अपने ज़माने में गांधी, नेहरू और पटेल जैसे दिग्गजों की फेहरिस्त में शामिल गोविंद बल्लभ पंत एक ऐसे शख़्स हैं, जिन्होंने चुपचाप भारत के स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई को बखूबी अंजाम दिया. गोविंद बल्लभ न सिर्फ़ आज़ादी की लड़ाई के एक प्रमुख सिपाही थे, बल्कि स्वतंत्रता के बाद भी देश के दिग्गज और प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ थे. आज अगर ये इतने लोकप्रिय हैं, तो इसकी सिर्फ़ और सिर्फ़ एक वजह है इनके द्वारा किये गये कुछ महत्वपूर्ण कार्य.
देश के प्रति समर्पण और सेवा भावना की यह बानगी ही है कि गणतंत्र भारत में महज़ सात साल के कार्यकाल के दौरान ही उन्हें 1957 में देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया. उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को राजनीतिक रूप से पिछड़े माने जाने वाले इलाकों को देश की राजनीति की मुख्य धारा में लाने का श्रेय जाता है.
गोविंद बल्लभ पंत का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में 10 सितम्बर 1887 को हुआ था. इनके पिता एक सरकारी मुलाजिम थे, जिसके कारण उनका अकसर इधर-उधर आना-जाना लगा रहता था. इसलिए गोविंद को उनके नाना बद्री दत्त जोशी के पास लाया गया. कहा जाता है कि गोविंद बल्लभ के व्यक्तित्व और राजनीतिक विचारों को आकार देने में उनके नाना जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
बी.ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद पंत ने 1907 में कानून की पढ़ाई करने का फैसला लिया. वकालत की परीक्षा में शानदार प्रदर्शन करने के लिए उन्हें Lumsden अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया. शुरूआती दिनों में वे अल्मोड़ा से ही वकालत की प्रैक्टिस किया करते थे. लेकिन काकोरी मुकदमे ने एक वकील के रूप में उन्हें पहचान और प्रतिष्ठा दिलाई.
कहा जाता है कि इसी दौर में पंत मदन मोहन मालवीय से खासा प्रभावित हो गये थे. पंत ने मालवीय जी के बारे में कहा था- ‘मैंने अपने सार्वजनिक जीवन में इस धरती पर इनसे बड़ा महान पुरुष कभी नहीं देखा और न ही किसी से मैंने इतना कुछ सीखा है.’
गोविंद बल्लभ पंत, महात्मा गांधी के जीवन दर्शन को देश की जनशक्ति में आत्मिक ऊर्जा का स्रोत मानते रहे. साल 1921 में उन्होंने औपचारिक तौर पर देश की आज़ादी के खातिर राजनीति में अपना कदम रखा. जब मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में काकोरी ट्रेन डकैती में गिरफ्तार लोगों की रक्षा के लिए एक कमेटी का गठन हुआ था, तब पंत भी उसके एक सक्रिय सदस्य थे.
महात्मा गांधी से प्रभावित पंत ने भी नमक आंदोलन का नेतृत्व किया. स्वाधीनता संग्राम के कई आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर उन्होंने हिस्सा लिया और उसका नेतृत्व किया. इसीलिए उन्हें कई बार अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया. उसके बाद जेल आना-जाना उनके लिए आम बात हो गई.
सबसे खास बात ये है कि साल 1937 में पंत जी संयुक्त प्रांत के प्रथम प्रधानंत्री बने थे और उसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने. लेकिन सबसे असरदार वे तब साबित हुए, जब सरदार बल्लभ भाई पटेल की आकस्मिक मृत्यु के बाद वे देश के गृहमंत्री बने. गृहमंत्री के तौर पर वे काफ़ी कुछ करने में सफल रहे.
गृहमंत्री के रूप में उनका मुख्य योगदान भारत को भाषा के अनुसार राज्यों में विभक्त करना तथा हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना था. अगर पंत जी को सबसे अधिक किसी चीज़ के लिए जाना जाता है, तो हिंदी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए ही. शायद इसीलिए 1957 में गणतंत्र दिवस के मौके पर महान देशभक्त, कुशल प्रशासक, सफल वक्ता, तर्क के धनी एवं उदारमन पंत जी को ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया गया.
7 मार्च 1961 को गोविंद बल्लभ पंत का निधन हो गया. उन्होंने अंतिम सांस तक देश की सेवा की.
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