हम सब तैयारियों में जुटे थे क्योंकि उस दिन मैं, मम्मी और मेरी एक बुआ हमारी ऋषिकेश वाली बुआ के यहां जा रहे थे. उनके घर जाने से ज़्यादा ख़ुशी कुछ दिन वहां के शांति भरे माहौल में रहने की थी. मैं पहले भी जा चुकी थी बहुत ही सुकून मिलता है वहां पर. दूसरा उनका सरकारी क्वार्टर है तो वहां का मौहाल और भी अच्छा लगता है. सब आंटी अगल-बगल रहती हैं घर के बाहर बगीचा. ये सब मुझे हमेशा से पसंद है तो ये सब सोचकर ही मेरा तो ख़ुशी के मारे दिमाग़ ख़राब था.

फिर हम वहां पहुंचे. पहुंचते ही हमने नाश्ता किया उसके बाद बड़े लोगों ने प्लान बनाना शुरू कर दिया. कल त्रिवेणी घाट जाएंगे. परसों हर की पौड़ी जाएंगे और वगैरहा-वगैरहा. अगले दिन हम सुबह जल्दी उठ गए और त्रिवेणी घाट के लिए निकल गए. अच्छा जो बुआ हमारे साथ गई थीं, उनका एक रिकॉर्ड है की वो जहां भी जाती हैं गिरती ज़रूर हैं. एक बार की बात है पापा के साथ गाड़ी में जा रही थीं पापा ने ब्रेक लगाया और गाड़ी हल्की सी ही डिसबैलेंस हुई और बुआ गिर गईं.

ऐसा ही कुछ तब हुआ था, हम लोग सब वहां थे गंगा जी में नहाया उसके बाद वहां एक ऊंचा सा टीला था जिसपर बैठकर बुआ कपड़े धोने लग गईं. हम सब भी वहीं बैठे थे. हम तो आराम से बैठे रहे तभी अचानक बुआ की चीख सुनाई पड़ी. चीख सुनते ही मेरी दूसरी बुआ बोलीं लगता है गिर गईं और सच में वो गिर गई थीं. उन्हें हल्की-फुल्की लगी तो थी, लेकिन वो भी अब अपने गिरने को सीरियस नहीं लेती थीं, शायद इसीलिए हमने देखा तो वो हंस रही थीं. उन्हें हंसता देखकर हम सब भी हंसने लग गए.

शाम होने से पहले हम सब घर वापस आ गए और उनको दर्द शुरू हो गया क्योंकि लगी तो थी ही उनको मगर उस समय उन्हें अपनी इस बात पर हंसी आ गई थी. फिर हमारे सारे प्लान बुआ के दर्द पर निर्भर हो गए. हमारी वो शांति वाली ट्रिप बुआ के दर्द में बदल गई.
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