कानपुर से दिल्ली के सफ़र में मैंने सिर्फ़ ट्रेन से ही खेत देखे थे. देखते ही लगता था कि चली जाऊं. फिर कुछ सालों बाद जाने का मौक़ा मिला. मेरी एक फ़्रेंड है, जो मुझे जयपुर में मिली थी. उसकी शादी उसके गांव झुंझुनू से हुई थी, तो उसने मुझे बुलाया था. मैं तो बहुत ही ख़ुश थी कि अब मुझे गांव जाने को मिलेगा. वहां जाने पर एक ही डर था कि वॉशरूम कहां जाऊंगी? तो उसने बताया कि घर में ही बना है. मेरी एक्साइटमेंट तो दोगुनी हो गई.

rochakpost

पहली बार मैं किसी दोस्त की शादी में 5-6 दिन पहले चली गई और सच बताऊं जब मैं बस से उतरी तो थोड़ा मायूस हो गई क्योंकि वहां कुछ भी गांव जैसा नहीं था. जैसे-जैसे आगे बढ़ने लगी तो मेरा सपना मेरे सामने आता जा रहा था. मैं जिस सड़क पर चल रही थी उसके दोनों साइड लहलहाते खेत थे. औरतें खेतों में काम कर रही थीं, खेतों में पूरी स्पीड से पानी चल रहा था. फिर मैं शाम होते-होते उसके घर पहुंच गई.  

kisanbharti

उसका घर खेत के बिलकुल बीचों बीच था. गांव में सब जल्दी सो जाते हैं तो मैं भी फ़्रेश होकर लेट गई. सुबह उठी तो देखा एक तरफ़ चूल्हे पर पानी गर्म हो रहा था, तो दूसरी तरफ़ हांडी में दूध चढ़ा था और किचन में आंटी मट्ठा बना रही थी. मुझे ये सब सपने से कम नहीं लग रहा था क्योंकि मैंने ये सब सुना ही था. मैं तो ये सब बहुत एंजॉय कर रही थी. तभी एक भारी आवाज़ मेरे कानों में गई, वो आवाज़ मेरी फ़्रेंड के पापा की थी, जो आंटी से कह रहे थे. बिटियो को भी एक गिलास मट्ठा पीने को दो. मुझे तो सुबह चाय पीने की आदत थी इसलिए मेरी तो शामत आ गई. फिर मैंने अपनी दोस्त से हाथ-पैर जोड़कर मना करवा दिया तो वो बोले की आजकल के बच्चे दूध से मुंह बनाते हैं. 

youtube

इसके बाद हम गांव भ्रमण पर निकल गए. वो मुझे अपने खेतों में लेकर गई. मुझे इतना अच्छा लग रहा था मैं एक बच्चे की तरह हरकतें कर रही थी. मगर मुझे बच्चा भी बनना अच्छा लग रहा था. शहरों में तो सब अपने-अपने काम में बिज़ी रहते हैं. मगर गांव में लोग दूसरों के लिए समय निकाल लेते हैं. मुझे वहां कोई नहीं जानता था फिर भी मेरी दोस्त मुझे जहां-जहां लेकर गई सबने बहुत प्यार से मुझे गले लगाया और उनके घर में जो भी खाने को दिया. उसने बताया कि इसे ब्रेड ऑमलेट पसंद है तो उन्होंने वो भी फ़ौरन बना दिया. फिर घर में शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. रोज़ गाने की महफ़िल होती थी गांव की सभी औरतें आती थीं. उसकी शादी भी बहुत अच्छे से निपट गई. 

गांव के वो 5-6 दिन पता ही नहीं चले. जब आ रही थी तो उसकी मम्मी मुझे गले लगाकर रोने लगीं. सच पूछो तो मेरा भी मन नहीं था उस दुनिया को छोड़कर आने का. जहां बहुत सुकून था. गाड़ियों का शोर नहीं था. कोई बेड़चाल और कॉम्प्टीशन नहीं था. मगर सपने तो कुछ दिन के होते हैं ना, वो जब पूरे हो जाते हैं तो उनकी यादों को साथ रखा जाता है उनमें ठहर के नहीं रहा जाता. मैं भी अपनी दोस्त को विदा कर वहां से वापस दिल्ली चली आई.

Life से जुड़े आर्टिकल ScoopwhoopHindi पर पढ़ें.