कहते हैं, मुंबई सपनों का शहर है, इस शहर में मैंने भी कदम रखा था. हालांकि, मैं यूपी से हूं और दिल्ली में पढ़ाई के बाद जॉब कर रही थी. मगर ज़िंदगी और जॉब में बदलाव चाहिए था इसलिए मुंबई का रुख़ कर लिया. हालांकि, मुंबई मेरा सपना भी था. इसलिए मुझे डर नहीं लग रहा था, लेकिन एक बात का डर था वो ये कि मैं पहली बार प्लेन से जा रही थी. इस वजह से पेट में हलचल सी थी और हाथ-पांव ढीले.
जिस दिन मेरी फ़्लाइट थी मेरी फ़ैमिली एयरपोर्ट छोड़ने आई. पहली बार इस तरह से उनसे दूर जा रही थी तो रोना आ गया. एयरपोर्ट के अंदर घुसते ही फ़्लाइट के बारे में पता करना शुरू किया और एयरपोर्ट की चकाचौंध में खो गई. थोड़ी देर बाद मेरी सपनों की फ़्लाइट आ गई और मैंने मुंबई के लिए उड़ान भर ली. घर पर सबने कहा था फ़्लाइट में इयरफ़ोन लगाकर बैठना नहीं तो कान दर्द होंगे, तो मैंने वो सब किया जो उन लोगों ने कहा था.
ढाई घंटे के बाद मेरी फ़्लाइट मुंबई एयरपोर्ट पर लैंड की. उस वक़्त तक सब अच्छा लग रहा था. बहुत उम्मीदों से मुंबई आई थी. मगर जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे वो उम्मीद टूट सी रही थी क्योंकि कई जगह इंटरव्यू दिए मगर कोई पॉज़ीटिव रिस्पॉन्स नहीं मिला.
रोज़ अपने पीजी वापस आने पर बहुत निराशा होती थी, लेकिन घरवालों ने फ़ोन पर बहुत हिम्मत बंधाई और कहा नहीं सेलेक्शन हो रहा तो कोई नहीं, गई हो तो घूम लो मुंबई. बस अगले ही दिन से इंटरव्यू की जद्दोज़हद ख़त्म हुई और मुंबई की ट्रिप मेरी सोलो ट्रिप बन गई.
सुबह उठती लोकल पकड़ती और कभी ‘हाजी अली’ तो कभी ‘मरीन ड्राइव’ और ‘बैंड स्टैंड’ घूमती. जुहू बीच में लहरों के शोर के बीच एक सुकून मिलता था. 12 दिन में 8 दिन की मुंबई की वो सोलो ट्रिप मुझे आज भी याद है. मैंने भी अमिताभ बच्चन के बंगले के बाहर फ़ोटो खिंचाई. उनके गार्ड से बात करी वो सब किया जो मुझे ख़ुश कर रहा था. ऑटो में मुंबई की सड़कों में घूमना मुंबई को मेरे और क़रीब ला रहा था.
मुंबई लोकल की भीड़ उन 12 दिनों में अपनी सी लगने लग गई थी. जिस दिन दिल्ली वापस आ रही थी उस दिन थोड़ा दुख मुंबई को भी छोड़कर जाने का हो रहा था. मगर अब दिल्ली में हूं काफ़ी हद तक सैटल हूं. कभी-कभी मुंबई की याद आती है और मेरी वो इत्तेफ़ाक़ वाली सोलो ट्रिप भी याद आ जाती है.
ऐसी किसी सोलो ट्रिप की यादें आपके पास भी हैं तो हमें कमेंट बॉक्स में बताइएगा ज़रूर.
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Illustrated By: Shanu Ketholia