गांधी जी कहा करते थे कि भारत की आत्मा गांव में बसती है और वे ऐसे ही नहीं कहते थे. उनके कहने के पीछे एक ख़ास वजह थी. गांव एक ऐसी जगह है, जहां की ज़िंदगी बहुत ही सादगी भरी होती है. गांव, बच्चों के लिए मानो एक जन्नत हो, मगर दुख की बात है कि कई बच्चे इससे वंचित हैं. आज के बच्चों का ज़्यादातर समय सोशल मीडिया, वीडियो गेम्स और मोबाइल गेम्स में बीतता है. इसके कारण वे कई चीज़ों से दूर रह जाते हैं.
लोग पढ़ाई और रोज़गार के लिए शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, उनमें ये देसी खेल भी हैं. देसी खेल ना सिर्फ़ मनोरंजन के लिए हैं, बल्कि शारीरिक और मानसिक विकारों को भी दूर करते हैं. देखा जाए, तो आज के समय में इस तरह के खेलों की काफ़ी जरुरत है. ग्रामीणों के लिए मनोरंजन और खेल का मतलब गिल्ली डंडा, लंगड़ी टांग, खो-खो, कबड्डी, पच्चीसी और ऐसे ही कुछ दूसरे खेल हैं. हमारे विज्ञान में भी कहा गया है कि घर के बाहर कुछ देर खेलने से शरीर की एक्सरसाइज़ होती है, जिससे शरीर चुस्त-दुरुस्त होता है. आइए, कुछ देसी खेलों के बारे में जानते हैं.
सगोल कंगजेट – सगोल (घोड़ा), कंग (गेन्द) तथा जेट (हाकी की तरह की स्टिक) का प्रयोग कर इसे खेला जाता था. इसे शाही खेल भी कहते हैं.
चौगान (पोलो) – इसकी लोकप्रियता के कारण मुस्लिम शासक भी इस खेल को पसंद करते थे. इतना ही नहीं अंग्रेज़ भी इसके प्रभाव से बच नहीं सके. आज इसे POLO के नाम से जानते हैं.
बैटलदोड – ‘बैटलदोड’ मतलब बैडमिंटन. यह खेल भारत में आज से 2 हजार वर्ष पूर्व खेला जाता था. आज कई खिलाड़ी इस खेल के कारण देश-विदेश में अपना नाम रौशन कर रहे हैं.
कबड्डी – यह खेल भारतीयता की शान है. इस खेल के लिए किसी विशेष साधन की आवश्यकता नहीं होती है. यह सदियों से चल रहा है, जो अभी तक बरकरार है. देसी खेलों में यही एक ऐसा खेल है, जो काफ़ी लोकप्रिय है.
गिल्ली डंडा – यह खेल पूरे भारत में काफ़ी लोकप्रिय है. इसे खेलने के लिए लकड़ी का एक छोटा ‘डंडा’, और एक नोकीली ‘गिल्ली’ की ज़रुरत पड़ती है. गिल्ली को डंडे से हिट किया जाता है.
पच्चीसी – यह खेल लगभग 2200 वर्ष पुराना है. इसे भारत का राष्ट्रीय खेल कहना उचित होगा. यह खेल ‘चौपड’, ‘चौसर’ अथवा ‘चौपद’ के नाम से जाना जाता है . मुग़ल काल में यह खेल शासकीय वर्ग तथा सामान्य लोगों के घरों में ‘पासा’ के नाम से खेला जाता था. इस खेल में कई ऐसे नियम हैं, जो शासक वर्ग के लिए लाभकारी है.
शतरंज – युद्ध कला पर आधारित यह खेल राज-घरानों तथा सामान्य लोगों में अति लोकप्रिय रहा है. ‘अमरकोश’ के अनुसार इसका प्राचीन नाम ‘चतुरंगिनी’ था जिस का अर्थ चार अंगों वाली सेना था. देश-विदेश में इस खेल के कारण कई खिलाड़ी प्रसिद्धी के शिखर पर चढ़े हैं.
सांप–सीढ़ी – इस खेल का श्रेय 13वीं सदी में महाराष्ट्र के संत-कवि ज्ञानदेव को जाता है. उस समय इस खेल को मोक्ष-पट का नाम दिया गया था. इसकी मदद से लोग स्वर्ग और नर्क के बीच में पहचान कर पाते थे.
हमारे देश में न जाने कितने और ऐसे देसी खेल होंगे, जो विलुप्त होने की कगार पर हैं. इस देसी खेल की मदद से हमारी सोच काफ़ी विकसित होती है. पुराने समय में राजा-महाराजा, इन्हीं खेलों की मदद से कूटनीति और राजनीति करते थे, और सफ़ल भी होते थे.
आज हम मोबाइल और कंप्यूटर में कई तरह के गेम्स खेलते हैं, मगर एक हकीकत यह भी है कि देसी खेलों का कोई सानी नहीं है. ये विशुद्ध Made in India खेल हैं.
Source: The News Minute