सरकारी नौकरी वाला बाहुबली और बाकी गंगू तेली, ऐसा ही लोग समझते हैं. मगर कोई ये सोचता है कि जिसे वो बाहुबली बना देते हैं, उस सरकारी नौकरी की वजह से बच्चों को कितना झेलना पड़ता है. मानती हूं ज़िंदगी भर पेंशन आती है, एक कुर्सी पर बैठे-बैठे तोंद निकल आता है जिसे लोग सरकारी नौकरी का आराम समझते हैं. मगर इसके दुष्परिणाम भी होते हैं. जिनके पेरेंट्स सरकारी नौकरी में होते हैं उन बच्चों को कितनी मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं कभी सोचा है. नहीं सोचा होगा क्योंकि सबको तो उनकी सैलेरी दिखाई देती है.
इसलिए आज मैं बताऊंगी उनका दर्द.
1. ट्रांसफ़र होने की वजह से कभी-भी टीचर के फे़वरेट नहीं बन पाते और हो भी गए तो कुछ टाइम बाद स्कूल बदल जाता है.
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2. दोस्त तो बहुत बनते हैं, लेकिन बचपन की दोस्ती वाली और सच्ची दोस्ती की कहीं कमी रह जाती है.
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3. अगर पेरेंट्स में दोनों की पोस्टिंग अलग-अलग जगह हो, तो बच्चे साथ रहने को तरस जाते हैं.
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4. कभी-कभी पोस्टिंग गांव या छोटे शहरों में हो जाने से पढ़ाई की बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है.
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5. कई बार ऐसी जगह पोस्टिंग हो जाती है कि जहां बेसिक चीज़ें भी मिलने में मुश्किल होती है.
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6. जब मम्मी-पापा सरकारी नौकरी में होते हैं तो उन्हें लगता है कि बच्चे भी सरकारी नौकरी करें. इसलिए वो उनके प्राइवेट जॉब या क्रिएटिव करने की इच्छा को समझ नहीं पाते हैं.
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7. मम्मी-पापा को लगता रहता है कि बस जैसे वो पढ़ते थे हम भी सारा दिन पढ़ते रहें.
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8. आधी ज़िंदगी लोगों को और जगह को समझने में ही निकल जाती है, तो किसी से कनेक्शन ही नहीं बन पाता.
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9. अगर किसी ज़रूरी फ़ैमिली फ़ंक्शन या काम को प्राइवेट नौकरी में छुट्टी न मिलने की वजह से नहीं कर पाए, तो ज़िंदगी भर प्राइवेट नौकरी का ताना सुनना पड़ता है.
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10. कई बार ऐसा होता है कि पेरेंट्स के फ़ोर्स करने पर बच्चे सरकारी नौकरी कर तो लेते हैं लेकिन उन्हें पूरी लाइफ़ इस बात का पछतावा रहता है.
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आज मुझे अपना सरकारी नौकरी न करने का डिसीज़न बिलकुल सही लगता है. भले ही इस डिसीज़न ने मुझे बचपन में बहुत डांट खिलाई है, लेकिन मेरे इस डिसीज़न ने मुझे गालियों से बचाया है.
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