दिल्ली आने के लिए जब मैंने पहली बार ट्रेन ली थी, उस समय भी मैं बहुत डरी थी जबकि मेरी वो ट्रिप दिन की थी. उसके कुछ सालों बाद मेरी वही फ़ीलिंग्स थीं फ़र्क़ बस इतना था कि अब रात थी. दरअसल, मैं किसी काम से कानपुर गई थी और वहां से मुझे अर्जेंट दिल्ली वापस आना था, तो रात वाली श्रमशक्ति में टिकट करा लिया. इससे पहले ओवरनाइट ट्रैवलिंग की नहीं थी तो बहुत डरी हुई थी. मगर दीदी और जीजा जी मुझे हिम्मत बंधा रहे थे कि कुछ नहीं होता है सब अपनी-अपनी सीट पर सो जाते हैं कोई कुछ नहीं बोलता है.

वो सब इसलिए समझा रहे थे क्योंकि वो लोग रात की ट्रैवलिंग करते रहते थे, लेकिन मेरा ये पहला टाइम था. मम्मी भी मुझे समझा रही थीं, कि किसी से ज़्यादा बोलना नहीं मैंने बोला ठीक है. फिर मेरी ट्रेन का टाइम हुआ और मुझे स्टेशन तक छोड़ा गया उस दिन मैं वैसे ही रोई थी जैसे मैं अपनी पहली ट्रिप पर रोई थी.

ख़ैर, स्टेशन पहुंची और मुझे मेरी सीट पर बिठाकर मेरे जीजा जी चले गए. ठंड का ऐसा कोई मौसम नहीं था तो मुझे लगा नहीं कि ज़्यादा ठंड लगेगी. मगर जैसे जैसे रात बीत रही थी ठंड बढ़ने लगी. मैं ठंड से पूरी तरह से ठंडी हो चुकी थी, मेरे आमने-सामने कुछ आंटियां थीं, जो शायद किसी फ़ंक्शन से आ रही थीं. सबने शॉल ओढ़ा हुआ था. एकबार तो लगा कि बोल दूं आंटी मुझे ओढ़ा लो, लेकिन पहली बार ट्रैवलिंग के डर ने मुझे रोक लिया.

अब ठंड और भी बढ़ रही थी, तभी एक आंटी ने पूछा कि बेटा अकेली हो? मैंने थोड़ा डर-डर कर बताया हां, लेकिन स्टेशन पर घर से कोई आएगा लेने. ये इसलिए बोल दिया कि वो कुछ ग़लत करने की न सोचें. फिर वो मुझसे बात करने लगीं, तो बातों-बातों में उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा. पकड़ते ही बोलीं ये तो पूरी ठंडी हो रखी है. वो सब चाय पी रही थीं, तो मुझे भी चाय पीने के लिए कहा मैंने मना कर दिया कि कहीं कुछ मिला न हो? फिर उन्होंने बहुत फ़ोर्स किया तो मैंने पी ली, उन्होंने मुझे अपना शॉल ओढ़ाया, शॉल ओढ़ने के बाद जान में जान आई. नहीं तो लग रहा था थोड़ी देर और होती तो मैं ठंड से मर जाती.

इसके बाद वो मुझे समझाने लगीं कि बेटा डर सही है मगर सब लोग ग़लत नहीं होते. मेरी भी तुम्हारे बराबर बेटी है. तुम्हें देखकर उसकी याद आ गई. आंटी की बात सुनने के बाद मुझे लगा कि मैं कुछ ज़्यादा ही टेंशन ले रही थी. मगर एक बात ये भी है कि मुझे उस ट्रिप में अच्छे लोग मिल गए. इसलिए मेरा वो डर ख़त्म हो गया.

इसका मतलब ये नहीं है कि मैं अब अपनी ट्रैवलिंग में सतर्क नहीं रहती. मैं आज भी पूरी सतर्कता से ओवरनाइट ट्रैवलिंग करती हूं. दूसरों से ज़्यादा मतलब नहीं रखती हूं बस ज़रूरत की ही बात करती हूं. ऐसा ही करना भी चाहिए, ताकि कोई भी फ़ायदा न उठा सके.
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