आज हम अपने आर्टिकल की शुरुआत ट्विटर पर वायरल हो रही एक पोस्ट से कर रहे हैं. Twitter पर वायरल हो रही इस पोस्ट को Parveen Kaswan, IFS, नाम के एक यूज़र ने पोस्ट किया है.
When cities expand, our dump yards also expand. #Forest land seems easy target for them.
— Parveen Kaswan, IFS (@ParveenKaswan) May 26, 2019
This is what our plastic & other waste is doing to wildlife. A marvellous creature on human waste. PC- TN43 FB. pic.twitter.com/wWzBDmMv4n
जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे आपको ख़ुद ही समझ आ जाएगा कि ये पोस्ट इतनी वायरल क्यों हो रही है. इस पोस्ट के अनुसार,
जब शहरों का विस्तार होगा, तो Dump Yards भी बढ़ेंगे, और लोग आस-पास स्थित जंगलों और नदी-तालाबों में कूड़ा फेंकेंगे.
इस पोस्ट में ये भी बताया गया है कि शहरों की तरह ही हमारा प्लास्टिक कचरा और अन्य वेस्ट प्रोडक्ट्स वन्य जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं. इस पोस्ट के साथ एक फ़ोटो भी शेयर की गई है, जिसमें साफ़ दिख रहा है कि कैसे प्लास्टिक कचरे के ढेर में से हाथी अपने खाने के लिए कुछ तलाश रहा है.
अब हम आते हैं इस पोस्ट के मुख्य मुद्दे पर
जितनी तेज़ी से दुनिया की आबादी में वृद्धि हो रही है, उतनी ही तेज़ी से प्राकृतिक संसाधनों की कमी हो रही है. फिर चाहे वो पीने योग्य साफ़ पानी हो, या फिर शुद्ध हवा. बढ़ती आबादी के चलते तेज़ी से हो रहा शहरीकरण वनों को लील रहा है. वन कटते जा रहे हैं और गगनचुम्बी इमारतें बढ़ती जा रही हैं. वैश्विक स्तर पर तापक्रम वृद्धि हो रही है, भूमिगत जल का स्तर गिरता जा रहा है, अनियमित वर्षा हो रही है, प्रदूषण में वृद्धि हो रही है. ऐसे ही कई तरह के कई दुष्प्रभावों को हम इंसानों सहित जलीय, स्थलीय जीवों और पक्षियों को भुगतने पड़ रहे हैं.
अगर देखा जाए तो काफ़ी हद तक इसके लिए ज़िम्मेदार भी हम इंसान ही हैं. हमने अपनी सुविधाओं के लिए धरती पर मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का नाश कर दिया है. इसमें सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है प्लास्टिक ने. प्लास्टिक कचरे के ढेर के निवारण की समस्या पूरी दुनिया के लिए एक चुनौती बन गई है. इस समस्या ने ही ग्लोबल वॉर्मिंग को जन्म दिया है.
इसका सीधा सम्बन्ध बढ़ती आबादी से है, क्योंकि जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे शहरीकरण हो रहा है, और जब शहरीकरण होगा तो Dump Yards (कूड़ा इकठ्ठा की जाने वाली जगह) भी बढ़ेंगे. और कूड़ा फेंकने के लिए ज़्यादा जगह के लिए जंगल और नदी, तालाब लोगों के लिए आसान टारगेट हैं.
ये तो रही बात जंगलों और उसमें रहने वाले जानवरों की, मगर हमने जलीय जीवन को भी कम हानि नहीं पहुंचाई है. इसका इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि जब एक गोताखोर ने समुद्र के सबसे गहरे पॉइंट में गोता लगाया तो उसको वहां भी कई मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरे का पहाड़ मिला.
आये दिन ऐसी कई फ़ोटोज़ ख़बरों में आती हैं, कि मृत व्हेल के पेट में से कई किलो प्लास्टिक की थैलियां निकलीं. वहीं कई कछुए प्लास्टिक के जाल में फंस कर मर गए. ऐसी ना जाने कितनी ख़बरें रोज़ आती हैं.
मगर हमको क्या फ़र्क पड़ता है. हम तो ऐशो-आराम की ज़िन्दगी जी ही रहे हैं. तो क्या हुआ की हमारी आने वाली पीढ़ियों को न ही ये सुन्दर पहाड़ देखने को मिलेंगे न ही नीला समुद्र और नीला आसमान. समय तो अभी भी है अगर हम प्लास्टिक का इस्तेमाल करना आज से ही बंद कर दें.