कॉलेज के बाद कुछ बनने का सपना आंखों में घर कर लेता है. इस सपने को कई लोग अपने शहर में रहकर जीते हैं, तो कुछ शहर से बाहर चले जाते हैं. मेरा भी वो समय कुछ ऐसा ही था, कॉलेज पूरा हुआ था, तो उधेड़बुन चल रही थी कि क्या करूं, क्या न करूं? यही सब दिमाग़ में चल रहा था. 

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तभी मेरी कज़न ने बोला कि अभी कुछ नहीं कर रही हो तो ये एक कोर्स है मास कम्यूनिकेशन नाम का वो कर लेते हैं. तीन महीने का शॉर्ट टर्म कोर्स है कुछ नहीं तो एक अनुभव हो जाएगा. तब तक समझ भी आ जाएगा क्या करना है? मैंने भी हां कर दी और एडमिशन ले लिया. बस कुछ दिन क्लास अटैंड करी फिर जो सर थे वहां उन्होंने मुझे कहा ‘तुम अच्छा लिखती हो’ तो तुम्हें मास कम्यूनिकेशन में पीजी डिप्लोमा करना चाहिए. मुझे ये सब कुछ नहीं पता था कि कैसे होगा? उन्होंने दिल्ली जाने के लिए बोला था, जो मेरे सपने में भी नहीं था. 

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फिर मैंने सबको समझाया, मनाया और अपनी दिल्ली जाने की तैयारी करने लगी. वहां मेरी दीदी भी रहती थी तो रहने की तो कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन कानपुर से दिल्ली जाने की दिक्कत थी. इससे पहले कानपुर से लखनऊ भी एक ही बार गई थी और अब सीधे दिल्ली जाना, वो भी अकेले. डर तो बहुत था, लेकिन कुछ बनने की ज़िद भी थी. 

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मेरे इस सपने को उम्मीद और हिम्मत फ़िल्म ‘Wake Up Sid’ ने दी थी. 2009 में आई इस फ़िल्म की आयशा में मैं ख़ुद को देखने लग गई थी क्योंकि उसे भी राइटर बनना था और मुझे भी. इसलिए कुछ हौसला तो मुझे वहीं से मिल गया था और वो उम्र भी थोड़ी सपनों वाली होती है, फिर चाहे वो करियर हो या लव लाइफ़ या फ़िर दोस्ती. सबके लिए ढेर सारे सपने होते हैं मन में.

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7 अक्टूबर 2010 का मेरा कानपुर से दिल्ली का टिकट था. मम्मी स्टेशन छोड़ने आई थीं, हालांकि, मम्मी और मैं घर से ही रो रहे थे. फिर जब स्टेशन पहुंचे तो ट्रेन आई उसके बाद मम्मी की आंखों में भरे आंसू उनके चेहरे पर आ गए और मेरे से भी रहा नहीं गया और रोने लगी.

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आस-पास बैठे लोग हमें देख रहे थे, शायद वो भी समझ गए थे कि मेरी पहली जर्नी है. फिर दिल्ली पहुंची तो यहां दीदी ने रिसीव किया. अगले ही दिन कॉलेज जाना था. कॉलेज पहुंचकर यहां की ज़िंदगी देखी तो मुझे बहुत अच्छा लगा. पहली बार इतनी बड़ी सड़कें और फ़्लाईओवर देखे थे, ज़िंदगी नई सी लग रही थी और मज़ा भी आ रहा था. 

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आख़िर में यही कहूंगी कि, वक़्त सब कुछ सिखा देता है और वक़्त के साथ चलने वालों को ही मंज़िल मिलती है. इसलिए अपने डर को वक़्त पर हावी मत होने देना. ऐसा कर लिया तो, मंज़िल तुम्हें तुम्हारे सामने नज़र आने लगेगी.

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