‘जब वी मेट’ की ‘गीत’ (करीना कपूर) याद है, मुझे तो याद है क्योंकि जब-जब मैं ट्रेन में सफ़र करती हूं वो ‘गीत’ मेरे अंदर पता नहीं कहां से आ जाती है…! वो मुझे ट्रेन से किसी भी रास्ते पर उतर जाने के लिए बोलती है, लेकिन मैं ऐसा कर नहीं पाती हूं. अब ये डर है या कुछ और मुझे नहीं पता.

इस फ़िल्म के डायलॉग ‘अकेली लड़की खुली हुई तिज़ोरी की तरह होती है’ और ‘मैं अपनी फ़ेवरेट हूं’ के अलावा मुझे ‘गीत’ अच्छे से याद है. शायद मेरे अलावा न जाने और कितनी लड़कियां होंगी जो ऐसा ही सोचती होंगी. जिन्हें कभी न कभी लगता होगा कि वो भी किसी भी स्टेशन पर उतर जाएं और उन्हें कोई आदित्य मिले जो उसकी ट्रिप में प्यार घोल दे.

मेरा ये सपना आज फिर से जाग गया वो इसलिए क्योंकि आज ही मैं कानपुर से दिल्ली आई हूं और आज ही नहीं, जब भी मैं सफ़र करती हूं तो लगता है बस ट्रेन रुके और मैं उतर जाऊं. कहीं भी जहां कोई न जानता हो. हालांकि, मूवी में करीना धोखे से प्लेटफ़ॉर्म पर रह जाती है, लेकिन उसका ये धोखा उसे प्यार भरी ट्रिप पर ले जाता है और फिर वो ‘रतलाम की गलियों में घूमती है’ हालांकि, मेरे रूट पर रतलाम तो नहीं आता, लेकिन फिर भी उतरने का मन करता है.

मगर इस ट्रिप क्या हर ट्रिप में मेरे साथ कुछ भी गीत जैसा नहीं होता है. न तो साइड बर्थ मिलती है, हां एक बार मिली थी, लेकिन अंकल जी के खर्राटे भी मिले थे. अबकी बार जाने और आने में दोनों में ही मुझे लोअर बर्थ मिली और मेरी साथ वाली बर्थ में फ़ैमिली और उनके छोटे-छोटे बच्चे, जिन्होंने रो-रो कर मेरी ट्रिप को बहुत ही यादगार बना दिया.

दूसरी ओर अगर हालातों को देखा जाए तो शायद गीत वाली ट्रिप सिर्फ़ 3 घंटे की फ़िल्म में ही अच्छी लगती है क्योंकि फ़िल्म एक लिखी हुई कहानी के हिसाब से चलती है. मगर असल ज़िंदगी की कहानी हर पल बदलती है. इसलिए किसी भी मोड़ पर या किसी भी स्टेशन पर उतर जाने पर आदित्य ही मिलेगा ये ज़रूरी नहीं होता. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां पर गीत को सही सलामत घर पहुंचाने वाले बहुत कम और उसकी ज़िंदगी के सुरों को बिगाड़ने वाले राक्षस हर कदम पर खड़े हैं.

इसलिए, इस तरह के हालातों को देखकर मैंने तो अपने अंदर की ‘गीत’ को दिल में ही संभाल कर रखा है, लेकिन उसकी सांसे नहीं बंद होने दूंगी उसके सपने नहीं मरने दूंगी. असल ज़िंदगी में नहीं, मगर अपने सपनों की दुनिया में उसे ज़िंदा रखूंगी.
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Illustrated By: Muskan Baldodia