वाले नोटों के स्थान पर 1938 में जॉर्ज षष्ठम के चित्र वाले नोट जारी किए गए, जो 1947 तक चलन में रहे. भारत की स्वतंत्रता के बाद उनकी छपाई बंद हो गई और सारनाथ के सिंहों के स्तम्भ वाले नोटों ने इनका स्थान ले लिया.
भारतीय करंसी के इतिहास में पहला अहम पड़ाव तो तब आया, जब 1949 में स्वतंत्र भारत में सरकार द्वारा पहली बार एक रुपये का नोट छापा गया. इसी के बाद 1 जनवरी, 1949 को बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया.
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1951 में पहली बार नये नोट पर हिंदी देखने को मिली. हिंदी में रुपये के बदले बहुवचन के रूप में रुपया लिखा गया. 1960 के दशक में अलग-अलग रंगों में नोट छापे गये. साल 1980 के बाद नोटों पर कला, संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान से संबंधित चित्र व्यापक तौर पर छापे जाने लगे थे. उससे पहले कुछ राष्ट्रीय स्मारकों के चित्र छापे गये थे.
सबसे खास बात ये कि 1996 में महात्मा गांधी सीरीज़ के नोटों को जारी किया गया था.
सन् 2010 में भारतीय रुपये का प्रतीक अपनाया गया, जो डी. उदय कुमार ने बनाया था. इस प्रतीक को बनाने में लैटिन अक्षर ‘R’ और देवनागरी के अक्षर ‘₹’ का उपयोग हुआ है, जिसमें दो लाइनों से भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का प्रतिनिधित्व होता है. नये रुपये के संकेत वाले सिक्कों की पहली सीरीज़ 8 जुलाई 2011 को छापी गई.