कभी-कभी सफ़र के दौरान कुछ ऐसा हो जाता है, जिसे भूलना मुश्किल हो जाता है. ऐसा ही कुछ कल मेरे साथ हुआ जो मुझे कल से अभी तक परेशान कर रहा है. हो सकता है जो मैं सोच रही हूं ऐसा न हो लेकिन आज के माहौल ने मुझे डरा दिया.
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हुआ ये था कल मैं अपनी दीदी के ससुराल गाज़ियाबाद लंच पर गई थी. वहां से लौटते समय क़रीब 6 बजे की बात है. मैं स्टैंड पर खड़ी थी, मेट्रो स्टेशन जाने के लिए टैम्पो का वेट कर रही थी. तभी मैंने देखा कि थोड़ी दूर पर एक टैम्पो खड़ा था, वहां गई उससे पूछा तो ड्राइवर बोला कि मैं नहीं जाऊंगा. अभी दूसरी आएगी उसमें चली जाइएगा. उसके मना करने के बाद भी मैं उसकी टैम्पो के पास खड़ी रही. मेरे कदम कुछ देर के लिए वहीं रुक गए और दिमाग़ 100 की स्पीड से चलने लगा.
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दरअसल, उस टैम्पो में ड्राइवर के साथ एक लड़का था और एक छोटी सी क़रीब 10 साल की बच्ची. वो लोग आगे वाली सीट पर बैठे थे, बीच में बच्ची थी और दोनों लड़के अगल-बगल. बच्ची मोबाइल में गेम खेल रही थी और बहुत ख़ुश थी. वो इतनी प्यारी थी कि उसकी मासूमियत को देखकर कदम आगे बढ़े ही नहीं. बस डर लग रहा था कहीं इसके साथ कुछ हो न जाए क्योंकि यही सब तो सुनते हैं आजकल। लोग बहला-फुसलाकर बहाने से छोटी-छोटी बच्चियों के साथ ग़लत कर देते हैं.
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फिर किसी तरह से थोड़ा आगे आई, लेकिन फिर भी सोचती रही और भगवान से यही प्रार्थना करती रही कि भगवान जी अगर कुछ मुझे देने की सोच रहे हैं न तो प्लीज़ उस बच्ची के साथ कुछ मत होने देना. जैसा मैं सोच रही हूं वैसा बिल्कुल मत होने देना. कल से लेकर आजतक बस मेरा दिमाग़ वहीं पर ही है. हालांकि, वो लड़के भी ऐसे बुरे नहीं लग रहे थे, लेकिन आजकल जो हो रहा है उस वजह से सही ख़्याल आता ही नहीं है. मुझे शांति तब मिली जब कुछ और लोग उस टेम्पो के पास खड़े हो गए.
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मैं ये नहीं कह रहीं हूं कि उसके साथ ग़लत ही होता, लेकिन समाज में जो डर पनप रहा है न वो हम लोगों के दिमाग़ में बस चुका है. इसकी वजह से बच्चे अपने ही घरवालों के साथ सुरक्षित नहीं लगते. साथ ही मेरी सभी पैरेंट्स ने एक रिक्वेस्ट है कि अपनी बेटी या बेटे किसी को भी बाहर भेजने पर उनकी ख़बर ज़रूर रखें कि वो कहां हैं?
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Feature Image Illustrated By: Muskan Baldodia