इक ओंकार सतनाम करता पुरख

निर्मोह निर्वैर अकाल मूरत

अजूनी सभम

गुरु परसाद जप आड़ सच जुगाड़ सच

है भी सच नानक होसे भी सच…

गुरूद्वारे में जाकर ये गुरबानी सुनकर मन को जितना सुकून और शान्ति मिलती है, शायद ही कहीं और मिले. ये मेरा ख़ुद का अनुभव है, और शायद अधिकतर लोग मेरी इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखते होंगे. मैं जब-जब दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारा गयी हूं, तब-तब मुझे बहुत सुकून और शान्ति मिली है. मगर हर बार एक चीज़ और है जो मुझे सोचने पर मजबूर कर देती है कि कैसे सालों से बंगला साहिब गुरुद्वारा जैसे देश और विदेश में स्थित गुरूद्वारे हर दिन लाखों लोगों का पेट भरते हैं वो भी मुफ्त में. सच सिख धर्म और उनके लंगर से कोई जितना सीख सकता है, उतना शायद ही किसी और धर्म में हो. इस वाक्य से मैं किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं करना चाहती हूं.

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सिख धर्म की स्थापना दूसरों की पीड़ा और दर्द को कम करने के लिए ही हुई थी, ऐसा कहा जाता है. इसी सीख पर चलते हुए सदियों से ये लंगर भूखे लोगों का पेट भरने का काम करते हैं. ये लंगर केवल गुरुद्वारों में ही नहीं, बल्कि धरना प्रदर्शन, युद्ध के हालातों, बाढ़ या किसी प्राकृतिक आपदा में फंसे लोगों तक पहुंचकर उनकी सेवा और मदद करते हैं.

दुनिया और देश में जिस तरह के हालात हैं उनको देखते हुए, तो मेरा मानना है कि हमको इनसे ज़रूर सीख लेनी चाहिए. हम इनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं.

सब धर्म एक हैं

लंगर की सबसे ख़ास बात ये है कि इसमें धर्म, ऊंच-नीच, जात-पात, अमीर-गरीब के नाम पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता है. यहां सब एक बराबर होते हैं और यहां सबको एक साथ, एक लाइन में बैठाकर पेट भर खाना खिलाया जाता है. गुरुद्वारे का लंगर एक ऐसी जगह है, जहां भेदभाव से परे सिर्फ़ और सिर्फ़ इंसानियत ही नज़र आती है. यहां से कोई भी भूखा नहीं जाता सातों दिन चौबीसों घंटे गुरुद्वारे के लंगर के द्वार खुले रहते हैं.

मदद और सेवा भाव

दूसरों की मदद करना और उनकी सेवा करना सिख समुदाय में भगवान् की पूजा करने के सामान माना जाता है. मेरी तरह आप लोग भी कभी न कभी गुरुद्वारे तो गए ही होंगे और आपने देखा होगा कि वहां अमीर से अमीर इंसान भी जूठे बर्तन धोते हैं, पानी पिलाते हैं. इतना ही नहीं आपके जूते को जूता घर में अपने हाथों से उठाकर रखते हैं और उनको साफ़ भी करते हैं. सिख धर्म के अनुसार, निःस्वार्थ भाव से की गई सेवा ही रब की भक्ति करना है.

ज़रूरतमंदों की मदद करना

पिछले साल तमिलनाडु के सूखा प्रभावित क्षेत्रों के किसानों द्वारा किये गए 40 दिनों के धरना प्रदर्शन के दौरान दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारा ने फ़रिश्ते की तरह इनकी भूख मिटाई.

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इन किसानों के पास ना खाने के लिए कुछ था और न ही शौचालय के लिए कोई सुविधा ही थी. उस कठिन समय में इस गुरुद्वारे ने किसानों के लिए अपने द्वार खोल दिए.

शांत स्वाभाव

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लंगर में कई बार ऐसे लोग भी होते हैं जिनके अंदर सब्र नाम की चीज़ नहीं होती, कई बार वो अभद्र व्यवहार करते हैं, लंगर में बैठकर. लेकिन लंगर में खाना परोसने वालों के माथे पर आपको एक शिकन नहीं दिखाई देगी. ये हर काम शान्ति और सौम्यता के साथ करना चाहते हैं.

