आकाश में सूरज 44 डिग्री सेल्सियस के तापमान साथ अपने आवेग में रहता है, धरती भी हमें तपाने की साजिश करती है. ऐसे में ज़िंदगी की रफ़्तार हमें अहसास कराती है कि रुकना मना है, थकना मना है. अपनी मंज़िल को पाने के लिए हम आगे बढ़ते हैं. कभी गाड़ियों से तो कभी पैदल, मगर हम आगे बढ़ते हैं. तमाम उपाय कर के हम गर्मी के प्रकोप से ख़ुद को बचा लेते हैं. लेकिन कुछ लोगों के लिए यही गर्मी ज़िंदगी है और उनके सपने भी. वे हमारे लिए दिन-भर धूप में खड़े रहते हैं, काम करते हैं, ताकि हमें परेशानी न हो. ये आर्टिकल उन लोगों को समर्पित करना चाहता हूं, जिनकी वजह से हमारा हिन्दुस्तान चल रहा है.

पसीने से लथपथ, सड़क पर, रेलवे ट्रैक पर, गलियों में और चौक पर, आपको ऐसे लोग ज़रूर मिल जाएंगे, जिन्हें न तो आप पहचानते हैं और न ही वो पहचानते हैं. बस फ़र्क इतना होता है कि आप उन्हें ताकते हैं, लेकिन वो आपको नहीं ताकते होंगे. वो अपने काम में इतने रमे होते हैं कि उनको पसीने भी सुबह की ओस की बूंद की तरह लगते हैं. न खाने की फिकर और न ही पानी पीने की. बस ज़िंदगी के कड़वे सच को लेकर आगे बढ़ रहे हैं. हालांकि उनका भी परिवार होता है और उनकी भी ज़िंदगी होती है. हमारी तरह वो भी सांस लेते हैं, मगर हमारी सांसों का ज़्यादा ख़्याल रखते हैं.

सीमा और हमारी सुरक्षा के लिए तत्पर रहते ये ‘जांबाज़’

वर्दी के बोझ में हमारे जवान इतने दबे रहते हैं कि इन्हें न तो गर्मी की परवाह होती है और न ही किसी और मौसम की. पारा 50 डिग्री पार क्यों न हो जाए, लेकिन इन्हें इस बात की फिक्र रहती है कि कोई दुश्मन सीमा पार न कर जाए. इनके हौसले और जज्बे को हमअपनी जुबां से बयां नहीं कर पाएंगे. गर्व है हमें इन पर.

Mensxp

चौराहों पर बेगानों को अपना बनाती ये ‘ट्रैफिक पुलिस’

जब भी हम कहीं जाते हैं, तो हमारे दिमाग में यही रहता है कि हम अपने गंतव्य तक जल्दी से जल्दी पहुंचें. कई बार रोड खाली होती है, तो कई बार सड़कों पर जाम लग जाता है. ऐसे में सड़क के बीचो-बीच, हाथ में डंडा लिए हुए, सीटी के साथ, पसीने से लथपथ, सफेद शर्ट और ब्लू पैंट पहने एक शख्स रोड को खाली करवाने की क़वायद करता है. आम बोलचाल की भाषा में इन्हें ‘ट्रैफिक पुलिस’ कहते हैं. इनकी सच्ची निष्ठा और लगन से हमें कई परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है.

Washingtonpost

करोड़ों भारतीयों को आपस में जोड़ते ये ‘ट्रैकमैन’

अगर भारतीय रेलवे को हिन्दुस्तान की जीवनरेखा कहा जाए, तो कुछ गलत नहीं होगा. देश की 95 प्रतिशत आबादी यात्रा के लिए इस पर निर्भर है. भारतीय रेलवे ट्रैक 110,000 किमी. में फैला हुआ है. ऐसे में इन पटरियों के लिए लगभग 2 लाख कामगार मौजूद हैं. इनका काम होता है, पुरानी पटरियों को हटा कर उसमें नई पटरियां लगाना, ताकि ट्रेन अपनी पूरी रफ़्तार में छुक-छुक कर अपनी मंज़िल की ओर निकले. इस काम में इन कामगारों को काफ़ी तकलीफों से गुजरना पड़ता है. कभी चोट लगती है, तो कभी घर की याद सताती है. बेमौसम, भारी मन से, वीरान जंगलों में ये हमारे लिए काम करते हैं.

