मेट्रो हो या बस, लड़कियों को रोज़ नए अनुभवों से गुज़रना पड़ता है. कभी बस के पीछे भागकर उसे पकड़ना, तो कभी बस में कोने से घूरती नज़रों को बर्दाश्त करना. ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी होता रहता है. जैसा आपको मेरे पहली की कहानियों को पढ़कर समझ आ गया होगा कि मैं बस और मेट्रो से ही सफ़र करती हूं, तो रोज़ कुछ न कुछ झेलती भी हूं.

ऐसा ही एक दिन था, वो दिन तो चला गया मगर उसकी वो बात दिमाग़ में रह गई. वो इसलिए क्योंकि बस और मेट्रो में जबरन छूकर निकलने वाले तो बहुत देखे हैं, लेकिन उन हाथों से बचाने वाले मुझे कम ही दिखे हैं. उन्हीं कम लोगों में एक वो भी शख़्स था जिसने मुझे बचाया.

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मैं दिल्ली मेट्रो में द्वारका से सरोजनी नगर मार्केट जा रही थी और वहां से मार्केट तक की दूरी कुछ 1 घंटे की है. मुझे महिला कोच में सीट नहीं मिली, तो मैं जनरल कोच में आ गई. तभी मेरे पीछे एक लड़का आकर खड़ा हो गया और बिना ब्रेक या बिना धक्के के बार-बार मुझपर गिरने लगा. सीट नहीं मिली थी तो मैं किनारे आराम से खड़ी थी. जब ऐसा एक दो बार हुआ तो मैंने उसको बोला ठीक से खड़े हो जाओ, थोड़ी देर ठीक रहा फिर वही करने लगा. मैं जितना आगे बढ़ रही थी वो भी बढ़ रहा था.

ये सब कुछ वहां खड़े दूसरे लड़के ने देखा और वो मेरे और उसके बीच में जो जगह थी वो वहां खड़ा हो गया. तब जाकर मुझे थोड़ी राहत मिली, लेकिन मुझे तब भी एक डर सता रहा था कि उतरते समय वो न कुछ बदतमीज़ी करके निकल जाए. मगर जैसा मैंने सोचा वैसा नहीं हुआ. जैसे ही मेट्रो का गेट खुला उस लड़के ने जो परेशान कर रहा था उस लड़के का हाथ पकड़ा और मेरी अपोज़िट साइड ले गया.

जिसने मुझे बचाया था वो लड़का टॉल एंड हैंडसम सा था मुझे लगा उतरते ही उसे Thank You! बोल दूंगी, लेकिन वो भीड़ में ही चला गया. आज अपनी इस स्टोरी को मैं उसे ही डेडिकेट करती हूं और एक बड़ा सा Thank You! उसके लिए.

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Illustrated By: Muskan Baldodia