दुख पता है क्या होता है? नहीं पता तो आज मैं बताती हूं. मेरी ये कहानी सुनकर हो सकता है आपका दर्द भी छलक उठे क्योंकि आप में से कितने लोग होंगे जो मेरी तरह रोज़ इस दर्द से गुज़रते होंगे, लेकिन कह नहीं पाते. इसलिए आज मैं आप सबकी आवाज़ बनकर ये कहना चाहती हूं, ताकि इसे पढ़ने के बाद आपको लगे कोई तो है आपका.
चलिए अब ज़्यादा इंतज़ार नहीं कराऊंगी बता ही देती हूं क्या है वो दर्द. दरअसल, रोज़ बस से आती हूं, कभी डायरेक्ट वाली मिल जाती है तो कभी छूट जाती है. जब छूट जाती है तब एक ही जगह तीन बस बदलनी पड़ती है. ये सोचते ही मेरी सारी इंद्रियां जवाब देने लगती हैं, लेकिन क्या करूं ऑफ़िस तो जाना ही है न?
आज क्या हुआ मैंने घर से बस स्टैंड तक कैब ली और बस स्टैंड पहुंचने ही वाली थी उससे पहले रेडलाइट हो गई. उस रेड लाइट को देखकर बहुत गुस्सा आया, लेकिन उस रेड लाइट के बीच मेरी 717 नम्बर की बस निकल गई. वो देखकर तो ऐसा लगा धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं क्योंकि ट्रैफ़िक जाम भी बहुत था और मेरी बस भी निकल गई.
उस एक बस के छूटने से पता है, मैं 45 मिनट में पहुंचती हूं और मैं पहुंची 1 घंटे 15 मिनट में. ऐसा कई बार होता है. मगर सच बताऊं ग़लती मेरी नहीं, बल्कि बस की है. जब मैं टाइम से पहले बस स्टैंड पर होती हूं तो बस आती नहीं है और जब थोड़ा सा लेट होती हूं तो सामने से निकल जाती है. मुझे लगता है ये मुझसे पिछले जनम का कोई बदला ले रही है. इसीलिए तो जब होता है मुझे ठेंगा दिखाकर मेरे सामने से निकल जाती है.
इससे इतना ही कहूंगी बहन अब हमारा साथ ज़्यादा दिनों का नहीं रहने वाला है तो मेरी बात तो नहीं करूंगी, लेकिन बाकी लोगों के दर्द को समझो और थोड़ा सा वेट कर लिया करो.
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Feature Image Illustrated By: Shanu Ketholia