जब हम घर से किसी अनजान जगह पर ट्रिप या जर्नी पर जा रहे होते हैं, तो अकसर घरवालों से सुना है कि बाहर संभल कर रहना, ज़्यादा किसी से बात मत करना और कोई कुछ दे तो लेना मत. हालांकि, उनकी बात सही होती है क्योंकि कब, कौन, कैसा मिल जाए, कुछ पता नहीं होता? और ऐसा कितनी बार हम सबने देखा है कि बहुत कम लोग किसी की मदद करते हैं. शायद इसीलिए घरवाले ऐसा समझाकर भेजते हैं.

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मगर मेरे एक दोस्त ने अपनी ट्रिप का अनुभव शेयर किया और उसने इसका बिलकुल उल्टा महसूस किया. उसने अनजान जगह पर अपनापन महसूस किया. उसने बताया,

वो अपने दोस्त के साथ बस से दिल्ली से लेह गया था. जब उनकी बस लेह पहुंची तो वहां से उन्होंने बाइक ले ली और आगे का सफ़र बाइक से तय किया. उनमें से कुछ अजनबी भी थे. सभी बाइक राइड को इंजॉय करते अपने सफ़र में आगे बढ़ रहे थे. उनमें से एक ने अपनी बाइक की स्पीड बढ़ा दी. स्पीड ज़्यादा होने के चलते बाइक कंट्रोल में नहीं रही और पहाड़ से जाकर टकरा गई. उस व्यक्ति को बहुत ज़्यादा चोट आई, ख़ून बहे चला जा रहा था. सबलोग एक दूसरे के लिए अजनबी थे, लेकिन उनसे उसकी हालत देखी नहीं गई उन सबने अपनी ट्रिप को वहीं रोक दिया और उस शख़्स की मदद करने लगे. 

इसके बाद सबने उसे उठाया और पर किसी को वहां के किसी हॉस्पिटल का पता तो नहीं था, लेकिन ये पता चला कि 15 से 20 किलोमीटर की दूरी पर एक मिलिट्री बेस है, वो लोग उसे वहां लेकर गए. फिर वहां पर उन्हें मिलिट्री वालों ने बताया कि Tangtse गांव में हॉस्पिटल है तब सब उसे हॉस्पिटल लेकर गए. वहां पर उसका इलाज किया गया और वो बच गया. 

वो लोग उसे स्टे हाउस में छोड़कर पैंगॉन्ग लेक गए. इसके बाद अगले दिन उन्हें स्टे हाउस से लेकर सब उसी बस में दिल्ली के लिए वापस निकल पड़े.

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उसने अपने अनुभव से मुझे बताया कि जहां एक ओर सब लोग कहते हैं कि कोई किसी की मदद नहीं करता, वहीं दूसरी ओर मैंने वो देखा और महसूस किया कि आज भी लोगों में इंसानियत है. आज भी लोग दूसरों की मदद करने के लिए आगे आते हैं.

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इसके अलावा उसने ये भी बताया कि लेह-लद्दाख एक ऐसी जगह लगी मुझे जहां लड़के और लड़की का भेदभाव नहीं है. जहां लड़कियां भी खुल के सांस ले सकती हैं और अपने सारे फ़ैसले खुलकर कर सकती हैं. 

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