मौत दुनिया की एक ऐसी सच्चाई है, जिसे कोई झुठला नहीं सकता. यह एक सार्वभौमिक सत्य है. ग़ौर कीजिए कि एक ऐसी आत्मा, जो ना हमें नुकसान पहुंचा रही हो, और ना ही हमें परेशान कर रही हो, फ़िर भी उसके सामने आते ही हम डर जाते हैं… क्यों? दरअसल, मृत्यु के बाद भी जीवों की कई इच्छाएं अधूरी रह जाती हैं, जिसे वे हर-हाल में पूरा करना चाहते हैं. यह बात हम स्वीकार करें या ना करें, मगर ये सच है. आत्माओं की शांति के लिए उनके परिजन पूजा- अनुष्ठान कराते हैं, ताकि उन्हें शांति मिल सके और वे परलोक धाम बिना किसी परेशानी के जा सकें. उनकी शांति के लिए उनके परिजन ‘गया’ में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करवाते हैं. ऐसा माना जाता है कि पिंडदान के दौरान आत्माओं से बात भी करते हैं.

b’Photo- Bikram Singh’
गया में पिंडदान कराने वाले पंडित विष्णु जी महाराज कहते हैं, कि अपनी इच्छाओं और अधूरी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए कुछ आत्माएं धरती पर तब-तक मौजूद रहती हैं, जब-तक वे यहां से संतुष्ट ना हो जाएं. ऐसे में पिंडदान करने आए परिजनों का इंतज़ार करती हैं, ताकि वे अपनी बात उनसे कह सकें.

पिंडदान का अर्थ, पूर्वजों की मुक्ति से है. गयाजी में देश और दुनिया भर के श्रद्धालु अपने पूर्वजों का पिंडदान कराने आते हैं. हिंदू धर्म में पिंडदान की परंपरा वेदकाल से ही प्रचलित है. पितरों के मोक्ष के लिए यह एक अनिवार्य परंपरा है, इसका बहुत ज़्यादा धार्मिक महत्व है.

पिंडदान के दौरान इस मंत्र का एक अलग महत्व होता है. इस मंत्र के उच्चारण मात्र से ही प्रेत अनुभव करते हैं कि वे मर चुके हैं. यह अनुभूति भावनात्मक ही होती है, जो प्रेतों-पितरों को स्पर्श करती हैं. पिंडदानादि पाकर पितृगण प्रसन्न होकर सुख, समृद्धि का अशीर्वाद देते हैं और पितृलोक को लौट जाते हैं.

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कैसे होती है पूर्वजों से बात?

कई बार प्रेतात्माएं इतनी असंतुष्ट होती हैं कि वे अपनी दिल की बात अपने सबसे करीबी परिजनों से ही कहना चाहती हैं. ऐसे में पिंडदान करने आए परिजन, उसे आसानी से महसूस करते हैं.

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कई लोगों ने इस संबंध में अपने अनुभव बांटे

गया के लोहानीपुर के रहने वाले अरुण सिंह अपना अनुभव बांटते हुए कहते हैं कि,

कार एक्सिडेंट में बेटे को खोने के बाद अशोक राम कहते हैं कि,

धरती रहस्यों से भरी हुई है. कई ऐसे रहस्य हैं, जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं हैं. अगर भगवान हैं, तो आत्माएं भी हैं. गरूड़ पुराण के अनुसार यमलोक 99 हजार योजन (योजन वैदिक काल की लंबाई मापने की इकाई है. एक योजन बराबर होता है चार कोस. यानि, 13-16 कि.मी.) है. वहां पापी जीव को दो, तीन मुहूर्त में ले जाते हैं , इसके बाद यमदूत उसे भयानक नरक यातना दिलाते हैं. कर्मों के अनुसार, जीवों की सज़ा तय होती है. ऐसे में सज़ा से बचने के लिए वे धरती पर मौजूद अपने परिजनों से अपेक्षा रखते हैं कि उनके लिए पिंडदान हो.

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कई बार मनुष्यों की अधूरी इच्छाएं इस धरती पर ही रह जाती हैं. ऐसे में इसे पूरा करने के लिए उन्हें किसी के शरीर की ज़रुरत महसूस होती है. अगर उनकी इच्छाएं जल्दी पूरी हो जाती हैं, तो वे शरीर का त्याग बहुत जल्दी कर देते हैं, नहीं तो ये सिलसिला कई जन्मों तक रहता है. ये मान्यता है कि गया में एक बार पिंडदान करवाने के बाद, दोबारा पूर्वजों की मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है