मॉर्निंग में बिना ब्रेक और ब्रेकफास्ट के साथ, हाथ में बूम माईक लेकर और नोट-कॉपी के साथ कलम लिए, जब एक पत्रकार घर से निकलता है तो देखने वालों को सुपरस्टार जैसा लगता है. लेकिन… थोड़ा सा रुक कर आप उस पत्रकार से पूछिएगा कैसे हैं आप? वो पत्रकार मुस्कुराते हुए आपको जवाब देगा कि बढ़िया है. जबकि सच्चाई ये है कि उसके दिल में कई चीज़ें एक साथ चल रही होती है. बॉस के साथ मॉर्निंग मीटिंग, डेली प्लान, स्टोरी आइडिया और शाम को रिपोर्ट सबमिट करना. इन सब के बीच में उसकी ज़िंदगी और उसके परिवार का कहीं ज़िक्र नहीं है. हालांकि परिवार वाले शेखी बघारते रहते हैं कि बेटा शहर में बड़ा पत्रकार है.
“ख़बरों की ख़बर वह रखते हैं
अपनी ख़बर हमेशा ढकते हैं
दुनिया भर के दर्द को अपनी
ख़बर बनाने वाले
अपने वास्ते बेदर्द होते हैं ” (विनायक विजेता)
पत्रकार होने का मतलब क्या होता है? ये पत्रकार दिखते कैसे हैं? क्या पत्रकार चापलूस होते हैं? न जाने कितने ऐसे सवाल, जो हम सभी के मन में समाचार पढ़ते या देखते हुए आते हैं. आने भी चाहिए, क्योंकि ये पेशा है ही ऐसा कि सवाल उठना लाज़िमी है. देश-दुनिया की सभी घटनाओं पर पत्रकारों की नज़र रहती है. ख़बरों के संकलन से लेकर दर्शकों तक पहुंचाने तक के क्रम में एक पत्रकार को कितनी मेहनत करनी पड़ती है, उसे शायद आप नहीं महसूस कर सकेंगे, क्योंकि आप पत्रकार नहीं हैं.
हम आपको यहां ज्ञान नहीं देना नहीं चाहते हैं, बस पत्रकारों की ज़िंदगी पर थोड़ा प्रकाश डालना चाहते हैं. एक ख़बर के लिए पत्रकार को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. कभी ज़ख्म खा जाते हैं, तो कहीं चोटिल हो जाते हैं. दिन में अपनी ड्यूटी निभाने के बाद रात के 12 बजे तक ऑफिस में डटे रहते हैं. वॉर, दंगा-फसाद और छिट-पुट हिंसा में जाना इनकी आदत सी हो गई है. आइए आज हम आपको पत्रकारों की ज़िंदगी से रू-ब-रू करवाते हैं.
‘कारगिल’ की पहली महिला रिपोर्टर
पत्रकारिता जगत में बरखा दत्त एक ऐसा नाम है, जिन्होंने कई अवार्ड्स तो जीते ही हैं, साथ ही ऐसे कारनामे भी किए हैं, जो उनसे पहले किसी भी महिला पत्रकार ने नहीं किए. कारगिल युद्ध की कवरेज करने वाली बरखा पहली महिला रिपोर्टर हैं, जिसके लिए उन्होंने अपनी जान जोखिम में डाली. पिछले साल के नवंबर महीने में मुंबई पर हुए आतंकी हमले की लाइव कवरेज में भी बरखा आगे रहीं और पूरी मुस्तैदी से पल-पल की खबर देती रहीं.
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Source: NDTV
सियाचिन की पहली रिपोर्टर
जांबाज रिपोर्टर अनीता प्रताप उस समय सुर्खियों में आई थीं, जब उन्होंने LTTE के प्रमुख प्रभाकरण का इंटरव्यू लिया था. साथ ही सियाचिन की बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में भी रिपोर्टिंग की.
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Source: Santabanta
रिपोर्टिंग करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण था
कारगिल युद्ध के दौरान विक्रम चंद्रा की रिपोर्टिंग देखने लायक थी. इनकी रिपोर्टिंग को देख कर देश की धड़कनें तेज़ होती थीं.
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Source: Ndtv
भोपाल गैस त्रासदी का कहर इस तरह हावी था कि कोई रिपोर्टिंग के लिए वहां जाना नहीं चाहता था. सभी अपनी जान की परवाह कर रहे थे. ऐसे में महेंद्र महर्षि नाम के एक युवा ने रिपोर्टिग के लिए हामी भरी. हालांकि इसका ख़ामियाज़ा उन्हें अब तक भुगतना पड़ रहा है. उन्हें अब सांस लेने में बहुत दिक्कत होती है.
