देश भीषण पानी के संकट  से जूझ रहा है. चेन्नई में लोग पानी के लिए लड़ने-मरने पर आतुर हैं.


एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश के सिर्फ़ 32 प्रतिशत घरों में नल से पानी आता है. दिल्ली में 6 लाख से ज़्यादा घरों में पानी की सप्लाई नहीं है. जबकि देश की राजधानी में पाइप द्वारा पानी की सप्लाई कई शहरों के मुकाबले काफ़ी ज़्यादा है.  

Hindustan Times

देश में बनी नई नवेली सरकार के कई चुनावी वादों में से एक ये भी था, नल से जल.


Water Conservationist राजेंद्र सिंह के शब्दों में, 

‘जब Source में पानी नहीं हैं, तो नल में जल अपने आप थोड़ी बनेगा.’  

राजेंद्र ने अपने 4 सहकर्मियों के साथ 35 सालों तक जल संरक्षण कर राजस्थान के 1000 गांवों को आवश्यकतानुसार पानी उपलब्ध करवाया था.


अभी से ठीक 6 महीनों बाद दिल्ली समेत देश के 21 शहरों में भूमिगत जल ख़त्म हो जाएगा.   

उन्होंने नदी किनारे अक्षरधाम मंदिर और कॉमवेल्थ खेल गांव बना दिया और इस वजह से ग्राउंडवॉटर रिचार्ज हुआ ही नहीं.

-राजेंद्र सिंह

Ibibo

यमुना के Flood Plains में ये दोनों बिल्डिंग्स बनाई गई हैं.  

Delhi Parks and Gardens Society की 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 20वीं सदी की शुरुआत में दिल्ली में 1000 से ज़्यादा झीलें थीं. इनमें से 200 से अधिक पर अवैध कब्ज़े किए गए और इन्हें संरक्षित करने के लिए ज़रूरी कदम नहीं उठाए गए. इसकी ज़िम्मेदार Delhi Development Authority, Block District Officers, Archaeological Survey of India, Forest Department और Municipal Corporations (पूर्व, दक्षिण, उत्तर, New Delhi Municipal Corporations और Delhi Cantonment Board) हैं.


‘गायब’ हुई झीलों को मंदिर, सरकारी स्कूल, स्टेडियम, बस टर्मिनल, शमशान आदि में बदल दिया गया.  

दिल्ली जल बोर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में 5 हज़ार से ज़्यादा बोरवेल और ट्यूबवेल हैं. लोग धड़ल्ले से ग़ैरक़ानूनी ढंग से भूमिगत जल का प्रयोग कर रहे हैं.  

भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग को कन्ट्रोल करना सरकार की ज़िम्मेदारी थी. भूमिगत जल के शोषण को बंद करवाना Central Ground Water Board का काम था.

-राजेंद्र सिंह

Daily Hunt

ये तो साफ़ है कि न तो सरकार ने अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से निभाई है और न ही लोगों ने पर्यावरण पर दया दिखाई है.


दिल्ली में बहने वाली इकलौती नदी, यमुना के प्रदुषण की सच्चाई किसी से छिपी नहीं है. दिल्ली में बसी कई अवैध बस्तियां ‘पानी माफ़िया’ के भरोसे ही गुज़ारा कर रही हैं.   

हम अपने स्तर पर भी पानी संरक्षण नहीं कर रहे हैं. कई बार लोग ये कहते सुनाई देते हैं कि हमारे यहां पानी आ रहा है, हम तो ख़र्च करेंगे. कई आसान तरीकों से पानी का संरक्षण संभव है, ज़रूरत है तो सिर्फ़ ‘एक पत्थर तबीयत से उछालने की.’