World Sparrow Day: आज सुबह मेरी आंख चिड़िया की चहचहाहट के साथ खुली और मुझे एहसास हुआ कि ये तो कोई जानी-पहचानी सी आवाज़ है और तभी मुझे याद आ गया मेरा बचपन. वो बचपन जब सुबह की नींद एक चिड़िया की चहचहाहट से खुलती थी. वो चहचहाहट बहुत ही मधुर होती थी. ये चिड़िया कोई और नहीं गौरैया ही होती थी. घर के आंगन में बार-बार दाने की तलाश में उसका आना मन को भाता था, और इसलिए मैं रोज़ उसके लिए एक मिटटी के बर्तन में दाना और दूसरे बर्तन में पीने को पानी भी रखती थी. बचपन की कोई सुबह ऐसी नहीं होती थी, जब प्यारी सी और नन्हीं सी गौरैया ने आंगन में आकर दाना न चुगा हो. घर के वरामदे में लगे बेल के पेड़ पर उसने अपना छोटा से घोंसला बनाया हुआ था. और मजाल है कि कोई दूसरा पक्षी उस पेड़ पर बैठ जाए. और अगर ग़लती से कोई भूला-भटका पक्षी छांव की आस में उस पेड़ पर बैठ भी गया, तो वो लगातार अपनी बोली में उसको भगाने की कोशिश तब तक करती रहती, जब तक वो वहां से उड़ ना जाए. ऐसा लगता मानों वो उससे बोल रही हो कि ये मेरा इलाका है, यहां से जाओ. उससे एक अपनापन हो गया था. फुदक-फुदक कर उसका पूरे आंगन में घूमते हुए देखना बहुत मज़ेदार होता था.

scroll

पर जैसे-जैसे हम बड़े हुए और पढ़ाई और करियर को बनाने में व्यस्त हो गए, वो भी कहीं गुम हो गई. अब वो आंगन में नहीं फुदकती और न ही उसकी चहचहाहट से आंख खुलती है. वो प्यारी सी गौरैया कहीं खो गई है. वो हमारे आस-पास से कहीं दूर चली गई है. तो वो कहीं दिखती ही नहीं है. अब वो बस यादों में ही रह गई है ऐसा लगता है. गौरैया प्रजाति धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है. लेकिन कभी सोचा है कि गौरैया के विलुप्त होने की वजह क्या है…?

hbw

हालांकि, छोटे शहरों और गांवों, कस्बों में गौरैया दिखाई दे भी जाती है. पर जैसे-जैसे बड़े शहरों में पेड़ों की छांव की जगह बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों की परछाई ने ले ली, धीरे-धीरे ये मीठी बोली वाली गौरिया भी गायब हो गई. जैसे-जैसे शहरों के पेड़ों को काटा गया तो ये अपने आशियाने की तलाश में कहीं और चली गयीं. इसके अलावा गांवों का बदलता रूप, कृषि में इस्तेमाल होने वाली रसायनिक खादें और ज़हरीले कीटनाशक भी गौरैया की इस स्थिति के लिए ज़िम्मेदार हैं. अब तो हाल ये है कि सुबह की शुरुआत कबूतरों की गुटरगू या कौवे की कायं-कायं से होती है. एक तरह से देखा जाए तो आज हमारे पास टाइम भी नहीं है कि पंछियों को देख ही पाएं.

ये भी पढ़ें: एक पक्षी के घोंसले को बचाने के लिए तमिल नाडु के इस गांव ने महीनेभर से बंद की हुई है स्ट्रीट लाइट

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जिसे तरह से कई जीव-जंतु और पक्षी विलुप्त होते जा रहे हैं हैं या हो गए हैं, वैसे ही अब गौरैया एक ऐसा पंछी है जिसका अस्तित्व संकट में है. अगर मैं कहूं कि शायद हम सब ही घर फुदकने वाली इस गौरैया की कमी को महसूस तो करते हैं, पर उसको बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठा रहे हैं, तो ग़लत नहीं होगा. और आप भी मेरी इस बात से सहमत होंगे, हैं ना?

thehindu

दुनियाभर में 20 मार्च को गौरैया संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है.

