वन्दे मातरम्

सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्

शस्यशामलां मातरम्

शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं

फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं

सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं

सुखदां वरदां मातरम्… वन्दे मातरम्

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15 अगस्त, 1947 वो तारीख जिस दिन भारत के हर नागरिक ने आज़ादी की सांस ली थी. इसी दिन हिन्दुस्तान को अंग्रेज़ों की 200 सालों की गुलामी से आज़ादी मिली थी. लेकिन हमको स्वतंत्रता का ये अनुभव देश के हज़ारों शहीदों और क्रांतिकारियों की कुर्बानियों के बाद मिला था. शहीदों ने देश की आज़ादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था कि भविष्य में देश में खुशहाली होगी, अमन-चैन होगा, लेकिन क्या सच में हम आज की तारीख़ में आज़ाद हैं. देश आज़ाद तो हुआ है, मगर हमारे देश में आज भी कई बॉर्डर्स हैं, जो समाज ने ख़ुद ही अपने चारों तरफ बना लिए हैं.

और आज की तारीख़ में इन बॉर्डर्स को पार करना बहुत ज़रूरी है. जैसे:

1. नॉर्थ ईस्ट में रहने वाले भी भारत का ही हिस्सा हैं

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इस बात से हर कोई वाकिफ़ है कि नॉर्थ ईस्ट के लोगों के साथ ख़ास तौर पर लड़कियों के साथ कैसे व्यवहार किया जाता है. जबकि वो भी हमारे देश का ही हिस्सा हैं. आये दिन वहां की लड़कियों पर छींटाकसी, रेप, परेशान करने आदि घटनाएं सुनने को मिलती हैं. लेकिन क्यों भाई, आखिर उनसे इतना बैर क्यों? आज हम जिस दौर में हैं हमको नॉर्थ ईस्ट के लोगों के प्रति इस तरह से रवैये का बॉर्डर क्रॉस करना ही होगा.

2. जात-पात का बॉर्डर क्रॉस कर बढ़ाओ दोस्ती का हाथ

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हमारे देश को अनेकता में एकता के लिए पूरी दुनिया में पहचाना जाता है. लेकिन क्या हम इस पहचान को बनाये रखने में कामयाब हुए हैं. नहीं, हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई सब आपस में लड़ रहे हैं. और हमारी इस लड़ाई की आग में कुछ लोग अपनी राजनितिक रोटियां सेंक रहे हैं. हिंदुस्तान की धरती ने हर धर्म को अपली संतान की तरह पाला है, तो क्यों हम धर्म, जात-पात, ऊंच-नीच जैसी समाज की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं. क्यों नहीं हम इन बेड़ियों को तोड़कर एक-दूसरे की तरफ दोस्ती और प्यार का हाथ बढ़ाएं.

3. महिलाओं को उनके कपड़ों की लिए जज करने का बॉर्डर क्रॉस करो

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हमारे देश में जब-जब किसी महिला का बलात्कार होता है, तो सबसे पहले उसको कैरेक्टर सर्टिफ़िकेट दिया जाता है. उसके बाद उसके कपड़ों को टारगेट किया जाता है. वो तो छोटे-छोटे कपड़े पहनकर घर से बाहर जाती थी. अब ऐसे कपड़े पहनेगी तो क्या होगा. लेकिन मुहको अभी तक ये समख नहीं आया कि लड़की के कपड़े किसी को उसका रेप करने के लिए कैसे उकसा सकते हैं. पर एक बात तो ये भी है कि यहां तो बुर्क़ा पहनने वाली महिला, 6 महीने की बच्ची जिसने फ़्रॉक पहनी हुई थी और 100 साल की महिला का भी रेप होता है. अब इसके लिए कपड़े कैसे ज़िम्मेदार हो सकते हैं? वास्तविकता तो ये है कि ये सिर्फ और सिर्फ़ विकृत मानसिकता वाले ही करते हैं. तो भईया अब बलात्कार के लिए कपड़ों को दोषी बनाना छोड़कर, आरोपियों को सज़ा दिलाने के लिए आवाज़ उठाओ.

4. ख़त्म होती इंसानियत और संवेदनशीलता का बॉर्डर क्रॉस करना

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आज हम तकनीक में मामले में जितना आगे बढ़ गए हैं कि शायद हमारी आंखें किसी का दर्द और पीड़ा को देखने में सक्षम नहीं रही है. और इंसानियत और मानवता तो मानो ख़तम ही हो गई है. यही वजह है, जब कोई सड़क पर मार रहा होता है, या किसी महिला के साथ दुर्व्यवहार हो रहा होता है, तब हम उसकी मदद करने या उसको हॉस्पिटल पहुंचाने की बजाये सेल्फ़ी लेना ज़रूरी समझते हैं. सेल्फ़ी किसी की ज़िन्दगी से बड़ी नहीं है, ये बॉर्डर क्रॉस करना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है, तभी हम एक सभ्य समाज बन पाएंगे.

