एक 24 वर्षीय सीरियाई औरत ने सुनाई है रोंगटे खड़े कर देने वाली उत्पीड़न की कहानी. ये औरत भगवान में अपना विश्वास खो चुकी है. वो याद करती है कि जब उन्हें बेरहमी से पीटा जाता था, तो वो भगवान का नाम लेकर चिल्लाती थीं, पुकारती थीं कि हे भगवान! तू है तो हमें बचा ले. उनका उत्पीड़न करने वाले हैवान उन्हें गन्दी गाली दे कर कहते कि तुझे लगता है भगवान तुझे बचा लेगा? ये कह कर वो उसे और मारते. ये सब सहने के बाद वो कभी मन में भी भगवान का नाम नहीं लेती हैं.

उन्हें एक रेस्तरां में नौकरी दिलाने के बहाने सीरिया से Lebanon लाया गया था. उनके अलावा 75 औरतें और थीं, जिन्हें ‘Chez Maurice’ और ‘Silver-B’ नाम के 2 वेश्यालयों में रखा गया था. एक दर्जन से ज़्यादा लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है.

वो बताती हैं कि उन्हें कैद कर के रखा गया था, कई- कई दिनों तक उन्हें सूरज की रौशनी देखना भी नसीब नहीं हुआ करता था. Unprotected Sex के कारण जब वो प्रेगनेंट हो जातीं तो जबरन उनका एबॉर्शन कराया जाता.

जहां उन्हें रखा गया था उस घर की खिड़कियों को काले रंग से रंगा गया था. वो बाहर की हवा में सांस लेना भी भूल चुकी थीं. उन्हें तब तक पीटा जाता था, जब तक वो उनके सामने सरेंडर नहीं कर देती थीं.

Weekdays में उनका एक दिन में 10 बार तक बलात्कार किया जाता था और Weekends में ये संख्या दोगुनी हो जाती थी.

वर्जिन लड़कियों का कौमार्य भंग करने के लिए वो दरिन्दे बोतल का इस्तेमाल करते थे. वो 5 अन्य औरतों के साथ एक महिला गार्ड को मार कर पीछे के दरवाज़े से वहां से निकलने में सफल हो पाई.

अब जब वो वहां से निकल चुकी हैं. तब भी वो अपने परिवार के पास नहीं जाना चाहतीं. वो कहती हैं कि मैं अपनी बहन या भाई से जा कर नहीं कह सकती कि मैं अब तक एक वैश्या के रूप में काम कर रही थी.

ये है विडंबना इस समाज की कि यौन हिंसा की शिकार कोई लड़की आज़ाद होने के बाद भी खुद अपने घरवालों के पास जाने से कतराती है. जानती है न कि उसके साथ जो हुआ है, उसके बाद वो इस समाज के लिए हमेशा के लिए ‘अपवित्र’ हो गयी है. किसी दिन हिम्मत कर के अपने घरवालों के पास चली भी गयी, तो इसकी प्रबल सम्भावना है कि वो भी उसे अपनाने से इंकार कर देंगे. उसके अपने भी मुंह मोड़ लेंगे उससे, उसके दर्द से. इस टूटी हुई औरत को संभालने कोई नहीं आएगा. क्योंकि यौन हिंसा के बाद पीड़िता लोगों के लिए इंसान नहीं रह जाती, बस एक शरीर बन कर रह जाती है, जिसकी आत्मा को पहले हैवान कुचलते हैं और फिर उसे घृणित निगाहों से देखने वाला ये समाज.

जितनी घृणा यौन हिंसा के पीड़ित के लिए लोगों के मन में आ जाती है, उतना रोष यदि दोषी के लिए आया होता तो आज ये बेटी अपने परिवार से ही दूर रहने को मजबूर न होती. यही है इस समाज का दोहरा रवैया, ‘हम बलात्कार के खिलाफ हैं, पर पीड़ित के साथ नहीं खड़े हो सकते.’ उसके लिए संवेदनाएं खुद-ब-खुद मर जाती हैं.

जो इन औरतों के साथ वैश्यालय में हुआ वो बेहद दुखद है, पर उससे ज़्यादा दुखद ये सोच है कि एक यौन-उत्पीड़न की शिकार को अपनाने से उसके परिवार की इज्ज़त घट जाएगी. आप इससे सहमत हैं, तो इस पोस्ट को शेयर ज़रूर करें.

Feature Image Source: Cdn