क्रिसमस पार्टी का अनुभव लिख रही हूं. वो इसलिए शायद आज मुझे क्रिसमस पार्टी के बारे में पता है, सीक्रेट सैंटा पता है. इस दिन क्रिश्चियन कैसे सेलिब्रेट करते हैं वो भी पता है? मगर एक वक़्त था, जब ये सब कुछ नया था. उस वक़्त मैं कानपुर में रहती थी और स्कूल में थी, उम्र कुछ 14 से 15 साल रही होगी. मिडिल क्लास परिवार से हूं तो क्रिसमस और न्यू इयर के बारे में अपने घर में किसी में कभी इतना उत्साह देखा ही नहीं. और 98, 99 के उस दौर में इन पार्टियों का ज़्यादा ज़िक्र होता भी नहीं था. इसलिए कभी मेरा दिमाग़ उधर गया भी नहीं मेरे लिए भी ये दिन बस आम दिन जैसा ही था. 

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मगर उस साल पता नहीं क्यों क्रिसमस पार्टी पर जाने का मन हो रहा था. शायद कोचिंग और स्कूल में दोस्तों की कानाफ़ूसी ने मन में वो इच्छा जगाई थी. जिस इच्छा ने मुझे कई दिनों तक सोने नहीं दिया क्योंकि पार्टी में जाने की परमिशन पापा से जो लेनी थी. कुछ दिन बाद 25 दिसंबर का दिन आ गया, तब तक भी मैंने परमिशन नहीं ली थी. मेरी एक दोस्त मेरे घर आती थी उसने मुझसे पूछा तूने पापा से परमिशन ले ली है न पार्टी में चलने की? मैंने बोल दिया अभी तो नहीं. उसने मुझे 4 बजे तक का टाइम दिया और चली गई. उसके जाने के बाद जैसे-तैसे हिम्मत जुटा कर मम्मी के पास गई, क्योंकि इस 25 दिसंबर को बाकी जैसा नहीं जाने देना चाहती थी. 

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पढ़ने में बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन पापा की कसौटी पर खरी उतरती थी तो मम्मी से सोर्स लगवाया और फिर पापा के फ़ैसले का इंतज़ार करने लगी. उस दिन घड़ी कुछ तेज़ ही भाग रही थी. मम्मी पापा से पूछकर आईं तो उनका मुंह कुछ उतरा था मैं समझ गई पापा ने परमिशन नहीं दी. फिर मुझे बोलती हैं कि वो वाली ड्रेस पहनकर जाना अच्छी लगोगी. तभी एक दम से मेरी आंखों में आंसू आ गए ख़ुशी के. तब मुझे समझ आया कि मम्मी मुझसे मज़ाक कर रही थीं. मैंने वही वाली ड्रेस पहनी और ऐसे लग रहा था जैसे मैं जंग के लिए तैयार हो रही थी. घर से निकल ही रही थी तभी पापा बोले 8 बजे तक घर में आ जाना.

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मुझे तो बस उस सपनों की दुनिया में जाना था जिसके बारे में सिर्फ़ सुना था. मैंने हां की और निकल गई. पार्टी के लिए कुछ ज़्यादा पैसे तो मिले नहीं थे, लेकिन जिस कॉलेज में पार्टी थी वहां एंट्री फ़्री थी, ये मुझे दोस्तों ने पहले ही बता दिया था. फ़्री एंट्री सुनकर ही वहां जाने की इच्छा जगी थी क्योंकि मम्मी-पापा इन सबके लिए पैसे देने से अच्छा घर में पढ़ना समझते थे. इसलिए ऐसे म्यूज़िकल और गेम्स प्रोग्राम के लिए तो वो पैसे कभी नहीं देते.

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मगर सारे सपने सच हो रहे थे, पापा ने परमिशन दे दी थी, फिर एंट्री मिल गई थी और सबसे अच्छी बात कि मैं वहां पर थी. वेन्यू पर पहुंची तो मेरे सामने एक सजा-धजा सा स्टेज था, जिसपर एक लड़का और लड़की गेम्स खिला रहे थे. साथ ही म्यूज़िक बज रहा था जिसपर डांस कर रहे थे और उस भीड़ में सबकी नज़रें जिस पर टिकी थीं वो रेड कपड़े और सफ़ेद दाढ़ी में सुंदर सा गोल-मटोल सैंटा था, जिसे मैंने इतनी उम्र में पहली बार देखा था. वो सबको टॉफ़ी दे रहा था उसने मुझे भी टॉफ़ी दी. मैंने पहली बार क्रिसमस केक खाया था. वो टॉफ़ी और केक बहुत यादगार था क्योंकि उसकी मिठास में मेरे सारे सपने सच हुए थे. 

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उस दिन पापा की वो डेडलाइन से भी मैं परेशान नहीं थी. ज़िंदगी के वो 4 घंटे आज भी याद हैं. आज कितनी ही बड़ी-बड़ी पार्टी कर ली हैं, लेकिन वो डेडलाइन वाले 4 घंटे मेरे ज़िंदगी के बहुत अहम् और यादगार रहेंगे. वो पार्टी का अनुभव हर पार्टी से अलग और ख़ास रहेगा. 

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