5. टूरिस्ट्स को परेशान करने की बजाए उनके सामने देश की संस्कृति को पेश करो

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हाल ही में एक घटना सामने आई थी, जिसमें एक विदेशी लड़की के साथ सेल्फ़ी लेने के लिए लोग इतना पगला गए थे कि उनको ये नहीं दिख रहा था कि उनकी इस हरक़त से परेशान हो रही है. वो विदेशी थी और अपने देश में घूमने और ज़िन्दगी भर की यादें जोड़ने आयी थी, लेकिन हमने क्या दिया उसको यादों के रूप में अभद्रता और हैरेसमेंट. हमारे देश में अथितियों को भगवान की तरह पूजा जाता है, लेकिन सिर्फ किताबों और विज्ञापनों में. वैसे हम अपने देश की इसके बिलकुल विपरीत छवि दुनिया के सामने पेश कर रहे हैं. आये दिन विदेशी लड़कियों के साथ बलात्कार की ख़बरें भी आती हैं. ये कहां जा रहे हैं हम? एक बार बैठकर सोचियेगा ज़रूर.

6. पॉलिटिक्स के नाम पर हिंसा और अलगाव पैदा करने का बॉर्डर

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राजनीति के लिहाज़ से भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और यहां बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ हुए हैं. लेकिन आज की राजराजनीति धर्म और जाति के नाम पर ही की जा रही है. और लोग आपस में लड़-मर रहे हैं. पॉलिटिक्स करनी चाहिए लेकिन वो जिससे किसी का भला हो. सिर्फ़ अपने फ़ायदे के लिए की गई पॉलिटिक्स देश के लिए किसी काम की नहीं है.

7. कॉमेडी के नाम पर फूहड़ता न करने का बॉर्डर

सोशल मीडिया हो, टेलीविज़न हो, बॉलीवुड, वेब सीरीज़ कहीं भी देख लो आज की तारीख़ में हेल्दी कॉमेडी करना किसी को आता ही नहीं है. फ़िल्मों और सीरियल्स में धड़ल्ले से डबल मीनिंग वाक्यों, पोस्टर्स का यूज़ हो रहा है. बॉलीवुड में ऐसी-ऐसी कॉमेडी फ़िल्म्स बन रही हैं कि आप उनको परिवार के साथ बैठकर देख नहीं सकते, तो हंसने की तो बात ही क्या की जाए.

8. लड़कियों को बोझ समझने का बॉर्डर

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हमारे देश में औरत को देवी का दर्जा दिया जाता, लेकिन आज भी देश के कई हिस्सों यहां तक कि पढ़े-लिखे लोगों के घर में लड़की के पैदा होने पर मातम मनाया जाता है. आज भी कई जगहों पर बेटी के पैदा होते ही उनको मार दिया जाता है. वहीं कुछ लोग बेटियों को एक बोझ की तरह पालते हैं. उनको बस लड़कियों की शादी करके उनको ससुराल भेजने की जल्दी होती है. कुछ तो लड़कियों को इसलिए नहीं पढ़ाते हैं कि पढ़-लिख कर करना क्या है, ससुराल में चौका-बर्तन ही तो करना है. पर उनको ये क्यों नहीं दिखता कि अपने देश की महिलायें भी आज आसमान की ऊंचाइयों को छू रही हैं.

9. ओहदे के हिसाब से लोगों के साथ अच्छा या बुरा व्यव्हार करने का बॉर्डर

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हमारे देश में काफ़ी सालों से ऑफिसेज़ या समाज में ये चलन बहुत ज़्यादा है कि जो बड़े ओहदे पर बैठा है वो सब कुछ है और जो कोई छोटा-मोटा काम करता है, वो बकार है. लेकिन अगर ऑफ़िस एक गाड़ी है, तो उसमें काम करने वाला हर व्यक्ति उस गाड़ी को चलाता है. तो ये भेदभाव क्यों? दुर्भाग्य की बात तो ये है कि इस तरह का भेदभाव हमारे घरों में भी कई बार देखने को मिलता है.

10. बाल मज़दूरी का बॉर्डर क्रॉस करना

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हम अपने आस-पास कई छोटे छोटे बच्चों को ऐसे काम करते हुए देखते हैं, जो हम खुद नहीं करना चाहते. मेट्रो स्टेशन पर भीख मांगते छोटे बच्चे, घर का कूड़ा उठाने आने वाले बच्चे, घरों, ढाबों, रेस्टोरेंट्स आदि में लोगों की जूठन साफ़ करते बच्चे देखे होंगे. इन मासूमों को पढ़ने-लिखने की इस उम्र में काम करते देखना बहुत दुर्भाग्य की बात है. अगर हम अपने आस-पास किसी भी ऐसे बच्चे को देखें, तो हमको उनको पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उनका भविष्य संवारने में उनकी मदद करनी चाहिए. आखिर आज के बच्चे ही तो हमारा कल हैं.

दोस्तों, जिस देश को आज़ाद कराने के लिए हज़ारों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी, उसी देश में आज हम सब स्वार्थ, भष्टाचार, बेरोज़गारी, महंगाई, रिश्वतखोरी, दहेज आदि बुराइयों की गुलामी कर रहे हैं. अगर हमें अपने देश को दोबारा गुलामी की जंज़ीरों में जकड़ा हुआ नहीं देखना है, तो इन सब बुराइयों को अपने समाज से उखाड़ फेंकना होगा.

तो चलिए आज स्वतंत्रता दिवस के इस मौके पर प्रण लेते हैं कि हम अपने आस-पास से इस तरह की बुराइयों को दूर हटाने के प्रयास शुरू करेंगे. अगर आप मेरी इस बात सहमत हैं, तो शेयर और लाइक करें.