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1984 में सिख दंगे की रिपोर्टिंग सबसे भयावह थी
आज भले ही आलोक तोमर हमारे बीच में न हों, लेकिन 1984 में हुए सिख दंगे की रिपोर्टिंग ने उन्हें अमर बना दिया. सफदरजंग से लेकर पूरी दिल्ली को उन्होंने जिस बहादुरी के साथ कवर किया था, वो अद्भुत था.
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Source: Twitter
गुजरात दंगा
देश के जाने-माने पत्रकार राजदीप सरदेसाई कहते हैं कि इस घटना की रिपोर्टिंग मानो शेर की मांद में घुसना था. तलवार और हथियार लिए ख़ून से लथपथ लोग, सिर्फ़ दूसरे के ख़ून के प्यासे नज़र आ रहे थे. उस समय पत्रकार जिस संजीदगी के साथ रिपोर्टिंग कर रहे थे, वो बहुत ही रिस्की था.
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Source: India
मेरी आंखों के सामने बाबरी विध्वंस हो रहा था
दूरदर्शन में काम करने वाले अशोक श्रीवास्तव ने बाबरी विध्वंस की रिपोर्टिंग की थी. उस समय वे रिपोर्टिंग करना सीख रहे थे. वे कहते हैं कि भीड़ पागल हाथियों की तरह हमसे होकर गुजर रही थी, सिर्फ़ कैमरे की वजह से उनकी जान बची थी.
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जब पत्रकार को ज़िंदा जला दिया गया
फेसबुक पर मंत्री के खिलाफ लिखने के कारण यूपी के एक पत्रकार जगेंद्र सिंह को जान गंवानी पड़ी. इस घटना ने पूरे पत्रकारिता जगत को सकते में डाल दिया था.
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Source: The Hindu
मिड डे के क्राइम रिपोर्टर की गोली मारकर हत्या
मुंबई के प्रमुख अंग्रेजी अखबार मिड डे के एक वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे की उनके घर के बाहर अज्ञात बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. ज्योतिर्मय डे अंडरवर्ल्ड के बारे में बहुत जानकारी रखते थे.
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Source: NBT
न जाने कितने ऐसे पत्रकारों की हत्याएं हो चुकी हैं. कुछ हत्याएं सुर्खियां बन गई, और कुछ की रात के अंधेरे में कीमत चुका दी गई. यह पेशा काफ़ी चुनौती भरा है, जिसे कुछ लोग ही करना चाहते हैं. आइए, हम आपको कुछ ऐसी और घटनाओं के बारे में बताते हैं, जहां रिपोर्टिंग करना, बिल्कुल काल के गाल में समाने जैसा था.
26/11 मुंबई आतंकी हमला
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Source: WSJ
कोकराझार दंगा
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Source: Arise
उत्तराखंड त्रासदी
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Source: Business
मुज़फ्फरनगर दंगा
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Source: Indian Express
सुनामी
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Source: MGA
नेपाल भूकंप
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Source: Coversation
सीरियाई संकट पर रिपोर्टिंग करना भी अहम है
चोटिल होने के बावजूद फोटो खींचते हुए रायटर्स के एक फोटोग्राफर.
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अपनी जान बचाते हुए पत्रकार.
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पुलिस यातना सहते हुए एक महिला पत्रकार.
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पत्रकारों की दर्दनाक ज़िंदगी दिखाने के लिए यह तस्वीर ही काफ़ी है.
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कुछ इस तरह की ज़िंदगी पत्रकारों की होती है.
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Source: Facebook
Committee to Protect Journalist के अनुसार, 1992 से अब तक विश्व में कुल 1189 पत्रकारों की हत्या हुई है. ये आंकड़ें सिर्फ़ अख़बारों के आधार पर है. जब से पत्रकारिता की शुरुआत हुई है, उसी समय से पत्रकारों का दोहन शुरू हुआ था. आजादी, देश, विकास और लोगों को जागरूक करने के लिए पत्रकारों ने जो भूमिका निभाई, वो समाज और देश के लिए इतनी अहम न होती तो उसे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का गौरव हासिल नहीं होता. आज भले ही पत्रकारिता के मायने बदले हों, लोग पत्रकारों को पहले जैसा समर्पित और ज़िम्मेदार नहीं समझते, लेकिन ख़बरें आती हैं, हम ही ले आते हैं और वही ख़बरें बनती हैं देश की एकजुट आवाज, जो बड़े से बड़े बदलाव का माद्दा रखती है.