The National

सड़कों पर प्यासे ‘रेहड़ी वाले’

सड़क किनारे रंग-बिरंगी बोतल और पोस्टरों के साथ रेहड़ी वाले मिल जाएंगे. ये महज 10 रुपये में हमारी प्यास बुझाते हैं, लेकिन ख़ुद प्यासे रह जाते हैं. पसीने से परेशान होते हैं, कभी-कभी इतने भीग जाते हैं कि नोट भी भीग जाती है, पर इनकी मुस्कान नहीं जाती है.

Ekplate

भूखा किसान, जो हमारी भूख मिटाने के लिए हैं

देश में 65 फीसदी आबादी अभी भी खेती पर निर्भर है. अपनी अथक मेहनत से ये किसान हमारे लिए अन्न उपजाते हैं, ताकि हमारी भूख मिट जाए. इन्हें न गर्मी की परवाह रहती है और न ही बारिश की. दुख की बात ये है कि इन किसानों को भी भूखे सोना पड़ता है.

Hindustan Times

समय से पहले आता ‘डिलिवरी बॉय’

ई-कॉमर्स के दौर में हमें हर चीज़ घर में मिल जाती है. इससे न सिर्फ़ हमारा समय बच जाता है, बल्कि परेशान होने से भी बचते हैं. ऐसे में कभी ग़ौर किया है कि इन ख़ुशियों के बीच में ‘डिलिवरी बॉय’ का कितना योगदान होता है? कॉम्पीटिशन के इस समय में अगर समय की कीमत जाननी हो, तो इन ‘डिलिवरी बॉय’ से पूछिए. एक तो गर्मी, ऊपर से समय पर डिलिवरी करने का दबाव.

Locanto

ज़िंदगी को रफ्तार देते ‘ड्राइवर’

इस भौतिक जीवन में ड्राइवर हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं. इसके लिए हम भले ही उनको किराया देते हों, लेकिन सुरक्षित यात्रा की गारंटी वही देते हैं. गर्मी की मार से परेशान होने के बावजूद वे स्टियरिंग पर पकड़ बनाए रखते हैं. बस के ड्राइवर हों या फिर ऑटो के, चेहरे पर मुस्कान लिए रहते हैं.

Rediff

ख़ुशियों को टोकरी में छिपाए हुए ‘फेरीवाले’

गर्मी और लू से बचने के लिए हम घर में दुबके रहते हैं. नींद नहीं आती है, फिर भी सोने की कोशिश करते हैं. तभी गली से किसी की आवाज आती है. हम अचानक सब भूल कर उस आवाज की ओर बढ़ने लगते हैं. हां…हाथ में हम पैसे ज़रूर दबाए रहते हैं. बाहर देखने पर पता चलता है कि वो फेरीवाले होते हैं. गली-गली घूम कर सामान बेचते हैं…और हमें खुश कर देते हैं.

Treck

परिश्रम ही मनुष्य की वास्तविक पूजा है. इस संसार में सफ़लता का राज भी परिश्रम ही है. बिना इसके हम ज़िंदगी की कल्पना नहीं कर सकते हैं. अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य को परिश्रम करना पड़ता है. आलसी लोगों के लिए इस धरती पर कोई जगह नहीं है. खदान में जाने वाले उस मजदूर से पूछिए कि ज़िंदगी क्या होती है. एक बार खदान में जाने के बाद उन्हें ये नहीं पता होता है कि खदान से बाहर अगली सुबह देख पाएंगे या नहीं. हमें ऐसे लोगों पर फक्र है, जो अपनी परवाह किए बगैर मानव कल्याण में लगे रहते हैं.

हो सकता है कि जगह की कमी के कारण इस आर्टिकल में कई ऐसे ही समाज-सेवकों का नाम छूट गया हो, लेकिन उनके योगदान को नहीं भुलाया जा सकता है.

Feature Image Source- BBC