मुसीबत में कैसे लोगों का साथ देना है कोई इनसे सीखे

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आपको याद ही होगा कि पिछले साल मुंबई में मूसलाधार बारिश के बाद वहां का जन जीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया था. लोगों के पास खाने-पीने का सामान तक ख़त्म होने लगा था.

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कई इलाकों में पानी भरने के कारण लोगों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था. ऐसे में लोगों की मदद करने के लिए लंगर सिखों के लंगर ने मदद का हाथ बढ़ाया था.

डर कर जीना है बेकार

दुनिया के सबसे ख़तरनाक आतंकी संगठन ISIS ने सीरिया में जो हालात बना रखे हैं, उनसे हर कोई वाकिफ़ है. वहां औरतों और बच्चों की हालत बदतर है.

ऐसे माहौल में मानवता दिखाते हुए शरणार्थियों के लिए शरणार्थी शिविर लगाए गए, जिसमें खासला एड, (जो सिखों का सबसे बड़ा ग्रुप है) तनावग्रस्त इस युद्ध क्षेत्र में लोगों की मदद के लिए आगे आया. इन्होंने शरणार्थियों को शेल्टर के साथ खाना (लंगर), कपड़ा और दवाइयां भी पहुंचाई.

इस काम के लिए सिख युवाओं ने तनाव ग्रस्त और अंदरूनी इलाकों में जान हथेली पर रखकर मदद की. इस काम में उनको बहुत दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन उनके लिए लोगों की ज़िन्दगी ज़्यादा मायने रखती थी.

दुनिया में कहीं भी हमेशा मदद का हाथ बढ़ाना

साल 2014 में जब जम्मू-कश्मीर में बाढ़ से हाहाकार मचा हुआ था, तब युनाइटेड सिख संस्था और शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने लोगों की मदद के लिए राहत और बचाव कार्य में हिस्सा लिया, उस वक़्त हरमंदर साहिब अमृतसर से ‘लंगर’ हवाई मार्ग से प्रभावित इलाकों तक पहुंचाया गया.

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2015 में नेपाल पर एक प्राकृतिक आपदा का कहर बरपा था और भूकंप से पूरा नेपाल हिल गया था. इस भूकंप से वहां के कई प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर और इमारतें तहस-नहस हो गई थीं.

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उस समय ब्रिटेन की खालसा एड संस्था के युवाओं ने काठमांडू सहित अन्य शहरों में जाकर राहत और बचाव कार्य में योगदान दिया. हजारों की संख्या में खाने की सामग्री के पैकेट लोगों तक पहुंचाए गए थे, जिसमें पीने का साफ़ पानी, दवाएं, बच्चों के लिए दूध सहित कपड़े पीड़ितों को मुहैया करवाए गए.

बेहद साफ़-सफ़ाई

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आप दुनिया के किसी गुरूद्वारे में चले जाइये वहां आप बहुत ज़्यादा साफ़-सफ़ाई का ध्यान रखा जाता है. अगर बारिश होती है, तो जैसे ही रुकती है वहां सेवा कर रहे लोग पानी पानी सुखाने लगते हैं.

आप इनकी किचन में चले जाइये खाना बनाने के लिए यहां सफाई का बहुत ध्यान रखा जाता है.

इतिहास में भी है लंगर का ज़िक्र

आपको बता दें कि दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारा ‘बाबा आमटे से टिकैत तक, सबने यहां लंगर खाया है’. 1986 में सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आमटे ने देश भर में ‘भारत छोड़ो’ मार्च का नेतृत्व किया था. इस दौरान उन्होंने और उनके साथ हज़ारों समर्थकों ने अमर जवान ज्योति के पास दो दिनों तक अपना डेरा जमाया था. उस वक़्त भी जब तक आंदोलन चला तब तक बंगला साहिब गुरुद्वारा में उनके समर्थकों ने खाना खाया. इसके अलावा 2011 में 9 महीने तक चले अन्ना आंदोलन के दौरान भी हर दिन हज़ारों आंदोलनकारियों ने यहां लंगर खाते थे.