दिल्ली शहर का नाम सुनते ही दिमाग़ में बहुत कुछ आता है. यहां की तेज़ दौड़ती ज़िंदगी, बड़े-बड़े घर, मार्केट, मेट्रो और डीटीसी बस. मगर हम हाल-फ़िलहाल की बात करें तो प्रदूषण, ऑड-इवन और महिलाओं के लिए बस में फ़्री किराया, यही याद आया होगा. आज इसी फ़्री किराये से जुड़ा एक क़िस्सा बताती हूं.

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29 अक्टूबर, 2019 को दिल्ली में महिलाओं को बस में फ़्री यात्रा करने की योजना को मंज़ूरी दे दी गई थी. ये योजना 2020 तक लागू रहेगी. मुझे इस बात का पता अपने ऑफ़िस के एक सहकर्मी से चला. जब मैं ऑफ़िस के बाद घर जाने के लिए बस में चढ़ी, तो चढ़ते ही मुझे कंडक्टर ने ‘पिंक टिकट’ पकड़ा दिया. तब मुझे अपने सहकर्मी की बस में फ़्री सफ़र वाली बात याद आई. मैं रोज़ बस में सफ़र करती हूं और मुझे इसका फ़ायदा भी हो रहा है. जैसे ही कोई भी लड़की चढ़ती है, कंडक्टर तुरंत पिंक वाला टिकट दे देता है.

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मगर आज मैं जब बस में चढ़ी तो ऐसा नहीं हुआ, मैंने हाथ आगे किया मगर कंडक्टर ने मुझे पिंक टिकट देने की बजाय पूछा- ‘टिकट चाहिए?’. मुझे थोड़ा अजीब लगा मैंने बोला कि मुझे पिंक टिकट चाहिए, तो बोलता है ‘आपको बताना चाहिए न’. तब मैंने उसे थोड़ा गुस्से में कहा, ‘ये तो पहली बार है जो बोलना पड़ रहा है, नहीं तो चढ़ते ही कंडक्टर पिंक टिकट पकड़ा देते हैं’. ख़ैर मैं इतना बोलकर अपनी सीट पर बैठ गई.

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इस बात से एक बात तो उस दिन पता चल गई थी कि बदलाव अपने साथ विरोध भी लाता है. जैसे कुछ कंडक्टर्स को ये अपनी ड्यूटी लगी कि मुझे टिकट देना चाहिए, तो कुछ को ऐसा करना शायद अच्छा नहीं लग रहा है. अकसर महिलाओं से जुड़े बदलावों में ही भेदभाव क्यों देखने को मिलता है? मेट्रो में अपनी सीट मांग लेने पर ऐसे देखते हैं जैसे ग़ुनाह कर दिया हो.

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इस योजना के चालू करने का उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना है. जैसा कि टिकट के पीछे भी लिखा है कि ‘जब महिलाएं बढ़ेंगी तो देश बढ़ेगा’. इस फ़्री यात्रा के ज़रिये महिलाएं सिर्फ़ रास्तों की ही दूरी नहीं, बल्कि अपने सपनों को पूरा करने की दूरी को भी पाट पाएंगी.  

आपको बता दें, इस टिकट से सरकारी नौकरी में कार्यरत महिलाएं, जिन्हें यात्रा भत्ता मिलता है वो सफ़र नहीं कर सकती हैं. ऐसा करते पाया गया तो उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी. 

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