Agarwood: साउथ इंडियन सुपरस्टार अल्लू अर्जुन की सुपरहिट फ़िल्म ‘पुष्पा’ में वो एक लकड़ी की तस्करी करते हुए दिखाए गए हैं. इस लकड़ी का नाम है रक्त चंदन या लाल चंदन. इसे विज्ञान की दुनिया में Pterocarpus Santalinus के नाम से जाना जाता है. इस ख़ुशबूदार लकड़ी की क़ीमत लगभग 5000 रुपये प्रति किलो है.
इसका प्रयोग दवा, फ़र्नीचर और कॉस्मेटिक्स प्रोडक्ट्स बनाने में होता है. मगर क्या आप जानते हैं ये दुनिया की सबसे मंहगी लकड़ी नहीं है. इससे महंगी लकड़ी भी मार्केट में उपलब्ध है, जिसकी क़ीमत सोने से भी ज़्यादा है.
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बात हो रही है देवताओं की लकड़ी के नाम से मशहूर वुड अगरवुड (Agarwood) की इसे लिक्विड गोल्ड भी कहा जाता है. चलिए बताते हैं आख़िर क्या है इसकी ख़ासियत.
आज के समय में एक किलो सोने की क़ीमत लगभग 52 लाख रुपये किलोग्राम है. हम जिस लकड़ी की बात कर रहे हैं उसकी क़ीमत मार्केट में क़रीब 73 लाख रुपये प्रति किलोग्राम है. ये लकड़ी का दाम है इससे बनने वाला लिक्विड तो इससे 100 गुणा ज़्यादा महंगा है.
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क्यों इतनी महंगी है अगरवुड?
ये लकड़ी काफ़ी दुर्लभ है. इसे Aquilaria Malaccensis यानी अगरवुड के पेड़ों से प्राप्त किया जाता है. ये दक्षिण पूर्व एशिया मतलब जापान, चीन, भारत जैसे देशों के वर्षा वनों में पाई जाती है. इसे बनाने का तरीका बहुत ही कठिन और लंबी प्रक्रिया है. इसके लिए पहले अगरवुड के पेड़ों में फंगस जिसे मोल्ड भी कहते हैं उससे संक्रमित किया जाता है.
इससे संक्रमित होने के बाद लकड़ी का वो हिस्सा काला पड़ने लगता है. पेड़ का इम्यून सिस्टम उसके संक्रमण से बचाने के लिए उस पर जो प्रतिक्रिया करता है उससे ये हिस्सा ब्लैक होने लगता है. इसके कुछ दिनों बाद इस लकड़ी को काट लिया जाता है और उसमें से मशीन या अन्य उपकरणों द्वारा काले हिस्से को बाहर निकाल लिया जाता है.
परफ़्यूम और अगरबत्ती बनाने में भी होता है इस्तेमाल
लकड़ी का ये हिस्सा ही बहुत महंगा बिकता है. इसमें से सुगंध आती है और इसे जलाने पर ये पूरे कमरे या वातावरण में फैल जाती है. कुछ समय बाद इससे मनमोहक ख़ुशबू आने लगती है. एक बंद कमरे में ये सुगंध लगभग 3-5 घंटे तक रह सकती है. अगरवुड के इस काले हिस्से को सड़ाकर एक लिक्विड तैयार किया जाता है. इसका इस्तेमाल परफ़्यूम बनाने में किया जाता है.
ख़त्म हो रहे हैं अगरवुड के पेड़
एक रिपोर्ट के अनुसार, 2004 में 3.06 मिलियन अगरवुड के पेड़ थे. वर्तमान में इनकी संख्या 1.16 मिलियन से भी कम बताई जाती है. इसके तेज़ी से बढ़ते व्यापार के कारण अगरवुड के पेड़ों की संख्या में गिरावट आ रही है. इसकी लकड़ी की तस्करी कर चोरी-छुपे विदेशों में भी पहुंचाया जाता है. इस पेड़ को बचाने के लिए अलग-अलग स्तर पर कोशिश की जा रही है, लेकिन वो सभी नाकाफ़ी.
इस दुर्लभ प्रजाति के पेड़ को बचाने के लिए सबको मिलकर प्रयास करने चाहिए.