एक समय था, जब उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुलायम सिंह को लेकर एक कहावत प्रचलित हुआ करती थी- ‘जलवा जिसका कायम है, उसका नाम मुलायम है’. लेकिन अब आलम ये हो गया है कि राजनीतिक जीवन के अंतिम दौर में ‘धरती पुत्र’ मुलायम सिंह का जलवा अपने ही खून के सामने फीका पड़ रहा है.

देश में समाजवादी विचारधारा और पार्टी की बुनियाद रखने वाले राममनोहर लोहिया और बाबू जयप्रकाश नारायण की विचारधारा को कई दशकों तक ज़िंदा रखने में एक अहम किरदार निभाने वाले और उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता मुलायम सिंह यादव एक ज़माने में राजनीतिक अखाड़े के काफ़ी मजबूत पहलवान हुआ करते थे. राजनीति के दंगल में विपक्षियों को उन्होंने कई बार चित कर दिया है. मगर आज उनका राजनीतिक जीवन अपने ही परिवार की लड़ाई में उहापोह की स्थिति में है.

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विपक्षी को धूल चटाने में माहिर मुलायम

लेकिन एक बात याद रखनी होगी कि भले ही अभी राजनीति के दंगल में वे कमज़ोर पहलवान साबित हो रहे हैं, मगर एक ज़माना था जब वे चुनावी दंगल में विपक्ष को धूल चटाया करते थे. मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति के दिग्गज चेहरों में से एक रहे हैं. उनकी राजनीतिक कुशलता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुलायम सिंह की वजह से समाजवादी पार्टी ने पिछले 25 साल में यूपी को चार बार मुख्यमंत्री दिये, जिनमें से वे खुद तीन बार मुख्यमंत्री रहे.

तीसरे मोर्चे के सबसे कद्दावर नेता

देश में जब भी तीसरे मोर्चे की बात आती है, तो मुलायम सिंह यादव का नाम सबसे पहले लिया जाता है. समाजवादी पार्टी को देश की सबसे ताकतवर क्षेत्रीय पार्टियों में से एक बनाने में जिस शख़्स ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई, वो हैं 77 साल के मुलायम सिंह यादव. मगर अफ़सोस कि अब शायद मुलायम सिंह की राजनीति में वो धार नहीं रही, जिसके बल पर वो पूरे देश के तीसरे मोर्चे का नेतृत्व किया करते थे.

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राजनीतिक करियर की शुरुआत

अगर मुलायम सिंह के राजनीतिक करियर की बात करें, तो सहकारी बैंक की राजनीति से शुरू हुई थी. इससे पहले वे स्कूल में पढ़ाने का काम करते थे. मुलायम सिंह का सक्रिय राजनीतिक करियर 1967 में शुरू हुआ, जब वह पहली बार उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिए चुने गए. लेकिन एक बड़े लेवल पर मुलायम सिंह की सियासत का पहला अध्याय 1977 में शुरू होता है. यह कांग्रेस विरोध का दौर था, तब उत्तर प्रदेश में संघियों और समाजवादियों की मिली-जुली सरकार थी.

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राजनीतिक कुशलता के बाज़ीगर मुलायम

साल 1985 आते-आते मुलायम सिंह का राजनीति में कद बढ़ चुका था. साल 1989 में जब उत्तर प्रदेश में सरकार का गठन होने वाला था, तब मुख्यमंत्री पद की रेस में दो नेता थे मुलायम सिंह और अजीत सिंह. मगर मुलायम सिंह के साथ एक अच्छी बात थी कि वे जनाधार वाले नेता थे. वी.पी. सिंह उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के खिलाफ़ थे. तभी मुलायम सिंह ने कुछ ऐसा राजनीतिक पासा फेंका कि वो उत्तर प्रदेश की सत्ता पर बतौर मुख्यमंत्री काबिज हो गये.

कई राजनीतिक पंडितों का यह मानना है कि अगर उत्तर प्रदेश की सियासत में चौधरी चरण सिंह न होते तो शायद मुलायम सिंह भी नहीं होते. चरण सिंह मुलायम को अपना चेला मानते थे, मगर जब बात उत्तर प्रदेश की कुर्सी पाने की आई, तो मुलायम सिंह ने चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह को ही यूपी की सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

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मुस्लिमों के मसीहा बन गये थे मुलायम

ऐसा माना जाता है कि मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश की सत्ता पर तीन बार तक काबिज़ रहे, तो इसके पीछे उनका एक फ़ैसला था. साल 1990 में वे तब यूपी के मुख्यमंत्री थे. तभी बाबरी मस्जिद का मुद्दा गरम हो गया था. उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए विवादास्पद बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया था. 1990 में बाबरी मस्जिद टूटने के बाद यूपी की राजनीति सांप्रदायिक आधार पर बंट गई और मुलायम सिंह को उस घटना के बाद मुस्लिमों का समर्थन हासिल हुआ और मुस्लिमों के लिए वो सूबे में मसीहा बन गये. इसके बाद मुस्लिम-यादव समीकरण को सुलझाते हुए उन्होंने समाजवादी पार्टी को यूपी की सबसे बड़ी पार्टी बनाए रखा.

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जब लालू ने प्रधानमंत्री बनने के सपने को तोड़ दिया था

साल 1996 में मुलायम सिंह मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुने गए थे और उस समय जो संयुक्त मोर्चे की सरकार बनी थी, उसमें मुलायम सिंह रक्षा मंत्री बने थे. लेकिन यह तीसरा मोर्चा लंबे समय तक नहीं चल पाया. मगर बाद में मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने की भी बात चली थी. हालांकि, प्रधानमंत्री पद की दौड़ में वे सबसे आगे खड़े थे, लेकिन उनकी राह का सबसे बड़ा कांटा उस वक़्त कोई था, तो वो उनके अपने समधी और बिहार की राजनीति के कद्दावर नेता लालू प्रसाद यादव थे. लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनके प्रधानमंत्री बनने के इरादे पर पानी फेर दिया. इस तरह मुलायम सिंह के प्रधानमंत्री बनने का सपना, सपना ही रह गया.

बहरहाल, भले ही ‘नेता जी’ राजनीति के चक्रव्यूह में फंसे नज़र आ रहे हैं, मगर राजनीतिक चक्रव्यूह को कैसे भेदा जाता है, मुलायम सिंह यादव बखूबी जानते हैं.

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