तो क्यों न आज हम और आप भी कुछ ऐसी बातों और तरीकों पर बात करते हैं, ताकि गायब न हो गौरैया. पहले जानते हैं गौरैया के बारे कुछ छोटी-छोटी बातें:

– गौरैया एक छोटी और प्यारी सी चिड़िया है, जिसका काम पर्यावरण में कीड़ों को कम करने में मदद करना हैं.

– एक गौरैया का जीवनकाल 2 से 3 साल का होता है.

– इसकी लंबाई 14 से 16 सेंटीमीटर और वज़न 25 से 35 ग्राम तक होता है.

– अपने जीवनकाल में ये 5-6 अंडे देती है.

– ये ज़्यादा से ज़्यादा दो मील की दूरी तय करती है.

– गौरैया को अपने झुंड में और इंसानी बस्ती में रहना पसंद होता है.

इसके संरक्षण की बात करने से पहले हम आपको बता दें कि पिछले कुछ दशकों में गौरैया की आबादी में 60 फ़ीसदी से अधिक की कमी आई है. इतना ही नहीं ब्रिटेन की ‘रायल सोसाइटी ऑफ़ प्रोटेक्शन ऑफ़ बर्डस’ ने गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में डाल दिया है. क्योंकि दुनियाभर के ग्रामीण और शहरी इलाकों में इसकी आबादी काफ़ी घटी है.

ये भी पढ़ें: पक्षी प्यासे न रहें इसलिए 6 लाख रुपये के 10,000 मिट्टी के बर्तन बांट चुके हैं केरल के श्रीमन नारायणन

thehindu

एक आंकड़े के अनुसार, शहरों में तो इनकी आबादी केवल 20 फ़ीसदी ही रह गई है, जो काफ़ी चिंता जनक है. यही कारण है कि इस पक्षी का संरक्षण हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है. क्योंकि अगर हमने अभी भी विलुप्त होती गौरैया पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में गिद्धों की तरह गौरैया का नाम भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा. और आने आने वाली पीढ़ी को इसके बारे में बताने के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ गूगल ही बचेगा.

तो चलिए जानते हैं कि अपने स्तर पर हम कैसे इस विलुप्प्त होने की कगार पर खड़ी गौरैया का संरक्षण कर सकते हैं.

– सबसे पहले तो हमको अपने आस-पास के पेड़ों को काटने से बचाना होगा

– अगर हमने इनका आशियाना छीना है तो हमको ही इनके लिये आशियाना बनाना पड़ेगा.

– इसके लिए हम और आप अपने घरों में आर्टिफ़िशियल घोंसला बनाकर लटका सकते हैं.

hirvalfoundation

– अगर आपको घोंसला बनाना नहीं आता तो आप केवल अपनी बालकनी या छत पर एक खाली डिब्बा रख दीजिये, उसमें घोंसला ये अपने आप ही बना लेगी.

– पर सबसे ज़रूरी बात ये है कि इसको अपने घर पर बुलाने के लिए सबसे पहले आपको इनके लिए दाना और पानी रखना होगा. क्योंकि जहां इनको खाना मिलता है ये अपना घर वहीं बना लेती हैं.

rediff

– छत पर कुछ बोंसाई और तरह-तरह के गमले भी लगा सकते हैं.

ये भी पढ़ें: विलुप्त होते जीवों की ये 16 कला से लबरेज़ तस्वीरें पहले अच्छी लगेंगी, फिर सोचने पर मजबूर करेंगी

अगर हम और आप ऐसा करेंगे तो एक बार फिर हमारी सुबह इनकी चहचहाहट के साथ ख़ूबसूरत हो सकती है. तो क्या सोच रहे हैं आज और अभी सबसे पहले रखिये गौरैया के लिए दाना-पानी और घोंसला बनाने के लिए डिब्बा.